इश निंदा के नाम पर सर तन से जुदां के नारे निंदनीय : सैयद हाशिमी   

औरंगाबाद(लाइव इंडिया न्यूज 18 ब्यूरो)। मजहब ए इस्लाम के प्रवर्तक हजरत मुहम्मद की 40वीं पीढ़ी के वंशज  और उत्तर प्रदेश के अंबेडकरनगर के किछौछा स्थित दरगाह मखदूम अशरफ के सर्वेसर्वा जाने माने इस्लामिक धर्मगुरु सैयद मोहम्मद हाशिमी ने इश निंदा के नाम पर सर तन से जुदां जैसे नारों पर गहरी आपत्ति जताई है।

औरंगाबाद के बारुण प्रखंड के जोगिया में आयोजित सेराजे मिल्लत कांफ्रेंस में शामिल होने आए जनाब हाशिमी ने विशेष वार्ता में कहा कि इश निंदा दूसरे धर्म के लोगो पर लागू नही होता है। यह उस पर लागू होता है, जो उस धर्म या मजहब को मानते है। इस्लाम तो क्या किसी भी धर्म में यह नही कहा गया कि दूसरे धर्म की निंदा करने वालों का सिर तन से जुदां कर दिया जाएं। इस तरह की बातें करना बेहद गलत है। उन्होने कहा कि कुरान किस पर लागू होता है, उस पर जो मुसलमान है और यह दूसरे धर्म को मानने वालो पर लागू नही होता है। इस स्थिति में जब दूसरे धर्म को मानने वाला कुराना के बारे में उल्टा सीधा बोल दे तो यह उसकी नासमझी है। इसके लिए वह गुनहगार नही है क्योकि वह कुरान के बारे में नही जानता है। ऐसे में हमारा फर्ज बनता है कि हम उल्टा सीधा बोल देने वालों से उलझे नही और न ही हम उनके प्रति अनाप शनाप बातें कहे बल्कि सही जानकारी देकर उनका ज्ञानवर्द्धन करे। उनकी जिज्ञासाओं का निवारण कर दे। ऐसा करने से किसी भी धर्म की निंदा करने की प्रवृति निःसंदेह समाप्त होगी। उन्होने कहा कि पैगम्बर मोहम्मद ने कहा है कि तुम इस्लाम को मानते हो, ठीक है पर दूसरे धर्मों की आलोचना या गलत कहने का काम नहीं करो। उनके धर्मगुरुओं को भी गाली मत दो। यह न हमे मंजूर और न ही अल्लाह को मंजूर है। धर्मगुरु ने कहा कि कुरीतियां, कट्टरता, संकीर्णता, सांप्रदायिकता और आतंकवाद किसी भी धर्म में नही है। ये बुराईयां धर्मों के कारण नही बल्कि लोगों के कारण है। कहा कि वैदिक काल में लोग अच्छे थे तो उन्हें वैदिक धर्म अच्छा लगता था। इसा मसीह थे तो बाइबिल अच्छा लगता था।

पैगम्बर मोहम्मद थे तो इस्लाम और कुरान अच्छा लगता था पर लोग बदलते गये धर्म नही बदला और न ही उसकी अच्छाईयां बदली। जमाना भी कभी खराब नही होता, जमाने वाले बदलते गये और उल्टे जमाने को खराब कहते गये, इसे हम सबको गहराई से समझने की जरूरत है। उन्होने धार्मिक पुस्तकों में लिखी बातों को भड़काउं बताने और इसे लेकर बवाल खड़ा करने की मजामत करते हुए कहा कि किसी धर्म या मजहब को नीचा दिखाने के लिए बड़े से बड़ा विद्वान कोई किताब लिख दे तो वह धर्मग्रंथ नही हो सकता बल्कि वह लेख ही रहेगा। बड़े से बड़े मौलवी की लिखी किताब लेख ही रहेगी वह कुरान नही हो जाएंगा। कहा कि रामचरितमानस को लेकर भी ऐसी ही बातें हो रही है। यदि किसी किताब में संशोधन कर कोई गलत बात जोड़ दी गई हो तो उसमें उस किताब की क्या गलती है, गलती तो उनकी है जिन्होने संशोधन किया है। किसी भी धर्म का मूल ग्रंथ इश वाणी है और बाकी किताबें लेख है और लेखों में गलती हो सकती है लेकिन किसी भी धर्म की इश वाणी में कही कोई गलती नही है। उन्होने मदरसों के भी आधुनिकीकरण की वकालत की। कहा कि मुझे भी मदरसे की पढ़ाई से कुछ नही मिला बल्कि जो मिला वह अपने गुरु से मिला। मेरे पास जो भी ज्ञान है, वह मुझे गुरु से प्राप्त है। कहा कि मदरसे सिर्फ धार्मिक शिक्षा के ही नही बल्कि आधुनिक शिक्षा के भी केंद्र बने। इसी में इनकी प्रासंगिकता है।