स्वामी सहजानंद सरस्वती की आत्मकथा अमरीका के वेस्लियन विश्विद्यालय में पढ़ाई जाएगी

पटना। देश में राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान किसान आंदोलन के सूत्रधार एवम महान स्वतंत्रता सेनानी स्वामी सहजानंद सरस्वती की प्रसिद्ध आत्मकथा “मेरा जीवन संघर्ष ” अब अमरीका के विश्विद्यालय में पढ़ाई जाएगी । यह आत्मकथा अमरीका के मिडलटन में वेस्लियन विश्विद्यालय में पढ़ाई जाएगी। ‘मेरा जीवन संघर्ष’ वेस्लियन विश्वविद्यालय के अंडर ग्रेड्यूएट छात्रों के कोर्स में शामिल किया गया है।। ‘ मेरा जीवन संघर्ष ‘ का अंग्रेज़ी अनुवाद स्वामी सहजानन्द सरस्वती पर लगभग छह दशकों तक काम करने वाले वाल्टर हाउजर तथा उनके अनन्य सहयोगी कैलाश चन्द्र झा ने संयुक्त रूप से किया है जिसे दिल्ली स्थित मनोहर पब्लिशर्स ने 2018 में ‘ माई लाइफ स्ट्रगल’ के नाम से प्रकाशित किया है।

भारतीय स्वाधीनता संग्राम को समझने के लिए बेहद महत्वपूर्ण इस पुस्तक को कोर्स में लगवाने के श्रेय विलियम पिंच को जताया है। अमरीका में प्रोफेसर को खुद अपना सिलेबस और कोर्स निर्धारित करने का अधिकार रहता है। भारत में यह सुविधा जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में है।

कैलाश चन्द्र झा , जो बिहटा स्थित श्री सीताराम ट्रस्ट बिहटा के न्यासी भी हैं, के अनुसार ” श्री प्रोफेसर विलियम पिंच वाल्टर हाऊजर के छात्र रह चुके हैं विश्विद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर हैं तथा दक्षिण एशिया के विशेषज्ञ माने जाते हैं। श्री पिंच के बारे में दिलचस्प बात यह है कि उनका जन्म भारत में दिल्ली के होली फेमिली अस्पताल में हुआ था। वे भारत आते रहते हैं। उनकी भारत के बारे में दो किताबें ‘ पीजेंटस एंड मोंक्स इन ब्रिटिश इंडिया’ और ‘ वॉरियर्स एसेटिक्स एंड इंडियन अंपायर्स ‘ काफी चर्चित रही है। वाल्टर हाउजर के अन्य शिष्यों जिनमें वेंडी सिंगर, फिलिप मैकड़ौलनी, जिम हेगेन , माइकल यांग, क्रिस्टोफर हिल प्रमुख हैं ने भी बिहार को केंद्र में रखकर शोध किया है। “

स्वामी सहजानंद की जीवनी को अंग्रेजी में विश्वप्रसिद्ध इतिहासकार वाल्टर हाउसर के साथ अनुवाद करने वाले कैलाश चंद्र झा के अनुसार ने आगे बताया ” “भारत में किसान आंदोलन तथा स्वामी सहजानंद सरस्वती को दुनिया के एकेडमिक जगत में चर्चित करने वाले श्री हाउजर और मैने स्वामी जी की आत्मकथा को पहली बार 2015 में अंग्रेजी में अनुदित की । उसे एकेडमिक एडीशन के रूप में जाना जाता है। उस एकेडमिक एडीशन से एक पॉपुलर एडीशन प्रकाशित हुआ। उसे ही विलियम पिंच ने उसे अपने विश्विद्यालय के अंडर ग्रेजुएट के छात्रों के लिए को पाठ्यक्रम में शामिल किया है।”

ज्ञातव्य हो कि वाल्टर हाउजर 1957 में बिहार के किसान आंदोलन पर शोध करने भारत आए थे। जबकि कैलाश चन्द्र झा 1974-75 यानी पिछले 45 साल तक उनके सहयोगी रहे थे। कैलाश चन्द्र झा और सीताराम ट्रस्ट के सचिव डॉ सत्यजीत सिंह ने ने बिहार और उत्तरप्रदेश की सरकारों से मांग करते हुए कहा ” भारत के विश्व विद्यालयों में और खासकर कम से कम बिहार और उत्तरप्रदेश की सरकारों को अमरीका से सबक लेते हुए अपने कालेजों में स्वामी की जीवनी को पढ़ाना चाहिए। स्वामी जी उत्तरप्रदेश के गाजीपुर के थे पर उनका कार्यक्षेत्र बिहार था। ”

श्री सीताराम आश्रम एक अन्य न्यासी अनीश अंकुर ने बताया ” सीताराम आश्रम के लिए यह गौरव का क्षण है क्योंकि बिहार के राजनीतिक इतिहास को देखना -समझना है तो स्वामी सहजानंद सरस्वती रेफरेंस प्वाइंट हैं। बिहटा स्थित सीताराम आश्रम की, 1927 में पश्चिमी उतना किसान सभा, 1929 में बिहार प्रदेश किसान सभा और 1936 में अखिल भारतीय किसान सभा की स्थापना में प्रमुख भूमिका रही है। सीताराम आश्रम 1936 से 1944 तक किसान सभा का ऑल इंडिया ऑफिस के रूप में कार्य करता रहा है। “

अभी सीताराम आश्रम ट्रस्ट के सचिव डॉ सत्यजीत सिंह के नेतृत्व में सीताराम आश्रम का जीर्णोद्धार का काम चल था है। काफी कुछ प्रगति हो चुकी है। अमेरिका से लाये अब तक अप्रकाशित दस्तावेज़ों को प्रकाशित करने की योजना पर कार्य चल रहा है।