पश्चिमी देशों से रिश्तों में खटास बढ़ा रहा है अफ्रीका में रूस का प्रभाव

7 फरवरी को रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव की अफ्रीकी यात्रा की शुरुआत हुई, सर्गेई इस यात्रा के दौरान पश्चिमी अफ्रीकी देशों का दौरा वरीयता सूची में सबसे ऊपर रहा. पश्चिमी अफ्रीकी देशों के साथ-साथ इस दौरान इराक, मोरीटेनिया और सूडान का दौरा भी शामिल रहा. यात्रा के दौरान माली पहुचें रूसी विदेश मंत्री ने सबसे पहले माली को सैन्य समर्थन देने और वहां की सैन्य-शक्ति को मजबूत बनाने का वादा किया, जैसा की मालूम हो सन २०१२ से माली जिहादी विद्रोहों का सामना कर रहा है.

माली में अब्दुल्लाये दिओप के साथ एक संवादाता सम्मलेन में उन्होंने कहा कि “ आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई निश्चित रूप से पूरी दुनिया के लिए किसी चुनौती से कम नही है” पर इस लड़ाई में रूस माली के साथ है. आतंकवाद का यह मुद्दा गिनी, बुर्किना फासो, चाड, साहेल और गिनी के खाड़ी के तटीय राज्यों के लोगों के लिए भी समस्याओं का कारण बना हुआ है. इन आतंकवादी गतिविधियों के चलते इन अफ्रीकी देशों का विकास बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है और इन दशों के लोगों के लिए सामान्य और शांतीपूर्वक जीवन बिताना कठिन हो गया है. संवाददाता सम्मलेन में मंत्री लावरोव ने कहा की आतंकवाद की समस्या से निपटने के लिए रूस अपना समर्थन बिना-शर्त जारी रखेगा.

साथ ही रूसी विदेश मंत्री ने इस बात पर जोर दिया की रूस का मानना है की अफ्रीकी समस्याओं को अफ्रीकी समाधान के द्वारा ही हल किया जाना चाहिए. लावरोव के बातों के साथ सहमति जताते हुए, माली के विदेश मंत्री ने कहा की “हमारा भी यही मानना है, हम किसी के द्वारा थोपे गए मापदंडो के आधार पर अपनी निति निर्धारित नहीं करेंगे बल्कि हमारी देश और विदेश आधारित नीतिया हमारे देश के लोगों के भलाई और अपने देश की जरूरतों पर आधारित होगी”. रूस हमारे साथ है और हम दोनों देशो का साथ हमारी आपसी सहमति पर आधारित है. और आगे से हमें किसके साथ होना है और किसके साथ नही होना है, ये सारी बाते हमारी रणनीतिक आवश्यकताओं के आधार पर तय होगा. थोपे गए दोस्ताना रिश्तों के आधार पर नही.

सूडान में एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान भी लावरोव ने कहा कि “हमने अन्तराष्ट्रीय संस्थानों के भीतर समन्वय की आवश्यकता पर चर्चा की है, जिसके तहत हमारा मानना है की तमाम अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों में तत्काल सुधार की आवश्यकता है, इन संस्थाओं की भूमिका ऐसी होनी चाहिए की कमजोर देशों की मदद करना इनकी प्राथमिकता की महज सूची में ही ना हो बल्कि इसका धरातल पर ईमानदारी से क्रियान्वयन भी होना संभव हो ”. वर्तामन में यह जरुरी हो गया है की ग्लोब्लिजेशन के नाम पर सिर्फ बाजारवाद के विस्तार पर ध्यान देने के बजाय एक बहुध्रुवीय दुनिया का निर्माण हो जहाँ कोई भी देश और कोई भी इन्सान खुद को असुरक्षित और कमजोर ना समझे. बातचीत के क्रम को आगे बढ़ाते हुए सूडान के विदेश मंत्री ने कहा की लावरोव की सूडान यात्रा के बहुआयामी उद्देश्य हैं, जिसमे आर्थिक और राजनयिक समन्वय के साथ-साथ सूडान में बुनियादी ढांचे के विस्तार की दिशा में निवेश को बढ़ाना भी शामिल है. जिसके अंतर्गत रूस के साथ अफ्रीकी संबधों को मजबूत करना इस दौरे की प्रमुखता में शामिल था.

यह यात्रा जुलाई २०२२ के बाद लावरोव की अफ्रीकी देशों की तीसरी यात्रा रही है, जो साफतौर पर अफ्रीकी देशों में रूस की उपस्थिति का विस्तार का एक माध्यम नजर आ रहा है. जुलाई में लावरोव ने मिस्त्र, कांगो गणराज्य, युगांडा और इथियोपिया का दौरा किया था, जिसके माध्यम से उन्होंने विभिन्न डोमेन में रूस-अफ्रीका संबंधो को पुनर्जीवित करने पर जोर दिया. इसी साल जनवरी में, दक्षिण अफ्रीका का भी दौरा किया था.

गत बीते वर्षों की घटनाक्रम पर ध्यान दिया जाए तो अगस्त 2020 में माली में तख्तापलट होने के बाद से रूस-माली सम्बन्ध मजबूत होते हुए नजर आए हैं और फ़्रांस-माली संबंधो में बढ़ते खटास के साथ रूसी वैगनर के भाड़े के सैनिकों की माली में तैनाती भी हुई. इसके आलावा, मास्को द्वारा सैन्य प्रशिक्षण प्रदान करने और युद्ध विमानों और हेलीकॉप्टर सहित भारी सैन्य उपकरण भेजने के बाद माली ने रूस को प्रमुख भागीदार एवं सहायक के रूप में मान्यता प्रदान करना शुरू कर दिया है. इसके अलावा 2022 में रूस ने माली को 100 मिलियन अमरीकी डॉलर के ईंधन, उर्वरक और खाध निर्यात करने का भी आश्वासन दिया था.

इसी तरह रूस के सूडान के सैन्य नेताओं के साथ मजबूत संबंध है, और सूडान में रूस के वैगनर समूह की मजबूत उपस्थिति मौजूद है , जो विभिन्न सूडानी सोने की खानों और खनिज खानों के नियंत्रण के बदले सूडान के सैनिको को सैन्य और ख़ुफ़िया प्रशिक्षण प्रदान करते हैं. दिसंबर 2020 में मास्को ने, लाल सागर के नौ-सैनिक बेस के निर्माण और संचालन में सहायता प्रदान करने के लिए सूडान के साथ 25 साल के समझौते की घोषणा की.
नवम्बर 2022 में, फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने ऑपरेशन बरखान की अंत की घोषणा की जो 2013 में इस्लामी उग्रवाद के खिलाफ शुरू हुआ था. ब्रिटेन और जर्मनी ने भी माली से अपने सैनिको को वापस बुला लिया. अगस्त 2020 में तख्तापलट के बाद माली और पश्चिमी भागीदारों बीच संबंधो में खटास की शुरुआत हो गई थी.

माली के अधिकारीयों ने फ्रांस पर उसके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का भी आरोप लगाया है. इसके अलावा, विद्रोह से सफलतापूर्वक लड़ने में फ्रांसीसी और अन्य पश्चिमी सैनिकों की विफलता का प्रमुख कारण इन देशों का विद्रोह दमन से ज्यादा अपने बाजार के विस्तार का इरादा प्रमुख रहा ऐसा माली के लोगों का मानना है, यही कारण है, अब यहाँ फ्रांसीसी विरोधी और पश्चिमी विरोधी भावनाओं का प्रसार बहुत तेजी से हो रहा है , और पश्चिमी सैनिकों के निष्कासन की मांग का कारण भी लोगों के भीतर पश्चिमी देशों के विरुद्ध जो गुस्सा है यही प्रमुख रहा. फ़्रांस के ऑपरेशन बरखान का अंत और अफ्रीका के साथ पश्चिमी देशों के संबंधो में जो खटास आई है यही कारण की रूस अफ्रीकी देशों में अपनी उपस्थिति मजबूत करता नजर आ रहा है.

माली और सूडान में राजनीतिक अस्थिरता जारी है, माली और सूडान में जो सैन्य तख्तापलट हुए हैं उसका भी इन तमाम घटना क्रम से कही न कही जुडाव है.
अफ्रीकी देशों में अस्थिर सरकारों और कमजोर अर्थव्यवस्था ने अल – कायदा और इस्लामिक स्टेट से जुड़े विद्रोही समूहों को बढ़ने का पूरा मौका दिया.

कई अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी बलों और सैन्य अभियानों की उपस्थिति के बावजूद, विद्रोही समूहों द्वारा हिंसक हमले जारी है जो की माली और साहेल क्षेत्र में रह रहे लोगों के लिए खतरे और डर का सबब बना हुआ है.
रूस ने पश्चिमी देशों के साथ अफ्रीकी देशों के बिगड़ते संबंधों के आधार पर अफ्रीकी देशों में महत्वपूर्ण लोकप्रिय समर्थन प्राप्त प्राप्त करने में सफलता हासिल की है.

हालांकि, इन सब के साथ रूस साहेल में मानवाधिकारों और युद्ध अपराधों के आरोपों का सामना भी कर रहा है. जनवरी में, संयुक्त राष्ट्र ने माली सरकार और रूसी भाड़े के सैनिकों द्वारा युद्ध अपराधों की रिपोर्टों पर एक स्वतंत्र जांच का आह्वान किया। संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों का कहना है की इस जाँच रिपोर्ट में माली सशस्त्र बलों के जवान और उनके सहयोगियों द्वारा लोगों को यातना देने, सामूहिक बलात्कार, लूटपाट जैसे कई अपराध सामने आये हैं, जिसका माली के निर्दोष लोगों के जीवन पर बहुत ही भयावह असर पड़ा है.


यह एक ऐसा समय है जब यूक्रेन के साथ युद्ध के चलते पश्चिमी प्रतिबंधों से जूझ रहा रूस अपने व्यापार और रणनीतिक संबंधों के विस्रतार की दिशा में हर कोशिश में लगा हुआ है. जिसमे रूस द्वारा अफ्रीकी देशों में अपनी लोकप्रियता को भी विस्तारित करना शामिल है.
अफ्रीका के लिए, रूस के साथ बढ़ते जुड़ाव का सबसे प्रमुख कारण पश्चिमी देशों से मिली मायूसी है.

                                                                                                  लेखक- सोनम झा                                                                                                                           शोधार्थी (सेंटर फॉर अफ्रीकन स्टडीज)                                                                                                                            स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज                                                                                                                             जवाहरलाल नेहरु विश्विद्यालय, नई-दिल्ली