किसान आंदोलन : समाधान के लिए ‘सुप्रीम‘ कमेटी !

  • किसानों व सरकार के बीच गतिरोध खत्म करने को शीर्ष कोर्ट ने पेश किया प्रस्ताव
  • किसानों की आठ यूनियन को पक्षकार बनाया
  • शीर्ष अदालत मामले की आज फिर करेगी सुनवाई

नई दिल्ली (लाइव इंडिया न्यूज18 ब्यूरो)। आंदोलनकारी किसानों और सरकार के बीच गतिरोध को खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक कमेटी के गठन का प्रस्ताव पेश किया है। किसानों की आठ यूनियनों को पक्षकार बनाया गया है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई बृहस्पतिवार को फिर करेगा। चीफ जस्टिस शरद अरविंद बोबडे‚ जस्टिस एएस बोपन्ना और वी. रामासुब्रमण्यन की बेंच ने कहा कि दिल्ली की सीमाओं पर एकत्र किसानों का आंदोलन देशभर में फैल सकता है। बेंच ने कहा कि किसानों की समस्या का हल तभी निकल सकता है यदि सरकार इच्छुक हो। सुप्रीम कोर्ट ने किसानों की आठ यूनियनों को पक्षकार बनाने की अनुमति प्रदान कर दी।

यह हैं–

भारतीय किसान यूनियन–बीकेयू (राकेश टिकैत)‚ बीकेयू (जगजीत डलेवाल)‚ बीकेयू–राजेवाल (बलबीर सिंह राजेवाल)‚ बीकेयू–लखोवाल (हरेन्द्र सिंह लखोवाल)‚ जमूरी किसान सभा (कुलवंत सिंह संधू‚ बीकेयू–डकुंदा (बूटा सिंह बुर्जगिल)‚ बीकेयू–डोबा (मंजीत सिंह राय)‚ कुल हिंद किसान फेडरेशन (प्रेम सिंह भंगु)। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया जिसे कोर्ट में उपस्थित सॉलिसिटर जनरल ने स्वीकार कर लिया। किसान आंदोलन के संबंध में तीन याचिकाएं दायर की गई हैं। इनमें से दो में आंदोलनकारियों को दिल्ली की सरहदों से हटाने की मांग की गई है जबकि एक में आंदोलनकारी किसानों के धरनास्थल पर सहूलियत देने की मांग की गई है।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि समस्या के समाधान के लिए सरकार ने हर संभव प्रयास किए हैं लेकिन किसान तीनों नए कानूनों को वापस लेने की मांग पर अड़े हुए हैं। अदालत ने सॉलिसिटर जनरल से कहा कि वह उन किसान यूनियनों की सूची सौंपे जिनके प्रतिनधियों ने सरकार से बातचीत में भाग लिया है। मेहता ने कहा कि आंदोलन निहित स्वार्थी तत्वों के हाथों में चला गया है लेकिन फिर भी सरकार बातचीत के दरवाजे खुले रखना चाहती है। कानून के हर बिंदु पर किसानों से बात के लिए तैयार है। मेहता ने कहा कि केंद्रीय मंत्रियों के साथ हुई वार्ता के दौरान भी किसानों ने अडि़यल रुख अपनाया। वह सिर्फ हां या न में जवाब चाहते हैं। दिल्ली–एनसीआर की सीमा से प्रदर्शनकारी किसानों को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि कोविड–19 महामारी के कारण एकत्रित भीड़ को हटाया जाए।

कानून के छात्र शुभाष शर्मा ने याचिका में कहा है कि प्रदर्शनकारियों ने सड़कों पर आवागमन अवरुद्ध कर दिया है। इससे आपातकालीन चिकित्सा सेवा भी प्रभावित हुई हैं। याचिका में कहा गया है कि दिल्ली पुलिस ने किसानों को धरना–प्रदर्शन के लिए निर्धारित जगह पर जाने के लिए कहा है। उन्हें बुराड़ी में निरंकारी ग्राउंड में धरना देने के लिए कहा गया है लेकिन किसान सिंघु और टीकरी बॉर्डर तथा कई अन्य जगहों पर डेरा डाले हुए हैं। इस कारण ट्रैफिक डायवर्ट करना पड़ा है। प्रदर्शकारी किसानों को बुराड़ी जाने का आदेश दिया जाए। याचिका में सुप्रीम कोर्ट के शाहीन बाग मामले में दिए गए फैसले का हवाला दिया गया है। इस फैसले में कहा गया था कि प्रदर्शनकारियों को सड़क रोककर यातायात अवरुद्ध करने का अधिकार नहीं है। यह असंवैधानिक है।

खेती और किसानों से जुड़े तीनों कानूनों को सुप्रीम कोर्ट में पहले ही चुनौती दे दी गई है। इस पर नोटिस भी जारी हो गए हैं। अधिसंख्य प्रदर्शकारी पंजाब से आए हैं। उनमें काफी तादाद में बुजुर्ग भी हैं। उन्हें घातक वायरस से बचाने की जरूरत है।

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने बुधवार को राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर तीन कृषि कानूनों के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन को ‘अपवाद’ बताया और कहा कि यह ‘एक राज्य तक सीमित’ है। हालांकि उन्होंने इस मामले के जल्द समाधान की उम्मीद भी जताई। तीन कृषि कानूनों का जिक्र करते हुए तोमर ने कहा‚ कृषि क्षेत्र में हुए हालिया सुधारों से देश में उत्साह का वातावरण है।

सिंघु बॉर्डर पर किसान ने गोली मारकर की खुदकुशी

एक ६५ वर्षीय किसान ने सिंघु बॉर्डर प्रदर्शनस्थल पर आत्महत्या कर ली। पीडि़त की पहचान हरियाणा के करनाल जिले के सिंघरा गांव के बाबा राम सिंह के रूप में हुई। किसान ने एक सुसाइड नोट भी छोड़ा है‚ जिसमें उन्होंने कहा है कि वह किसानों की दुर्दशा को देख नहीं सकते।