यूएस-ईरान परमाणु समझौता पुनर्जीवित होने के आसार

यूएस-ईरान परमाणु समझौता पुनर्जीवित होने के आसार नजर आ रहे हैं। दरअसल, हाल ही में सामने आई खबरों के मुताबिक ईरान व अमेरिका दोबारा न्यूक्लियर डील पुन: जीवित करने पर विचार कर रहे हैं। इस सिलसिले में अमेरिका ने पिछले सप्ताह वियना में आयोजित बैठक में भाग भी लिया। ज्ञात हो, राष्ट्रपति जो बाइडेन ईरान पर लगे प्रतिबंध हटाने के इच्छुक हैं।

वहीं साथी देश ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस मध्यस्त की भूमिका निभा रहे हैं। ईरान पहले ही कह चुका है कि जब तक अमेरिका उस पर लगे सारे प्रतिबंध नहीं हटा लेता, वह बातचीत नहीं करेगा।

बता दें, साल 2018 में अमेरिका ने एकतरफा खुद को इस डील से अलग कर लिया था।

वर्ष 2015 में, लंबे समय की कूटनीतिक पहल के बाद जब ईरान के साथ अमेरिका सहित अन्य पांच देशों का परमाणु करार हुआ था, तब पूरी दुनिया ने राहत की सांस ली थी। तब इस बात की उम्मीद की गयी थी कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम से पैदा हुए अंतरराष्ट्रीय तनाव से उबर कर पूरा विश्व समुदाय फिर से ईरान के साथ अपने आर्थिक संबंध को बेहतर कर सकेगा। लेकिन, डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा इस परमाणु करार को तोड़ दिया गया और ईरान पर कई प्रतिबंध लगा दिए गए।
अब अमेरिका में सरकार बदलने के बाद इस डील में अमेरिका दुबारा से शामिल होने पर विचार कर रहा है।

क्या है यूएस-ईरान न्यूक्लीयर समझौता

1950 के दशक में ईरान ने शांतिपूर्ण तरीके से परमाणु कार्यक्रम की शुरुआत की थी, लेकिन बात तब बिगड़ गयी जब वर्ष 2002 में यह बात सामने आई कि NPT यानी Non-Proliferation Treaty या हिंदी में कहें तो ‘परमाणु अप्रसार संधि’ पर हस्ताक्षर करने के बावजूद ईरान अपने नाभिकीय हथियारों को तेजी से इकठ्ठा कर रहा है। इसके बाद यूएन और अमेरिका सहित अनेक देशों ने उस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए। इससे ईरान की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई। फिर इन प्रतिबंधों को हटाने के लिए अमेरिका और अन्य जी-5 देशों के साथ जर्मनी ने ईरान के साथ एक परमाणु डील की। इस डील में ईरान पर प्रतिबंध हटाने के एवज में उसे कुछ शर्तें स्वीकार करनी थी, जिनमें से कुछ को नीचे बताया गया है-

पहली शर्त थी कि, ईरान को अपने संवर्द्धित यानी ENRICHED यूरेनियम के भण्डार को कम करना होगा। इसके तहत, ईरान को उच्च संवर्द्धित यूरेनियम का 98 फीसद हिस्सा नष्ट करना था या देश के बाहर भेजना था ताकि उसके परमाणु कार्यक्रम पर विराम लग सके।

दूसरी शर्त के मुताबिक ईरान को आगे से यूरेनियम को 3.67 फीसद तक ही संवर्द्धित करने की इजाजत दी गई, ताकि उसका इस्तेमाल बिजली उत्पादनों या अन्य जरूरतों में ही किया जा सके।

तीसरी शर्त यह थी कि ईरान कुल सेंट्रीफ्यूज का दो तिहाई संख्या कम करेगा। सेंट्रीफ्यूज एक प्रकार की मशीन होती है जिसकी सहायता से यूरेनियम का संवर्द्धन किया जाता है।

चौथी महत्त्वपूर्ण शर्त थी कि INTERNATIONAL ATOMIC ENERGY AGENCY यानी IAEA ईरान के उन स्थानों का निरीक्षण कभी भी कर सकता है जहां ईरान अपना परमाणु कार्यक्रम चलाता रहा है।

यह डील JOINT COMPREHENSIVE PLAN OF ACTION यानी JCPOA या साझी व्यापक कार्ययोजना के नाम से भी जानी जाती है। ईरान ने इस समझौते की सभी शर्तों को मान लिया, जिसके बदले में ईरान को तेल और गैस के कारोबार, वित्तीय लेन-देन वगैरह में ढील दी गई।

भारत पर क्या असर होगा

इस ताजा घटनाक्रम से भारत के आर्थिक और कूटनीतिक दोनों ही हित सकारात्मक रूप में प्रभावित होंगे। ईरान भारत का बड़ा व्यापारिक साझेदार देश रहा है। ईरान भारत का तीसरा बड़ा कच्चा तेल आपूतिकर्त्ता देश रहा है। जाहिर है कि फिर से भारत कच्चे तेल के लिए ईरान से व्यापार कर सकेगा। इसके अलावा, अफगानिस्तान तक अपनी पहुंच सुनिश्चित करने के लिए चाबहार बंदरगाह के विकास के लिए भारत ने जो समझौता किया था उस पर आशंका के बादल मंडराने लगे थे। अब वो बादल दूर हो सकेंगे, जिससे क्षेत्र में भारत फिर से चीन के मुकाबले कूटनीतिक बढ़त ले सकेगा।