Saraswati Puja Special : ऋतुराज बसंत में विद्या और ज्ञान की देवी माँ सरस्वती पूजा का महात्म्य

🖋️ अभिषेक़ कुमार
(लेखक यूपी के आजमगढ़ में ठेकमा ब्लॉक में मिशन प्रबंधक के पद पर कार्यरत है। औरंगाबाद के नबीनगर के जयहिंद तेंदुआ गांव के निवासी हैו हिंदी साहित्यकार है और लेखन में गहरी रुचि रखते है)

प्रकृति प्रदत्त ऋतुएं वैसे तो भारत पर मेहरबान है। दुनियाँ के अधिकांश देशों में तो एक ही प्रकार के मौसम सालों भर बना रहता है अर्थात ठंढा तो ठंढा ही, गर्मी तो गर्मी ही और बरसात तो बरसात ही परंतु ईश्वर की अवतार भूमि और भूमंडल का गौरव भारत में छः प्रकार के ऋतुएं पायी जाती है जो इस प्रकार है- शिशिर ऋतु, हेमंत ऋतु, शरद ऋतु, वर्षा ऋतु, ग्रीष्म ऋतु और बसंत ऋत। दो-दो महीने घटित होने वाली इन छः प्रकार के ऋतुओं में बिभिन्न प्रकार के विविधता पायी जाती है, रुचि के अनुसार ठंढा गर्मी एवं बरसात आदि मनभावन मौसम का आनंद है। स्वास्थ्य एवं पोषण के दृष्टिकोण से प्रत्येक ऋतुओं में नाना प्रकार के कंद, मूल, फल, फूल और अनाज के उत्पादन प्रकृति ने भारत भूमि के लिए सहज और सुलभ बनाएं है।


बसंत ऋतु को समस्त ऋतुओं का राजा कहा जाता है। बसंत ऋतु को राजा होने का सौभाग्य इस लिए प्राप्त है कि इस दरमियान प्रकृति अपने सबसे अधिक सुंदर और अनुपम छटा बिखेरती है। ये वसुंधरा जिस पर हम सभी निवास करते है वो हरियाली के चादर से ढक जाती है जो नेत्रों को सकून एवं ताजगी के साथ-साथ मन को भी आनंदित करती है। हरे रंग के चादर से लिपटी धरती पर गेहूं के क्यारियों के मध्य पीले सरसो के फूल खूबसूरती का चार चांद लगा देते है मानो जैसे प्रकृति ने पीले रंग की दुशाला ओढ़ी हो जिस पर खेसारी मसूर के नीले रंग के फूल और मटर, चना के गुलाबी फूल जैसे बिंदी के समान सोभा बढ़ा रही हो। फूल वाले फसलों के ऊपर मंडराते गुंजन करते भवरों का झुण्ड बिना किसी को छेड़-छाड़ किये अपने कार्यो में व्यस्त रहते हैं और ऊपर अकास में बुदबुदाते उड़ते रंग-बिरंगे तितलियों का विशेष समुदाय जिससे यह प्रतीत होता है मानो पूरी प्रकृति एक लयबद्ध संगीतमय है।

चमन में मौजूद पेड़ों की खूबसूरती भी देखने को बनती है, नए कोमल चमकदार पत्तियों से विभूषित बिल्कुल डिजिटल प्रदर्शित हो रही और उस पर पक्षियों की चहचहाट, इस डाल से उस डाल पर फुदकना तथा कोयलों की मीठी तान और उल्लुओं को आँख तरेडना और उसी डाल के निकट मधुमखियों को शहद इकठ्ठा करना तथा आम के मंजरों की लचकती अंगड़ाइयाँ से निकलती मधुर मनोरम भीनी-भीनी खुशबू एकदम मंत्रमुग्ध कर देती है। प्रकृति सौंदर्य तथा पूर्वा बयार में बसंत की मादकता तो कवियों लेखकों एवं मनन चिन्तनशीलो को बेसुध कर देती है।

सत सनातन धर्म केवल हिंदुओं के धर्म नहीं है ये तो सम्पूर्ण मानव जाती सभ्यता के विकास, मार्गदर्शन एवं कल्याण के लिए मात्र है। पञ्चाङ्ग के अनुसार प्रत्येक वर्ष माघ मास के शुक्लपक्ष पंचम प्रतिपदा को विधा, ज्ञान और विवेक की देवी माँ सरस्वती की पूजा अर्चना हम सभी बड़े हर्षोल्लास से करते हैं। प्रकृति के खूबसूरत सुंदर वातावरण में मन अवसादों से दूर हर्षित बावरा होकर जब श्रद्धा भाव से माता सरस्वती की वंदना, स्तुति, चिंतन करता है तो निःसंदेह बुद्धि विवेक में इजाफा होता है तथा हृदय में छुपे तमाम शत्रु जैसे कि काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ, अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष, छल, कपट आदि का खात्मा होता है। आखिर कोई एक न एक अज्ञात कुदरती स्रोत है जहाँ से हम सभी मानवों का बुद्धि विवेक प्राप्त हो रहा है और इन बुद्धि विवेक वाणी के प्रभावों से हम प्रखर, ओजस्वी और तेजस्वी दिखाएमान होते है। इन्ही अज्ञात स्रोतों को एक नाम और रूप देकर श्रद्धा सहित विश्वास के साथ पूजा अर्चना करना वर्तमान वैज्ञानिक दृष्टिकोण से आकर्षण के सिंद्धान्त भी प्रतिपादित होता है।


माता सरस्वती पूजन के दौरान अगर प्रसाद की बात करें तो चने की बेसन और गन्ने की शक्कर से बुंदिया और कंद मूल जैसे कि गाजर और शकरकंद तथा मौसमी फल बेर इन तीनो के मिश्रण का भोग लगता है और प्रसाद स्वरूप वितरित किया जाता है। इन तीनो के मिश्रण के स्वाद का क्या कहना जी नहीं भरता मन ललचते रहता है और खाने को, इन तीनो खाद्य पदार्थो में उच्च कोटि के पोषक तत्व विद्धमान है जो शरीर को निरोग तंदुरुस्त बनाये रखने में मदत करती है। सरस्वती पूजा समारोह में बालपन का वो जुनून उमंग देखने को मिलता है, बल बुद्धि की कामना और नित्य सकारात्मक चिंतन उन अबोध बच्चों को निःसंदेह एक दिन फल प्राप्ति की ओर अग्रसारित करते हैं और उन्हें एक ज्ञानवान सशक्त व्यक्ति बनाते है।


फाल्गुन मास में बहने वाली पुरवईया तन बदन को मद मस्त, प्रेम, आपसी एकता, सौहार्द एवं सहयोग की भावना विकसित कर इस मास की अंतिम तिथि पूर्णिमा के दिन सारे गीले शिकवे को होलिका के अग्नि में आहुति देकर चैत्र मास के प्रथम प्रतिपदा को होली के बिभिन्न रंगों, अबीर गुलाल से सराबोर होकर समस्त कटुता को भुला कर एक दूसरे से गला मिलना तथा बड़े बुजुर्गों के चरण छूकर आशीर्वाद प्राप्त करना सच में मानव तन पाने की सार्थकता है और इस लोक में खुशी बटोरने और परलोक संवारने का एक समुचित अवसर है जो हमें वसंत ऋतु और माता सरस्वती की प्रेरणा से मिलती है।