औरंगाबाद(लाइव इंडिया न्यूज 18 ब्यूरो)। विश्व एड्स दिवस के पर मंगलवार को सिविल सर्जन कार्यालय के सभाकक्ष में सेमिनार का आयोजन किया गया।
सेमिनार की अध्यक्षता सिविल सर्जन डॉ. अकरम अली ने की। सेमिनार में जिला संचारी रोग पदाधिकारी डॉ. रवि रंजन ने एचआईवी-एड्स पर प्रकाश डाला और इसके बचाव एवं लक्षण के बारे में विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने कहा कि यदि माता-पिता दोनों एचआईवी से संक्रमित हैं तो उनसे एक स्वस्थ बच्चे का जन्म हो सकता है लेकिन उन्हें एआरटी की दवा लेते रहना होगा एवं बच्चे के जन्म के बाद नेविरपाइन नामक दवा को देते रहना होगा। सेमिनार में सिविल सर्जन ने भी एचआईवी से बचाव के बारे में जानकारी दी गई।
उन्होंने कहा कि एचआईवी से संक्रमित व्यक्ति में गले में खराश, रात के दौरान पसीना, बढ़ी हुई ग्रंथियां, वजन घटना, बुखार, ठंड लगना, थकान, दुर्बलता, जोड़ो का दर्द, मांसपेशियों में दर्द आदि इस तरह के लक्षण पाएं जाते हैं। इस मौके पर जिला गैर संचारी रोग पदाधिकारी डॉ. कुमार महेंद्र प्रताप, अजीत शर्मा, अर्जुन प्रसाद, अनुज कुमार पाठक, राकेश राय, संतोष कुमार, सुधीर कुमार, मुकेश कुमार समेत एएनएम, आशा कार्यकर्ता व अन्य स्वास्थ्य कर्मी मौजूद थे।
1 दिसंबर 1988 से शुरु हुआ विश्व एड्स दिवस मनाया जाना-
विश्व एड्स दिवस की पहली बार कल्पना 1987 में अगस्त के महीने में थॉमस नेट्टर और जेम्स डब्ल्यू बन्न द्वारा की गई थी। थॉमस नेट्टर और जेम्स डब्ल्यू बन्न दोनों डब्ल्यूएचओ(विश्व स्वास्थ्य संगठन) जिनेवा, स्विट्जरलैंड के एड्स ग्लोबल कार्यक्रम के लिए सार्वजनिक सूचना अधिकारी थे। उन्होंने एड्स दिवस का अपना विचार डॉ. जॉननाथन मन्न(एड्स ग्लोबल कार्यक्रम के निदेशक) के साथ साझा किया, जिन्होंने इस विचार को स्वीकृति दे दी और वर्ष 1988 में 1 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस के रुप में मनाना शुरु कर दिया। उनके द्वारा हर साल 1 दिसम्बर को सही रुप में विश्व एड्स दिवस के रुप में मनाने का निर्णय लिया गया।