किसी भी देश की शिक्षा की तस्वीर यह बताती है कि वहां की सरकार की प्राथमिकता में शिक्षा का क्या स्थान है? सरकार देश के सामरिक हितों के साथ -साथ कैसी मानव संसाधन की परिकल्पना करती है एवं उस परिकल्पना को साकार करने के लिए किस प्रकार के उपाय करती है? हाल के वर्षों में दुनिया भर के बेहतर गुणवत्ता वाले विश्वविद्यालयों की सूची में भारत के एक भी विश्वविद्यालय का नाम शामिल नहीं होने के बाद से यह उम्मीद की जा रही थी कि सरकार इस मामले में कोई ठोस पहल करेगी। ताकि देश में शिक्षा की स्थिति में सुधार हो। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय कमेटी द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को मंजूरी मिलने के बाद इसे आशा भरी नजरों से देखा जा रहा है।
यह इस मायने में भी सुखद पहल है कि देश की शिक्षा नीति में करीब 34 साल कोई बदलाव किया गया है। गौरतलब है कि 1968 और 1986 के बाद यह तीसरी राष्ट्रीय शिक्षा नीति है, जिसका मसौदा 2019 में ही तैयार कर लिया गया था। इसरो प्रमुख रहे चुके डॉ. के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में गठित समिति ने साल 2017 में ही इसके मसौदे की तैयार शुरू कर दी थी, जिसपर अब प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता वाली कैबिनेट ने मंजूरी देकर स्कूल शिक्षा समेत उच्च शिक्षा में परिवर्तन की राह को हरी झंडी दे दी है। इस शिक्षा नीति के तहत शिक्षा को हर स्तर पर छात्र हितों को साधने के साधन के रूप में प्रस्तुत किया गया है। जिससे छात्रों पर पढ़ाई का बोझ कम होगा। छात्र रट्टा मार पढ़ाई ना करके कुछ सीखने योग्य पढ़ाई करेंगे और भारत के विकास में अहम भूमिका निभाएंगे। इसी सारगर्भित बदलाव में छुपी है रोजगारपरक शिक्षा की कुंजी। यहाँ समझना होगा कि क्या कारण है कि कुछेक क्षेत्रों को छोड़ दिया जाए यो बाकी सभी असंगठित रोजगार के क्षेत्रों को बहुत सम्मान की दृष्टि से नही देखा जाता? अगर यूरोप के देशों के शिक्षण व्यवस्था से तुलना की जाए तो कई विकसित देशों में ऐसी शिक्षण व्यवस्था है जो छात्रों के अकादमिक विकास के साथ साथ उनके अंदर कौशल विकास भी करती है जिससे अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करते हुए छात्र अपनी पढ़ाई पूरी करते हैं और रोजगार के मामले में आत्मनिर्भर बनते हैं।
भाजपा ने 2014 लोकसभा चुनाव के अपने घोषणा पत्र में भी नई शिक्षा नीति लाने की बात कही थी जो अब साकार हो गई है। 2014 में सरकार गठन के बाद से ही प्रधानमंत्री मोदी देश की शिक्षा नीति में व्यापक बदलाव और इसको रोजगार परक बनाने पर जोर देते आए हैं। ऐसे में राष्टीय शिक्षा नीति 2020 और आत्मनिर्भर भारत योजना इसमें मील की पत्थर साबित होंगी। नई शिक्षा नीति के तहत 2030 तक स्कूली शिक्षा में सौ फीसद जीईआर के साथ माध्यमिक स्तर तक एजुकेशन फ़ॉर ऑल का लक्ष्य रखा गया है। इससे पहले 10+2 पैटर्न फॉलो किया जाता था, परंतु नई शिक्षा नीति के आने से 5+3+3+4 के पैटर्न को फॉलो किया जाएगा। नई प्रणाली में प्री स्कूलिंग के साथ 12 साल की स्कूली शिक्षा और तीन साल की आंगनवाड़ी होगी। इसके तहत छात्रों की शुरुआती स्टेज की पढ़ाई के लिए तीन साल की प्री-प्राइमरी और पहली तथा दूसरी क्लास को रखा गया है। अगले स्टेज में तीसरी, चौथी और पांचवी क्लास को रखा गया है। इस दौरान प्रयोगों के जरिए बच्चों को विज्ञान, गणित, कला आदि की पढ़ाई कराई जाएगी। इसके बाद मिडिल स्कूल यानी 6-8 कक्षा में सब्जेक्ट का इंट्रोडक्शन कराया जाएगा। कक्षा छह से ही प्रोफेशनल और कौशल विकास कोर्स भी शुरु किए जाएंगे। स्थानीय स्तर पर इंटर्नशिप भी कराई जाएगी। व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास पर जोर देने का मकसद बच्चों को स्कूली शिक्षा के दौरान ही रोजगार हासिल करने के लायक बनाना है।
नई शिक्षा नीति के तहत वोकेशनल स्टडीज पर भी फोकस किया जाएगा। अभी की स्थिति की बात की जाए तो हमारे देश में वोकेशनल स्टडीज सीखने वाले छात्रों की संख्या 5 फीसद से भी कम है। नई शिक्षा नीति के अंतर्गत कक्षा छठी से कक्षा आठवीं तक के छात्रों को वोकेशनल स्टडीज सिखाने पर फोकस किया जाएगा। वोकेशनल स्टडीज में बागवानी, लकड़ी का काम, मिट्टी के बर्तन, बिजली का काम इत्यादि से संबंधित जानकारी छात्रों को दी जाएगी। भारत की नई शिक्षा नीति के अंतर्गत 2025 तक कम से कम 50 फीसद छात्रों को वोकेशनल स्टडीज पढ़ने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसके जरिए बच्चे स्कूल समय से ही ये जान सकेंगे कि उनको किस काम में रुची है और वे आगे क्या करना चाहते हैं। ऐसे में व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास के जरिए वे काम देने वाले बनेंगे। नई शिक्षा नीति में सरकार के इस प्रयास से देश में बढ़ रही बोरोजगारी की समस्या का हल भी छुपा है।
यह नीति समाज के हर तबके को ध्यान में रखकर तैयार की गई है, जिससे युवाओं में स्वरोजगार अपनाने और उसे बढ़ाने को प्रोत्साहन मिलेगा। युवाओं के बीच कैसे क्रिएटिव और इनोवेटिव सोच पैदा की जाए इसमें इस ओर भी ध्यान दिया गया है। अब तक एक लाचार युवा पीढ़ी जो शिक्षा ग्रहण (डिग्री लेने) कर लेने के बाद भी अपने आप को रोजगार से दूर पाता था। वह इस नई शिक्षा नीति से अपने आप को रोजगार परक बना पाएगा। दरअसल देश को अब समझना होगा कि बड़े लक्ष्यों को हासिल करने के लिए हर स्तर पर छोटे छोटे सुधार अत्यंत आवश्यक हैं। लोकतांत्रिक मूल्यों की दुहाई, सामाजिक न्याय, गरीबी बेरोजगारी इत्यादि चिल्लाते चिल्लाते हम 70 साल आगे आ गए हैं और ये जो दूरी हमने तय की है, ऐसी भी नही है कि हम सीना ठोक के कह सकें कि हमने कुछ बड़ा लक्ष्य हासिल किया है, ऐसे में एक ठोस नीति जिसमे भारतीय दर्शन के सार के साथ साथ तकनीकी विकास के कौशल निहित हों, अत्यंत आवश्यक हो गयी है। भारतीय दर्शन और तकनीकी का समागम ही भारतीय छात्रों की समस्या को समझेगा और उसे हल करेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आत्मनिर्भर भारत के सपने को भी इस नीति में एक सशक्त रूप से जोड़ने का प्रयास किया गया है, जो समाज में सभी भ्रांतियों को तोड़ते हुए तमाम तरह की रूढ़िवादी विचारधाराओं को खत्म करते हुए शिक्षा के स्तर को सुधारने का काम करेगी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक नया और सुगम शिक्षण प्रणाली विकसित करेगी और समाज के हर वर्ग का हाथ मजबूत करेगी।
लेखक- प्रोफेसर आतिश पराशर, छात्र कल्याण अधिष्ठाता, दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, गया।