वैसे चौधरी अजित सिंह से मेरी मुलाकात का सिलसिला सन 2003 से शुरू हो चुका था, जब मैं बतौर पत्रकार 2003-2004 के बजट के पहले कृषि मंत्री अजित सिंह से ‘बजट से किसानों और कृषि मंत्रालय को कितनी उम्मीद है’ पर प्रतिक्रिया लेने ईटीवी की तरफ से तुगलक रोड़ के उनके सरकारी आवास पर पहुंचा था। उन्होंने साफ-साफ कहा था कि किसी मेरा परिवार किसानों का हिमायती रहा है। अगर बजट में किसान और किसानी के लिए पर्याप्त आवंटन नहीं होगा और अगर यह बजट किसानों के हितों के अनुकूल नहीं होगा, तो मैं मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देने में थोड़ा भी नहीं हिचकूंगा।
इसके बाद से चौधरी अजित सिंह के साथ मेरे व्यक्तिगत ताल्लुकात अच्छे रहे। इधर बहुत सालों के बाद मैं मार्च 2021 में चौधरी अजित सिंह से मिलने उनके निजी आवास 16 ग्रीन एवेन्यू, वसंतकुंज, दिल्ली पहुंचा। मुलाकात का उद्देश्य था- लोकनायक जयप्रकाश नारायण पर प्रस्तावित पुस्तक “शीर्षक- जयप्रकाश नारायण (साधारण व्यक्ति, असाधारण व्यक्तित्व)” के लेखन के सिलसिले में।
संदेश पहुंचते ही चौधरी अजित सिंह ने मुझे मिलने के लिए फौरन बुलवा लिया। साथ में चौधरी अजित सिंह एक डिब्बा काजू बर्फी भी लाये थे। तकरीबन चार घंटे की मुलाकात और बातचीत में चौधरी साहेब ने कोई दो पीस काजू बर्फी खोंट-खोंट कर खाया होगा बाकी तकरीबन सारी मिठाइयां मुझे डिब्बे से निकालकर देते रहे। अरे भाई, तुम तो जवान हो, खाओ न। पूरी बातचीत में चौधरी साहेब इस बात से ज्यादा चिंतिंत दिखे कि जाटों के साथ दूसरी किसी जातियों का गठजोड़ नहीं हो पाता है क्योंकि दिल के अच्छे होते हुए भी जाटों की बोली अन्य लोगों से विलगाव पैदा करती है। इसके लिए जाटों को स्वयं में सुधार लाना होगा।
बातचीत के क्रम में चौधरी अजित सिंह ने बताया कि उन्होंने अपनी बीटेक की डिग्री आईआईटी, खड़गपुर से हासिल की थी तथा उसके बाद एमटेक की डिग्री इलिनियॉस, अमेरिका से प्राप्त की थी। तत्पश्चात आईबीएम कंपनी में नौकरी ज्वाइंन किया। इसके बाद अमेरिका में ही रहने लगा।
चौधरी अजित सिंह ने बताया कि 1960 के दशक में चौधरी चरण सिंह ने जवाहर लाल नेहरु की आर्थिक नीतियों का विरोध कर कांग्रेस छोड़ दिया था। उतर प्रदेश सरकार की मंत्रिमंडल से भी चौधरी चरण सिंह ने त्यागपत्र दे दिया था। उस समय चौधरी चरण सिंह को बेटे चौधरी अजित सिंह प्रतिमाह 250 डॉलर भेजा करते थे।
चौधरी अजित सिंह ने यह भी बताया कि उनका राजनीति में आने का कोई इरादा नहीं था किन्तु 1986 में बड़े चौधरी साहेब के बीमार होने और उनकी छह महीने तक अस्पताल में तिमारदारी के क्रम में कर्पूरी ठाकुर सरीके नेताओं से मुलाकात व सलाह के बाद उन्होंने राजनीति ज्वाइंन किया।
चौधरी अजित सिंह बातचीत में बार-बार जिक्र करते रहे थे कि अब राजनीति में अच्छे लोगों को लोग जिताना पसंद नहीं करते हैं। देखो न! जयंत जैसे डाइनेमिक व यंग लड़के को लोगों ने हरा दिया। लेकिन चौधरी जयंत सिंह में चौधरी चरण सिंह की छाया मुझे दिखती है, वह भविष्य में एक दिन देश की राजनीति में जरूर कमाल करेगा और बड़े चौधरी साहेब की तरह देश का प्रधानमंत्री तक का सफर तय करेगा, ऐसा मुझे विश्वास है।
चौधरी अजित सिंह ने कहा, “भाई, पांडेय जी तुम्हारे बिहार में किसानों का क्या हाल है? संभव हो तो कोरोना के बाद एक बार औरंगाबाद के किसानों से मेरी मीटिंग करवाने का प्रयास करना।“ लेकिन नियति ने कोरोना के खत्म होने से पहले की चौधरी अजित सिंह को इहलोक की माया छोड़ने पर विवश कर दिया। खैर, व्यक्तिगत तौर पर चौधरी अजित सिंह निहायत शरीफ, सज्जन और मृदुल भाषी व्यक्ति थे। हे ईश्वर! चौधरी अजित सिंह को अपने श्रीचरणों में स्थान देने की कृपा कीजिएगा। शत-शत नमन, चौधरी अजित सिंह जी! आप बहुत याद आओगे।
(लेखक- राकेश पांडेय वरिष्ठ पत्रकार हैं।)