ललित सुरजन और मंगलेश डबराल प्रतिरोध की संस्कृति के दो सबसे बड़े हस्ताक्षर थे : संतोष दीक्षित

‘प्रलेस’ और ‘ ऐप्सो’ द्वारा मैत्री शांति भवन में श्रद्धाजंलि सभा का किया गया आयोजन

पटना (लाइव इंडिया न्यूज18 ब्यूरो)।   प्रगतिशील लेखक संघ ( प्रलेस) और  अखिल भारतीय शांति व एकजुटता संगठन ( ऐप्सो) के तत्वाधान में  बी.एम.दास रोड स्थित  मैत्री शांति भवन में  प्रसिद्ध  पत्रकार व  संस्कृतिकर्मी  ललित सुरजन और प्रख्यात कवि मंगलेश डबराल की श्रद्धाजंलि सभा का आयोजन  किया गया। श्रद्धाजंलि सभा में शहर जे  साहित्यकार, कवि, रंगकर्मी, सामाजिक कार्यकर्ता आदि उपस्थित हुए। सुप्रसिद्ध कथाकार संतोष दीक्षित ने श्रद्धाजंलि सभा को संबोधित करते हुए कहा “ललित सुरजन और मंगकेश डबराल प्रतिरोध की संस्कृति के दो सबसे बड़े हस्ताक्षर थे। ललित सूरजन के पिता ने ही  ‘देशबन्धु’  अखबार की स्थापना की थी।

पत्रकारिता जब साहित्य से विमुख हो जाता है तो उसका मूल्यों  से  जुड़ाव नहीं रह जाता। ललित सुरजन का बड़ा योगदान रहा है मूल्यों की पत्रकारिता को बचाने में। आज तो हमारे देश में ऐसी  सरकार है जो अपने ही लोगों का ख्याल नहीं रखती।” कवि आदित्य कमल ने श्रद्धाजंलि वक्तव्य में कहा ”  इस कैरोना काल में हमलोगों ने कई लोगों को खोया है। एक 80 साल के बूढ़े कवि  वरवर राव  से सत्ता डरने लगी है। आज आलोकधन्वा, राजेश जोशी, मंगलेश डबराल इनलोगों से कविता सीखा है। पूंजीवाद की व्यथा,  तकलीफ़ से जुडकर सामने लाने का कोशिश करती है।

मंगलेश की ‘पहाड़ पर लालटेन’ बहुत मशहूर हुआ। दुःख के सागर को चलो, मिल के खंगाला जाए, गहरे मंथन से लल्ल रत्न निकाला जाए।”मज़दूर नेता और माकपा के केंद्रीय समिति के सदस्य अरुण मिश्रा ने कहा  ” जनता के पक्ष  में, आंदोलन के पक्ष में जो प्रतिबद्धता थी उससे हम वाकिफ हैं। अभी जो पूरा तंत्र जिस जिस्म से संवेदनहीन हो चुका है। लगातार दुष्प्रचार चल रहा है। एक नैरेटिव पैदा करने जी कोशिश चल रही है। “प्रगतिशील लेखक संघ के उपहासचिव अनीश अंकुर ने कहा ” ललित सुरजन  कई दफे बिहार आये। उनको दुनिया  घूमने  का काफी शौक था बिहार में उनका बक्सर आना हुआ। पिछले साल ‘ ऐप्सो’ के राज्य सम्मेलन में शामिल हुए। देश व दुनिया के स्तर और बढ़ रहे  फासीवादी  शक्तियों की बढ़ती उनकी चिंता के केंद्र में थे। कि आखिर भारत जैसे देश मे कैसे एक ऐसी ताकत सत्ता में चली आती है जिसका राष्ट्र निर्माण में कोई योगदान ही नहीं था। जबकि मंगलेश डबराल ने इन खतरों के प्रति ‘गुजरात के मृतक का बयान कविता में सचेत सचेत किया था।

मंगलेश ने अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता को कभी छोआय नहीं जबकि कलाकार ऐसे वक्त में  चुप्पी साधे रहना में भलाई समझते हैं।”युवा एक्टीविस्ट इंद्रजीत ने मंगलेश डबराल की कविता ‘ गुजरात के मृतक का बयान’ का पाठ किया।हिंदी साहित्य के प्राध्यापक कुमार सर्वेश ने अपने संबोधन में कहा ” मंगलेश डबराल  से थोड़ा बहुत परिचय था। देश में पांच ऐसे कानून रहे जिसने देश को लगभग बर्बादी के कगार ओर पहुंचा दिया।  शिक्षा नीति, कृषि नीति  उनमें सबसे प्रमुख है। भूमण्डलीकरण के तीन शिकार रहे हैं बच्चे, बूढ़े और महिलाएं। 

आपदा को अवसर में तब्दील करते हुए कैसे आकाओं को खुश करता है ये हमें वर्तमान प्रधानमंत्री से सीखना है। मंगलेश डबराल ने  गंभीर  भावों को जिस सहजता से  अभिव्यक्त किया वैसे विरले हुआ करते  हैं।” कुमार सर्वेश ने मंगलेश डबराल की कविता ‘प्यारे बच्चों’ का पाठ किया।  प्रलेस के राजकुमार शाही ने मंगलेश डबराल की कविता का पाठ करते हुए कहा ” जिस सहजता से कविता को पहुंचाया जाए वो मंगलेश डबराल से सीखा जाए। नई पीढ़ी को कैसे विज्ञान व गणित के आल्वा साहित्य को कैसे  पहुंचाया जाए ये हमें मंगलेश व ललित सुरजन  के व्यक्तित्व से सीखना है।” 

इंजीनियर  सुनील सिंह ने अपने संबोधन में कहा ” इतने बड़े पत्रकार और कवि का जाना बहुत बड़ी क्षति है। मंगलेश जी ने तानाशाही के खिलाफ लिखा है। हम फासीवाद की बात करते हैं लेकिन मंगलेश डबराल ने तानाशाह कविता लिखकर उसको सबसे अच्छे ढंग से अभिव्यक्त किया। ” सुनील सिंह ने वर्णमाला, रोटी व कविता जैसी  कविताओं का पाठ किया। आतताई भाषा की वर्णमाला छीन लेते हैं वे भाषा की हिंसा को समाज की हिंसा में तब्दील कर देते हैं।

ISCUF के राज्य महासचिव रवींद्र नाथ राय ने ललित सुरजन के साथ  अपने संबंधों के याद करते हुए  चेकोस्लोवाकिया के अनुभवों के साझा करते हुए बताया कि ” ललित सुरजन ने हमें बताया कि कैसे नाजी सेना के खिलाफ दो  प्रेमी जोड़ों की याद में दो गुलाब के लगाए गए  फूलों के संबन्ध में बताया था। जब जब ललित सुरजन से मुलाकात हुई उन्होंने अपने ‘ देशबन्धु’ अखबार के माध्यम से  वहां की राजनीति में हस्तक्षेप किया करते थे। मंगलेश जी से दिल्ली में भी मुलाकातें हुआ करती थी। वे सामान्य बैठकों में कभी कभी  सहजातावश  कविता   की दो पंक्तिया दुहराते  दिया करते थे। हमेशा हमलोगों को कहा करते कि कुछ करो, कुछ बड़ा काम करो।”

मानवाधिकार कार्यकर्ता गोपाल कृष्ण ने ललित सुरजन को याद करते हुए कहा ” उनसे दिल्ली और छत्तीसगढ़ में मुलाकातें हुई। वे कहा करते कि पत्रकारिता  जे  दुःस्वप्न के बात की थी। ‘ तद्भव’  के मार्च अंक में उन्होंने पत्रकारों को सलाह देते हुए कहा कि पत्रकारों को ‘अमूल’ जी तरह कोऑरेटिव बनाकर अखबार निकालना चाहिए और स्वयं उसका मालिक बनना चाहिए। साथ ही ऐसे सभी छीटे अखबारों व वेबसाइटों का सम्पर्क कायम हो। तभी हम आगे बढ़ सकते हैं। मंगलेश डबराल से हमेशा रैलियों में मुलाकातें होती रहती।”

श्रद्धाजंलि सभा के AISF के अक्षय ने कहा ”  साहित्यकार दो तरह के होते थे जो दरबार के लिए कविता लिखते थे। और उसे भी साहित्यकार थे जो जनता के सुख-दुख को प्रकट किया करते थे। जब साहित्य में गलत लोग आ जाते हैं। तो वह वास्तविक नहीं काल्पनिक  प्रतिबिंब बनाता है।”बी.एन विश्वकर्मा ने अपने संबोधन में कहा ”  जो जनता के हित में बोले वही उसकी कवि होता है। उसी से प्रतिरोध का जन्म भी होता है।” श्रद्धाजंलि सभा का संचालन  युवा रंगकर्मी जयप्रकाश ने  किया।

संचालन के दौरान जयप्रकाश ने  मंगलेश की कविता ” “ताकत की दुनिया में जाकर क्या करूंगा/मैं सैकड़ों -हजारों जूते-चप्पल लेकर क्या करूंगा/मेरे लिए एक जोड़ी जूते रखना ही कठिन है/ मैं इतने सारे कमरों का क्या करूंगा/ये दुनिया कोई होटल नहीं है/और मेरी नींद का आकर एक चिड़िया से ज्यादा कुछ नहीं है/ मैं सिक्कों ओर अपना नाम क्यों खुदवाऊंगा / मैं जानता हूं बाजार से बाहर उनका कोई मोल नहीं है।” श्रद्धाजंलि सभा मे अंत में ललित सुरजन और मंगलेश डबराल की याद में दो मिनट का मौन रखा गया। मौजूद लोगों में प्रमुख थे कौशल किशोर झा, कपिलदेव वर्मा, राकेश कुमुद, जीतेन्द्र कुमार , गौतम गुलाल, पुष्पेंद्र शुक्ला, विनीत राय, आरजू, इकराम,  ग़ालिब कलीम आदि प्रमुख थे।