मध्य प्रदेश के कोरकू आदिवासियों ने बंजर जमीन को बनाया उपजाऊ

मोहम्मद आसिफ सिद्दीकी, खंडवा, मध्य प्रदेश: खंडवा जिला मुख्यालय से 55 किमी दूर इंद्र खेड़ा में अंदर घुसते ही 101 रिपोर्ट्स को अहसास हो गया कि यह विकास खंड के एक ही ब्लॉक के अन्य गांवों से अलग है. यहां हर घर के बाहर कम से कम दो पौधे लगाए गए थे, ताकि समय के साथ-साथ वे बड़े पेड़ बन जाएं. एक घर का बरामदा छत पर आम के पत्तों और दो आदमकद पुतलों से सजाया गया था. यह इस घर में किसी की शादी होने का इशारा कर रहा था.

यह स्ट्रीट प्लग संरचना है। ऐसे नालों के माध्यम से पहाड़ों से बहने वाले व्यर्थ जल को रोकने के लिए यहां बने छोटे-छोटे पत्थर के बांधों ने खेतों को नया जीवन दे दिया है. (फोटो क्रेडिट- केडीएसएस खंडवा)

महिलाएं मंगल गीत गा रही थीं और पुरुषों की एक टोली ढोल की थाप पर पारंपरिक कोरकू नृत्य करने के इंतजार में थी. नीलाबाई के घर पर उनके बेटे विनोद की शादी का जश्न चल रहा था. लेकिन अगर कुछ साल पहले की बात करें तो उनके लिए इस तरह का उत्सव कल्पना से परे की बात थी.

मध्य प्रदेश के खंडवा जिले के एक ब्लॉक, खालवा की किसान नीलाबाई ने न केवल दो साल पहले अपने पति को खो दिया, बल्कि घर चलाने के लिए उनके पास आमदनी का कोई जरिया भी नहीं था. उन्होंने अपनी बंजर जमीन को गिरवी रखा हुआ था और काम के सिलसिले में उसे अपने बेटे के साथ दूसरे राज्यों में जाना पड़ता. लेकिन जब नीलाबाई की मुलाकात लक्ष्मी मिंज से हुई, तभी उन्हें एहसास हुआ कि वह जल संरक्षण के प्रयासों के जरिए अपनी बंजर जमीन को भी उपजाऊ बना सकती हैं. और इस तरह से नीलाबाई कर्ज के चक्र को तोड़ बाहर निकल आईं.

मिंज ‘सबल’ परियोजना से जुड़े एक खालवा स्थानीय निवासी हैं. इस योजना को खंडवा डायोकेसन सोशल सर्विसेज (केडीएसएस) और चिकलधारा में जीवन विकास संस्था के साथ साझेदारी में कैरितास इंडिया द्वारा चलाया जा रहा है. परियोजना का उद्देश्य राज्य में कोरकू आदिवासी समुदाय को विभिन्न हस्तक्षेपों के जरिए तीव्र खाद्य और पोषण असुरक्षा से मुक्त करना है. इसमें जल-मृदा संरक्षण से उनकी आजीविका के स्रोतों को मजबूत करना भी शामिल है.

मिंज की सहायता से नीलाबाई अपनी गिरवी रखी जमीन को वापस पाने के लिए जनपद पंचायत से कर्ज ले पाने में सक्षम हो पाई थी. उसने सरल लेकिन प्रभावी तरीके से अपने खेतों की उपज को तीन गुना कर दिया.
लेकिन इस गांव में सिर्फ नीलाबाई ही संरक्षण उपायों की लाभार्थी नहीं है.

लॉकडाउन के समय यहां के किसानों ने अपने खेतों में नमी बनाए रखने के लिए एक जल संचयन समाधान तैयार किया. उन्होंने अपने खेतों में फैले पत्थरों को इकट्ठा किया और एक जलग्रहण क्षेत्र बनाने के लिए उन्हें समतल कर डाला. यह सब बारिश के पानी को खेत की मिट्टी में बनाए रखने के लिए किया गया था. यह उपाय काफी कारगर साबित हुआ. जल्द ही, इस क्षेत्र के कुओं का कुल जल स्तर 0.5 फीट से बढ़कर 3 फीट हो गया. देवलीकला गांव के सार्वजनिक कुएं का कुल जल स्तर मार्च 2021 में बढ़कर 13.78 फीट हो गया, जो मार्च 2019 में 10.83 फीट था.

केडीएसएस के निदेशक फादर जयन एलेक्स ने कहा, “कैरितास की मदद से हमने वैज्ञानिक सोच के जरिए 3,000 कोरकू आदिवासियों की खेती करने के तरीकों को बदल डाला. इस परियोजना की वजह से 15 गांवों में 50 हेक्टेयर से ज्यादा जमीन को फसल योग्य बनाया जा सका है.”

लगातार बदलाव के लिए छोटे प्रयास

इस परियोजना के जरिए नीलाबाई जान पाई कि मिट्टी की सबसे ऊपरी उपजाऊ परत को बह जाने से कैसे रोका जाना है. इस बार उन्होंने अपने खेत में लगभग 20 क्विंटल गेहूं, धान और मक्का उगाई हैं. जो पिछले साल मानसून के दौरान हुई फसल से 4 से 5 क्विंटल ज्यादा है.

कुछ इसी तरह से नीलाबाई के घर के सामने रहने वाले शोभाराम पलवी ने भी अपने खेतों में एक जलग्रहण क्षेत्र बनाकर वर्षा जल का संचयन किया और अपनी उपज को दोगुना से भी ज्यादा कर लिया.

इसके अलावा कुओं का जल स्तर बढ़ जाने की वजह से उनके जैसे बहुत से किसानों ने सर्दियों की फसलों की बुवाई भी शुरू कर दी है. चार साल पहले पलवी अपनी फसल के लिए बारिश पर निर्भर थे और मौसमी प्रवासी मजदूर के रूप में दिन में 15 से 18 घंटे काम करते थे. आज डोंगलिया गांव में अपने 7 एकड़ के खेत में दो मौसम की फसल उगा पाने में सक्षम है.

यहां के किसानों का मानना है कि जल संचयन के उपाय इतने कारगर साबित हुए हैं कि वे अब बिना कुएं के भी तुवर, धान, रागी और मक्का जैसी फसलें उगा सकते हैं. मानसून के दौरान खेतों में मेढ़ लगाकर पानी को नियंत्रित कर फरवरी और मार्च में फसलों को जीवन देते हैं.
कई घरों की महिलाएं आगे आकर योजना में भाग ले रही हैं. जब सबल ने धन्नालाल भाऊ से उनकी ज्यादातर बंजर हो चुकी 10 एकड़ जमीन के लिए संपर्क किया, तो यह उनकी पत्नी मुन्नीबाई ही थीं, जो सुझाए गए उपायों के जरिए अपने खेत को उपजाऊ बनाने की इच्छुक नजर आईं. उसने बोरियों का इस्तेमाल करके अपनी जमीन से सटे नाले पर एक चेक डैम बनाया. उनके प्रयास समय के साथ रंग लाए. आज उनकी पूरी 10 एकड़ जमीन खेती योग्य हो गई है.

केडीएसएस के निदेशक ने 101 रिपोर्टर्स को बताया कि इन गांवों में पानी बचाने के लिए नए प्रयोग जैसे गली प्लग (नाली अवरोधक), मेढ़ और निरंतर समोच्च खत्तियों का इस्तेमाल किया जा रहा है. पिछले एक साल में 47, कुल मिलाकर 185 जल-संरक्षण संरचनाओं का निर्माण किया गया. इसके अलावा खेतों में रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल भी पूरी तरह से बंद हो गया है.

संरक्षण प्रयासों के एक अन्य लाभार्थी सुखाराम गांजा ने कहा, “मैंने खेत में डीएपी और यूरिया का इस्तेमाल करना पूरी तरह से बंद कर दिया है. अब मैं सिर्फ गोमूत्र और गोबर से तैयार जैविक खाद अपने खेतों में डालता हूं.”
सामुदायिक भागीदारी के जरिए सफलता
2016 में किए गए एक सर्वे के बाद जल-संरक्षण परियोजना ने नीलाबाई, पलवी और सुखाराम सहित कई किसानों की मदद की.

परियोजना के समन्वयक राकेश करोल ने 101रिपोर्टर्स को बताया कि सर्वे के दौरान उन्होंने ग्रामीणों से बात की और उनके खेतों का दौरा किया. उनकी सबसे बड़ी समस्या पानी की कमी थी. उसी साल उन्होंने डोंगलिया पंचायत में जल-मृदा संरक्षण कार्य शुरू किया और फिर पड़ोसी गांवों, सुंदरदेव और बूटीघाट में भी इस योजना को लेकर आए.
करोले ने कहा, “ज्यादातर काम लॉकडाउन के समय हुआ. तब पलायन कर चुके कई ग्रामीण वापस अपने गांव लौट आए थे. हमने उन किसानों के साथ काम किया, जिनके पास जमीन तो थी लेकिन वे उस पर खेती नहीं कर पा रहे थे.”
इस अभियान के तहत, 255 ग्रामीणों ने जल संचयन के जरिए देवलीकला गांव में 7 हेक्टेयर में फैले एक पुराने तालाब को भी पुनर्जीवित कर डाला. इसमें तकरीबन एक महीने का समय लगा था. पहले तालाब का पानी मार्च में सूख जाता था, लेकिन अब रबी के मौसम में भी खेतों की सिंचाई के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है. हालांकि फरवरी के बाद किसान खुद से जल स्तर को बनाए रखने के लिए तालाब से सिंचाई मोटर हटा लेते हैं. यह विशिष्ट कार्य ‘काम के बदले भोजन’ प्रणाली का हिस्सा था, जिसमें उन्हें राशन (2 किलो चावल, आधा किलो तुवर दाल, आधा किलो तेल और 250 ग्राम मसाले) मिलता था. इसने कैश-फॉर-वर्क (प्रति व्यक्ति 200 रुपये) के बदले 7240 व्यक्ति-दिवस भी दर्ज किए, जिसमें लोग अपने खेतों पर काम करते थे।

2020 से स्थानीय सबल टीम ने मार्च, जुलाई और नवंबर में साल में तीन बार ब्लॉक में पानी के स्तर को मापा. उन्होंने एक मापने वाले टेप को एक पत्थर के साथ कुएं के आधार तक बांधा और टेप के अंतिम बिंदु को रिकॉर्ड किया जो नम था. इस गतिविधि में समुदाय को भी शामिल किया गया, जिससे उन्हें अपने जल-संरक्षण प्रयासों के प्रभाव को देखने में मदद मिली.

करोल के अनुसार, “उनके जल-मृदा संरक्षण प्रयासों के बाद किसानों को एक ही साल में काफी फायदा पहुंचा है. भूजल स्तर में 2 से 3 फीट तक की बढ़ोतरी ने भी उन्हें इस काम के लिए प्रेरित किया है. इस परियोजना को हाथ में लेने के बाद करोल कई गुणा पैदावार की बात कर रहे हैं. हर साल 3,000 से अधिक लोग इस क्षेत्र से पलायन कर जाते थे. लेकिन उनकी संख्या में अब 30 फीसदी की गिरावट आई है.

केडीएसएस प्रमुख ने कहा, “हमने उन खेतों में उत्पादन बढ़ाया है जहां सिर्फ एक फसल और कम अनाज हुआ करता था. आदिवासियों की यह पहल न केवल उनके जीवन में खुशियां ला रही है, बल्कि अन्य गांवों के लिए भी एक मिसाल कायम की है.”

संपादनः देवयानी निघोस्कर
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