पटना(लाइव इंडिया न्यूज18 ब्यूरो)। जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष व सीपीआई नेता कन्हैया कुमार ने आज राहुल गांधी के समक्ष कांग्रेस पार्टी की मेम्बरशिप ली। कन्हैया ने अपने साथ aisf में आने खास करीबी रहे बिहार के तीन नेताओं के अलावा मध्यप्रदेश से आने वाले dsf के एक बड़े नेता को भी कांग्रेस की सदस्यता दिलवाई।
राहुल गांधी ने सभी नेताओं का पार्टी में स्वागत किया। कन्हैया के साथ कांग्रेस में शामिल होने वाले नेताओं में AISF से पीयूष रंजन झा, सुशील कुमार व रंजीत पण्डित व dsf से अंशुल कुमार शामिल हैं।
जानिए क्या रहा है इन नेताओं का बैकग्राउंड
पीयूष रंजन झा
पूर्वी चंपारण के मोतिहारी से आने वाले मैथिल ब्राह्मण पीयूष भी BJP विरोध के कारण कन्हैया के संपर्क में रहे हैं। छात्र राजनीति में उन्हें एक बेहतरीन संगठनकर्ता के रूप में जाना जाता है। कन्हैया के साथ इन्होंने पटना में AISF और JNU में AISF के बैनर तले साथ काम किया है। कहा जाता है कि 2015 के JNU छात्र संघ चुनाव में पीयूष ने कन्हैया को जीत दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। पटना के AN कॉलेज से पढ़ाई के बाद JNU के अंतरराष्ट्रीय अध्ययन केंद्र में पीएचडी शोधार्थी हैं। वह विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और अखबारों में अंतरराष्ट्रीय विषयों पर लिखते रहते हैं।
करीब एक दशक से अधिक समय से छात्र राजनीति से जुड़े रहे हैं। बिहार से दिल्ली तक इनकी पहचान आक्रामक छात्र नेता और कुशल संगठनकर्ता के रूप में होती है। पीयूष ने दिल्ली जाने से पहले 2012 के पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव और 2013 में मगध विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में AISF को जीत दिलाने के लिए रणनीति तैयार की थी। 2017 में उन्होंने AISF को अलविदा कह दिया था। 2015 के JNU छात्र संघ चुनाव में पीयूष ने कन्हैया को जीत दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई थी।
सुशील कुमार
सुशील को बिहार में छात्र राजनीति का बड़ा चेहरा माना जाता है। कन्हैया और सुशील ने एक समय में एक साथ कॉलेज ऑफ कॉमर्स से छात्र राजनीति शुरू की। दोनों ने AISF के लिए काम शुरू किया। दोनों यहीं से दोस्त बने और अब तक यह दोस्ती कायम है। मगध विश्वविद्यालय और पटना विश्वविद्यालय के छात्र सुशील लगातार छात्रों की आवाज बनते रहे हैं। उन्होंने पटना लॉ कॉलेज से डिग्री ली है। AISF से राजनीतिक शुरुआत करने वाले सुशील लंबे समय तक संगठन के राज्य सचिव रहे हैं। अभी यह संगठन के राष्ट्रीय सचिव हैं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में बिहार राज्य कमेटी के भी ये सदस्य रहे हैं। एक दशक से अधिक समय से सुशील छात्रों की विभिन्न मांगों को लेकर सड़क पर उतर कर संघर्ष किया है। इनकी छवि प्रखर आंदोलनकर्ता की रही है। विधानसभा चुनाव 2020 में टिकट न मिलने के कारण इनकी पार्टी के साथ नाराजगी चल रही है। AISF से राजनीतिक शुरुआत करने वाले सुशील लंबे समय तक संगठन के राज्य सचिव रहे हैं।
रंजीत कुमार
लेफ्ट की राजनीति का चेहरा बने रंजीत कुमार को RTI एक्टिविस्ट के रूप में अधिक पहचाना जाता है। सरकार की योजनाओं को जनता तक पहुंचाने में होने वाले हेरफेर पर ये पैनी नजर रखते हैं। अपने RTI के जरिए इन्होंने कई बड़े अधिकारियों को मुश्किल में डाला है। सूचना के अधिकार के तहत उन्होंने कई ऐसे खुलासे भी किए हैं, जिसने सरकार को भी अपनी नीति बदलने पर मजबूर किया है। वे कोर्ट में भी जनहित के मामलों को ले जाकर लड़ने से हिचकिचाते नहीं हैं। हाजीपुर के उफरौल चौक निवासी रंजीत ने अपने छात्र राजनीतिक जीवन की शुरुआत ऑल इंडिया डीएसओ से की। बाद वे AISF से जुड़ गए। अभी ये AISF के बिहार राज्य सचिव के पद पर कार्य कर रहे हैं। साथ ही, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य कमेटी के भी सदस्य रहे हैं। विधानसभा चुनाव 2015 में इन्होंने वैशाली विधानसभा सीट से भाकपा प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरे। सफलता नहीं मिली तो विधानसभा चुनाव 2020 में उन्हें टिकट नहीं मिला। भाकपा की ओर से युवाओं की दावेदारी को नजरअंदाज किए जाने को लेकर वे काफी नाराज रहे हैं।लेफ्ट की राजनीति का चेहरा बने रंजीत कुमार को RTI एक्टिविस्ट के रूप में अधिक पहचाना जाता है।