पटना। रविवार को नेपाली मंदिर, कोन्हारा घाट से लेकर हरिहर नाथ मंदिर तक एक हेरिटेज वाक का आयोजन इंटैक, पटना और स्टार्टअप योर हेरिटेज के तत्वावधान में किया गया।
इंटैक पटना चैप्टर के कन्वेनर भैरव लाल दास के नेतृत्व में आयोजित इस कार्यक्रम में पटना के अरुणोदय संस्थान की बच्चियां और इतिहास, विरासत व संस्कृति से लगाव रखने वाले 50 से ज्यादा प्रबुद्ध जन शामिल रहे। इनमें श्री प्रेम शरण, कन्वेनर- इंटैक, बिहार स्टेट; रचना प्रियदर्शिनी- निदेशक योर हेरिटेज; कादम्बिनी सिन्हा- संचालक, अरुणोदय संस्थान; पुरातत्वविद श्री शिव कुमार मिश्रा, सामाजिक शोधकर्ता डाॅ. सुनील झा, रविशंकर उपाध्याय- पीआरओ, बिहार पर्यटन विभाग, पत्रकार जय भास्कर, रंगकर्मी जयप्रकाश आदि शामिल हुए।
यह हेरिटेज वॉक सबसे पहले नेपाली मंदिर, कोन्हरा घाट पर पहुंचा, जहां सभी विरासत प्रेमियों को बताया गया कि कौन-हारा घाट एक ऐतिहासिक घाट है, जहां पर प्रसिद्ध गज और ग्राह की लड़ाई में कौन हारा यह जानने की जिज्ञासा ही इस घाट के नामकरण के पीछे की वजह रही। जब भगवान नारायण श्री हरि विष्णु ने यहां पहुंचकर गज को ग्राह से बचाया तभी से गंडक नदी को नारायणी की भी संज्ञा दी गई। इसके बाद हेरिटेज वॉक नेपाली मंदिर पहुंचा जहां पर जानकारी देते हुए विशेषज्ञों ने बताया कि नेपाल के महाराजा ने इसका छावनी के तौर पर निर्माण कराया था, जहां मानव जीवन के महत्वपूर्ण अंग धर्म, अर्थ काम और मोक्ष के बारे में जानकारी दी गई है।
करीब 250 साल पहले इस मंदिर के निर्माण के दौरान काष्ठ कल का अद्भुत उदाहरण पेश किया गया और कला माध्यमों के जरिए कामकला की भी जानकारी दी गई है, ताकि लोग जीवन के इस महत्वपूर्ण पहलू से भी सार्वजनिक तौर पर परिचित हो सके। इसी कारण इस स्थान को उत्तर का खजुराहो भी कहा जाता है, लेकिन यह बहुत दुखद स्थिति है कि आज इस विरासत स्थल का बुरा हाल है। रखरखाव और बुनियादी संरक्षण के अभाव में मंदिर जीर्ण शीर्ण हो गया है इसके साथ ही काष्ठ कला बेहद जर्जर अवस्था में है।
इसके बाद हेरिटेज वॉक कबीर आश्रम के पास स्थित नवग्रह कुएं के पास पहुंचा जहां जानकारी दी गई कि इस कुएं के नौ हिस्से हैं जहां से अलग-अलग स्वाद के पानी प्राप्त होते हैं। इसके बाद हाजीपुर स्थित 16वीं शताब्दी में निर्मित पत्थर की मस्जिद देखने भी विरासत प्रेमियों की टीम पहुंची जहां यह जानकारी दी गई कि पटना सिटी और इस पत्थर की मस्जिद का निर्माण एक साथ ही मुगल काल में किया गया था। इसके बाद हरिहरनाथ मंदिर के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विशेषताओं को जानने के उपरांत टीम वापस पटना लौट आयी।