नई दिल्ली। देश के विकास के लिए निर्यात क्षमता बढ़ाने पर केंद्र सरकार और किसान साथ-साथ काम कर रहे हैं। इसी का परिणाम है कि आज भारत दुनिया में चीनी के सबसे बड़े उत्पादक के रूप में उभरा है और चीनी का उपभोक्ता होने के साथ-साथ दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक भी है। भारत ने चीनी सत्र 2021-22 में 5,000 लाख मीट्रिक टन से अधिक का रिकॉर्ड गन्ना उत्पादन किया। इसी वजह है कि ग्रीन एनर्जी की दिशा में भी तेजी से आगे बढ़ रहा है, एथेनॉल के उत्पादन से न सिर्फ चीनी मिलों को फायदा हो रहा है बल्कि समय पर गन्ना भुगतान भी हो रहा है। चीनी उत्पादन से जुड़ी उपलब्धियों पर एक नजर डालते हैं।
1.18 लाख करोड़ गन्ने की खरीद के लिए समय पर भुगतान
चीनी सत्र (अक्टूबर-सितंबर) 2021-22 भारतीय चीनी उद्योग के लिए कई मायनों में ऐतिहासिक साबित हुआ है। गन्ना उत्पादन, चीनी उत्पादन, चीनी निर्यात, गन्ना खरीद, गन्ना बकाया भुगतान और एथेनॉल उत्पादन के सभी रिकॉर्ड इसी सीजन के दौरान बनाए गए। गन्ना किसानों के भुगतान की बात करें, तो गन्ना सत्र 2021-22 के दौरान, चीनी मिलों ने 1.18 लाख करोड़ रुपये से अधिक के गन्ने की खरीद की है और भारत सरकार द्वारा बिना किसी वित्तीय सहायता (सब्सिडी) लिए हुए 1.12 लाख करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान जारी किया है। इसी प्रकार से, चीनी सत्र के अंत में गन्ना बकाया 6,000 करोड़ रुपये से कम हो गया है, जो यह दर्शाता है कि गन्ना बकाये में से 95% भुगतान पहले ही किया जा चुका है। यह भी उल्लेखनीय है कि गन्ना सत्र 2020-21 के लिए 99.9% से अधिक गन्ना का बकाया चुका दिया गया है।
394 लाख मीट्रिक टन चीनी का किया गया उत्पादन
देशभर के गन्ना किसानों ने मिलकर चीनी सत्र (अक्टूबर-सितंबर) 2021-22 के दौरान 5000 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) से अधिक गन्ने का उत्पादन किया, जिसमें से लगभग 3574 एलएमटी गन्ने को चीनी मिलों ने संवर्धित कर करीब 394 लाख मीट्रिक टन चीनी (सुक्रोज) का उत्पादन किया है।
35 लाख मीट्रिक टन चीनी से बनाया गया एथेनॉल
हरित क्रांति की दिशा में बढ़ते हुए भारत चीनी से एथेनॉल उत्पादन की ओर तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में उत्पादित कुल चीनी में से एथेनॉल तैयार करने के लिए 35 लाख मीट्रिक टन चीनी का इस्तेमाल किया गया और इस प्रकार चीनी मिलों द्वारा 359 लाख मीट्रिक टन चीनी का उत्पादन किया गया। बता दें कि सरकार चीनी मिलों को चीनी को एथेनॉल निर्माण के लिए इस्तेमाल करने और अधिशेष चीनी का निर्यात करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है ताकि चीनी की मिलें समय पर किसानों को गन्ने का भुगतान जारी कर सकें और मिलों के लिए भी उनकी आर्थिक तथा विनिर्माण गतिविधियों को जारी रखने के उद्देश्य से बेहतर वित्तीय स्थिति बनी रहे।
चीनी से एथेनॉल बनाने का मिल रहा फायदा
पिछले 5 वर्षों में जैव ईंधन क्षेत्र के रूप में एथेनॉल के विकास से चीनी क्षेत्र को काफी सहायता मिली है, क्योंकि चीनी से एथेनॉल के उपयोग से चीनी मिलों की वित्तीय स्थिति बेहतर हुई है, इसके अतिरिक्त मिलों के साथ तेजी से भुगतान, कम कार्यशील पूंजी आवश्यकता तथा कम अधिशेष चीनी होने से धन की कम रुकावट के कारण भी चीनी मिलों की वित्तीय स्थिति में सुधार आया है। वर्ष 2021-22 के दौरान, चीनी मिलों या डिस्टिलरी द्वारा एथेनॉल की बिक्री से लगभग 18,000 करोड़ रुपये का राजस्व अर्जित किया गया है, जिसने किसानों के गन्ना बकाया के शीघ्र भुगतान में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
एथेनॉल उत्पादन क्षमता 605 करोड़ लीटर प्रति वर्ष वहीं शीरा या चीनी आधारित भट्टियों की एथेनॉल उत्पादन क्षमता बढ़कर अब 605 करोड़ लीटर प्रति वर्ष हो गई है और पेट्रोल (ईबीपी) कार्यक्रम के साथ एथनॉल मिश्रण के तहत 2025 तक 20% मिश्रण के लक्ष्य को पूरा करने के लिए कार्य अभी भी जारी है। नए सत्र में, चीनी को एथेनॉल में बदलने का लक्ष्य 35 एलएमटी से बढ़कर 50 एलएमटी होने की उम्मीद है, जिससे चीनी मिलों को लगभग 25,000 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होगा। 60 लाख मीट्रिक टन चीनी का सबसे अच्छा जमा शेष है, जो ढाई महीने के लिए घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त है। चीनी को एथनॉल में बदलने और निर्यात करने के कारण पूरे उद्योग की मूल्य श्रृंखला खुल गई है। इसके अलावा चीनी मिलों की वित्तीय स्थिति में सुधार आया है, जिससे आने वाले सत्र में और अधिक वैकल्पिक मिलें बन गई हैं।
109.8 लाख मीट्रिक टन का रिकॉर्ड चीनी का निर्यात
वहीं अगर चीनी के रिकॉर्ड निर्यात की बात करें, तो वर्तमान सीजन में आकर्षण का एक और केंद्र लगभग 109.8 लाख मीट्रिक टन का रिकॉर्ड उच्चतम चीनी का निर्यात है, वह भी बिना किसी वित्तीय सहायता के जिसे 2020-21 तक बढ़ाया जा रहा था। भारत सरकार की नीतियों और सहायक अंतरराष्ट्रीय कीमतों ने भारतीय चीनी उद्योग की इस उपलब्धि को हासिल करने में मुख्य भूमिका निभाई है। इन निर्यातों से देश के लिए लगभग 40,000 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा अर्जित की गई है।
राजकोषीय घाटे को कम करने में मदद
भारत अब दुनिया का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक तथा उपभोक्ता और दुनिया के दूसरे सबसे बड़े चीनी निर्यातक के रूप में उभर कर सामने आया है। भारत ने वर्तमान चीनी सीजन के दौरान चीनी उत्पादन में ब्राजील को पीछे छोड़ दिया है। पिछले 8 वर्षों में चीनी के उत्पादन में वृद्धि के साथ, भारत घरेलू खपत के लिए अपनी आवश्यकता को पूरा करते हुए चीनी का निरंतर निर्यात भी कर रहा है, जिससे हमारे राजकोषीय घाटे को कम करने में मदद मिली है।
सबके साथ से हो रहा संभव
दरअसल, भारत में चीनी उद्योग की सफलता की गाथा देश में व्यापार के लिए अत्यधिक सहायक इकोसिस्टम निर्माण के साथ-साथ केंद्र और राज्य सरकारों, किसानों, चीनी मिलों, एथेनॉल डिस्टिलरीज के समकालिक एवं सहयोगपूर्ण प्रयासों का ही परिणाम है। चीनी क्षेत्र को 2018-19 में वित्तीय संकट से बाहर निकालने से लेकर 2021-22 में आत्मनिर्भरता तक पहुंचाने और उत्पादन में वृद्धि के लिए कदम से कदम मिलाते हुए पिछले 5 वर्षों से समय-समय पर किया गया सरकारी हस्तक्षेप महत्वपूर्ण रहा है। कुछ समय पहले तक, चीनी मिलों की आय मुख्य रूप से चीनी की बिक्री पर निर्भर थीं। किसी भी सीजन में अतिरिक्त उत्पादन का उनकी भुगतान क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, जिससे गन्ना उत्पादक किसानों की धनराशि बकाया हो जाती है। उनकी भुगतान क्षमता में सुधार के लिए समय-समय पर सरकारी हस्तक्षेप किए गए। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में अतिरिक्त चीनी के निर्यात को प्रोत्साहित करने और चीनी को इथेनॉल में बदलने सहित केंद्र सरकार की सक्रिय नीतियों के कारण, चीनी उद्योग अब आत्मनिर्भर हो गया है।
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