अधिवक्ता पर जानलेवा हमला मामले में पांच अभियुक्तों को पांच साल कैद व 15 हजार का जुर्माना

औरंगाबाद(लाइव इंडिया न्यूज 18 ब्यूरो)। औरंगाबाद की अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश-11 आनंदिता सिंह की अदालत ने शुक्रवार को बारूण थाना कांड संख्या-294/09 में सजा के बिंदु पर सुनवाई करते हुए पांच अभियुक्तों को पांच वर्ष कैद और 15 हजार के जुर्माना की सजा सुनाई। जुर्माना नही देने पर अदालत ने तीन माह के अतिरिक्त कारावास का प्रावधान किया है।

अधिवक्ता सतीश कुमार स्नेही ने बताया कि अदालत ने 5 अप्रैल को मामले की सुनवाई करते हुए कुल सात अभियुक्तों-बारूण के सिलौंजा निवासी सिंकदर ओझा, मुकेश ओझा, ब्रजेश ओझा, बिंदा देवी, सुखदेव ओझा एवं आशुतोष ओझा को दोषी करार देते हुए बंधपत्र विखंडित कर जेल भेज दिया था। इसके बाद मामले में एक अभियुक्त ब्रजेश ओझा के जुबेनाइल होने का आवेदन आया। इसलिए ब्रजेश ओझा को अदालत ने सजा नहीं सुनाई। मामले में अभियुक्त ब्रजेश ओझा का आवेदन जुबेनाइल सत्यापन के लिए जुबेनाइल जस्टिस बोर्ड में रेकर्ड के साथ भेजा जा रहा है। वही बिंदा देवी को कस्टडी में नही आ पाने के कारण सजा नहीं सुनाई गई। गौरतलब है कि अपने तीन बच्चों के संग दोषी करार दिए जाने पर 65 वर्षीया बिंदा देवी अदालत में ही बेहोश हो गई थी। इस कारण न्यायालय में भारी भीड़ जमा हो गई थी। जिला जज मनोज कुमार तिवारी ने कोर्ट के इजलास में महिला अभियुक्त का हालचाल जानने के बाद समुचित इलाज के लिए सदर अस्पताल भेजवाया था। इसी वजह से महिला अभियुक्त आज महिला अभियुक्त अदालत में नहीं आ सकी। इसी कारण उसे सजा नहीं सुनायी गयी। उसे स्वस्थ होने पर कस्टडी में आने के बाद सजा सुनाई जाएगी। मामले में अदालत ने महिला अभियुक्त बिंदा देवी के लिए सजा के बिंदु पर सुनवाई की तारीख 13 अप्रैल निर्धारित की है।

शेष 5 अभियुक्तों को अदालत की विद्वान न्यायाधीश ने भादवि की धारा 307 और 149 के तहत पांच साल कैद और पंद्रह हजार रुपये जुर्माना की सजा सुनाई। जुर्माना नही देने पर अदालत ने तीन माह के अतिरिक्त कारावास तथा धारा 147 के तहत एक साल कैद की सजा सुनाई है। दोनों सजाएं साथ साथ चलेंगी। गौरतलब है कि इस वाद के सूचक अधिवक्ता शिवशंकर ओझा ने 10 दिसम्बर 2009 को मामले की प्राथमिकी बारूण थाना में दर्ज कराई थी। मामले के सभी अभियुक्त उनके गोतिया है। उन्होंने अभियुक्तों पर जमीनी विवाद में जानलेवा हमला करने का आरोप लगाया था। मामले में अभियुक्तों के खिलाफ 31 अगस्त 2010 को पर आरोप पत्र दाखिल किया गया था और अदालत ने 8 सितंबर 2011 को आरोप गठित किया था। मामले में सरकारी पक्ष की ओर से एपीपी ओमप्रकाश शर्मा ने जबकि बचाव पक्ष की ओर से अधिवक्ता परशुराम सिंह, अवध किशोर पांडेय ने अदालत में बहस किया।