औरंगाबाद(लाइव इंडिया न्यूज 18 ब्यूरो)। किसानों के बड़े नेता के रूप में चर्चित भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर बड़ा हमला बोला है।
उन्होने मुख्यमंत्री की शराफत पर सवाल उठाया है। कहा है कि नीतीश कुमार कतई शरीफ नही है। श्री टिकैत ने शनिवार को औरंगाबाद के देव में राष्ट्रीय किसान मजदूर विकास मंच के बैनर तले आयोजित किसानों की आमसभा में नीतीश कुमार पर बड़ा आरोप लगाते हुए कहा कि दिल्ली में जो तीन किसान विरोधी तीन काले कृषि कानून बनाए गए, वह तो बिहार में 15-16 साल पहले से ही लागू है। यहां की मंडियां बंद हो गई।
देशभर में कृषि मंडियों को बंद करने की पॉलिसी सबसे पहले नीतीश कुमार ने ही भाजपा को दी। पॉलिसी की ड्राफ्टिंग भी बनाकर दी। मुख्यमंत्री ने उन्हे यह दिखाया कि मैंने बिहार के लोगो को भगा दिया और लूट लिया। आप भी इसी पॉलिसी पर काम करो। यही वजह है कि उन्हे यह कहने से गुरेज नही है कि नीतीश कुमार सिर्फ देखने में शरीफ लगते है। यहां के मुख्यमंत्री शरीफ नही है। कहा कि सबसे पहले तो जमीन को लूटने और बड़ी इंडस्ट्रीज को देने का काम इन्होंने(नीतीश) ही किया। यहां पर मंडियों को शुरु करने को लेकर अलग से एक आंदोलन चलाने की जरुरत हैं। वें चाहते है कि देशव्यापी किसान आंदोलन और बिहार में मंडी बहाली को लेकर आंदोलन साथ साथ चले ताकि यहां की जो बाजार समितियां है, मंडियां है वह बहाल हो। कहा कि मंडी सिस्टम जो किसानो का प्लेटफार्म है, उसे तोड़ने का हक किसी को नही है। मंडियां और बाजार समितियां सही मायने में किसानों का प्लेटफार्म है। उन्होने सवालियां लहजे में कहा कि क्या ट्रेन बगैर प्लेटफार्म के रुक सकती है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात भी बिना प्लेटफॉर्म के ट्रेन को रोकने वाली ही है। मोदी ने तीन काले कृषि कानून को लागू करते वक्त कहा था कि किसान अपनी फसल कहीं पर भी बेच सकते है तो हमने कहा कि क्या बिना प्लेटफार्म के ट्रेन कहीं भी रुक सकती है। हमने कहा कि थाना, डीसी के ऑफिस, डीएम के ऑफिस में किसानो की उपज नही बिक सकती तो फिर किसान की उपज बिना मंडी यानी प्लेटफॉर्म के कैसे बिक सकती है। बिना मंडी सिस्टम के यह संभव नही है। कहा कि यहां के किसानों के बीच पानी की समस्या है जो बड़ी गंभीर समस्या है। यहां डैम बना हुआ है। थोड़ा सा काम बाकी है। क्या राजनीतिक लोग इतने सक्षम नहीं कि किसानों से बात करें। क्या भारत सरकार की यह बड़ी पॉलिसी है कि ये किसान यहां से हटे।झारखंड से, बिहार से या कही और से, यहां के जो किसान है उनको इतना कमजोर कर दो कि खेत को छोड़ दें। यह बड़ी साजिश चल रही है। उन्हाने कहा कि हम पूरे देश में जाते है तो हर जगह यही जाना जाता है कि बिहार के लोग केवल मजदूरी करना जानते है। अलग-अलग राज्यों में मजदूरी करते दिखाई देते है। श्रीनगर की सेव की मंडी में जाओ या हरियाणा की मंडी में जाओ, सब जगह बिहार के लोग मजदूरी करते नजर आते है। हमने मंडी में किसानों और दुकानदारों से कहा कि ये बिहार के किसान है और आपसे ज्यादा जमीन इनके पास है। ये सभी जमींदार है, जो बिहार छोड़कर अपनी रोजी रोटी की तलाश में बाहर आए हुए है। इनकी जमीन उपजाऊ है। बहुत ही सुंदर मिट्टी है, जहां सभी तरह की सब्जियां, सूरजमुखी, मक्का आदि पैदा किए जाते है। धान सबसे अच्छा पैदा होता है। इसके बाद भी बिहार के ये किसान गरीब है। कहा कि बिहार के किसानों की गरीबी दूर भगाने को लेकर आंदोलन को लंबा चलाना होगा। जिस दिन किसान अपने फसल को डीएम के ऑफिस पर रखकर अपनी फसल की कीमत लेना सिख जाएगा, उस दिन वो आंदोलन करना सीख जाएगा।आंदोलन में कष्ट होगा इसलिए सब लोग जान जाए कि इस कष्ट को झेलना पड़ेगा। आंदोलन में असामाजिक और शरारती तत्वों को दूर रखना होगा, तभी आंदोलन सफल होगा। उन्होने आमसभा में लोगो को आंसू गैस के गोले से बचने के उपाय बताए। आंदोलन कैसे करें, इसकी रूपरेखा पर भी चर्चा की।
सभा को संबोधित करते हुए आरजेडी के वरीय नेता व बिहार सरकार के पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने कहा कि किसानों के साथ मूलतः समस्या यहां भ्रष्टाचार का है, पैसे के अभाव का नही। यहां के लोगो में सहयोग की कमी नही है। मामला भारत माला प्रोजेक्ट का हो, मंडल डैम का हो सबमें केवल सरकारों की लापरवाही है चाहे वह सरकार बिहार की हो, झारखंड की हो या केंद्र की सरकार हो। तीनो सरकार एक दूसरे पर फेंका फेंकी करते है। कहा कि यहीं चतरा की सभा में मोदी जी ने कहा था कि यह मोदी की गारंटी है कि हम इस परियोजना को चालू कर देंगे। तमाम आश्वासन के बाद पिछले 40-50 सालो में कई एमएलए हुए, कई प्रधानमंत्री बदले लेकिन हमारा स्वभाव नही बदला है। मैं देखता हूं कि जब भी चुनाव आता है तो विकास का मुद्दा गायब हो जाता है। आप मूल अधिकार को त्याग देते है और चुनाव में जातियों के आधार पर, धर्म के आधार पर गोलबंद होते है। इसी का राजनीतिक फायदा राजनीतिक दल उठाते है। कहा कि पहले तो राजनीतिक दलों की गुलामी छोड़नी होगी।वोट देना है, वोट का विरोध नहीं है। वोट जिसको देना है दीजिए मगर उनसे सवाल जरूर कीजिए कि आपने हमारे लिए क्या किया? कहा कि मैं यहां के चीफ इंजीनियर से बात कर रहा था। हमको लगता है यहां उनके कार्यालय में कोई नहीं जाता है। एक बार घुसिए उनके कार्यालय में और थोड़ा उनका कॉलर पकड़िएगा क्योकि वह सरकार का तनख्वाह पा रहा है। सरकार को तनख्वाह कौन देता है, आप देते है। इसलिए अपने अधिकार की लड़ाई के लिए कॉलर वगैरह पकड़िए और पूछिए कि इस परियोजना से कितना हेक्टेयर का पटवन होना था और नही हुआ तो क्यों नही हुआ? मुझे पता है कि इस योजना से लगभग 500 हेक्टेयर का सिंचाई हुआ है।500 हेक्टेयर का मतलब एक गांव का पटवन। बताइए हजारों करोड़ों की योजना से अगर एक गांव का पटवन होता है तो इससे शर्मनाक स्थिति मैं मानता नही। सरकार में जो लोग बैठे हुए है। बिहार की सरकार, झारखंड की सरकार या केंद्र की सरकार मुझे तो नही लगता की इस तरह से सरकारें नहीं चलाई जाती। इसलिए अधिकारियों पर नकेल कसिए और उनसे योजनाओं पर सवाल जवाब कीजिए। इस तरह से पूर्व मंत्री ने किसानों के प्रति अपनी आवाज को बुलंद किया और किसानों को हर हाल में साथ देने का वादा किया।
आमसभा की अध्यक्षता बेढ़नी पंचायत के मुखिया मनोज कुमार सिंह ने की जबकि संचालन राजेंद्र गुप्ता ने किया। आमसभा को किसान आंदोलन के बिहार प्रभारी दिनेश प्रसाद सिंह, संरक्षक रामकेवल सिंह, मुखिया विनोद सिंह, कौशल सिंह, भूपेश यादव, राजदेव पाल, योगेंद्र सिंह, सुनील सिंह, रामजतन पाल, विकास कुमार सिंह एवं अशोक यादव आदि ने भी संबोधित किया। इस दौरान सैकड़ों की संख्या में किसान और किसान नेता मौजूद रहे।