मिसाल: रीढ़ की हड्डी में चोट लगने के बाद भी नहीं मानी हार, देश का नाम रोशन करने विंग कमांडर शांतनु पहुंचे इस मुकाम पर

कहते हैं कि हौसले और हिम्मत से हर जंग जीती जा सकती है। इसी जज्बे के साथ भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर शांतनु जिंदगी की जंग जीतने के बाद आगे की राह पर निकल पड़े हैं। सड़क दुर्घटना में रीढ़ की हड्डी में गंभीर नुकसान पहुंचने के बाद भी विंग कमांडर शांतनु ने हार नहीं मानी और अब टोक्यो में अगले माह होने वाले विश्व रोइंग एशिया/ओशिनिया कॉन्टिनेंटल ओलंपिक और पैरालिंपिक्स क्वॉलिफाइर्स में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे। इससे पहले चुनौतीपूर्ण स्थितियों का सामना करते हुए वह पहले भारतीय पैरापैलेजिकिक बनने का खिताब अपने नाम कर चुके हैं।

दो महीने तक वेंटिलेटर सपोर्ट पर थे शांतनु

दरअसल, भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर शांतनु की रीढ़ की हड्डी में जनवरी, 2017 में एक मोटर साइकिल दुर्घटना के दौरान गंभीर नुकसान पहुंचा था। वह करीब दो महीने तक वेंटिलेटर सपोर्ट पर थे। इसके बाद उन्हें एम.एच. किरकी, पुणे में स्पाइनल कॉर्ड इंजरी वार्ड (एस.सी.आई.सी. वार्ड) में स्थानांतरित कर दिया गया। वहां उन्होंने एक्वा थेरेपी और हाइड्रो थेरेपी शुरू की, जिससे उन्हें काफी आराम मिला। उन्होंने जून, 2018 में पैरालंपिक तैराकी संघ द्वारा आयोजित महाराष्ट्र राज्य स्तरीय तैराकी चैम्पियनशिप में दो स्वर्ण पदक जीतकर प्रतिस्पर्धी खेल के रूप में तैराकी को चुना।

भारत के पहले पैरापैलेजिकिक बने

रीढ़ की हड्डी में चोट के बावजूद हौसला बरकरार रखते हुए उन्होंने अप्रैल, 2019 में खेल के क्षेत्र को ही अपने करियर के रूप में चुना। उन्हें अक्टूबर, 2019 में दक्षिण कोरिया में आयोजित एशियाई रोइंग प्रशिक्षण शिविर और चैम्पियनशिप के लिए ‘द रोइंग फेडरेशन ऑफ इंडिया’ द्वारा चुना गया। शांतनु एशिया में 5वें स्थान पर रह कर भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले पहले भारतीय पैरापैलेजिकिक बने।

इस तरह देखा जाए तो विंग कमांडर शांतनु धैर्य और दृढ़ संकल्प की पहचान हैं। वह उन सभी लोगों के लिए सच्ची प्रेरणा हैं, जो जीवन में चुनौतीपूर्ण स्थितियों का सामना कर रहे हैं। भारतीय वायुसेना भी इस तरह का हौसला रखने वाले अपने कर्मियों को देश सेवा के लिए प्रोत्साहित और प्रेरित करती रहती है।