केंद्र व राज्य दोनों बजट गरीबों के बजाय पूंजीपतियों के लिए बनाया गया

  • केदारदास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान ने किया ‘केंद्र व राज्य की बजट की राजनीतिक दिशा’ पर विमर्श का आयोजन

पटना। केदारदास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान की ओर से केंद्र व राज्य सरकार द्वारा पेश किए गए हालिया बजट पर विमर्श किया गया। प्रख्यात मज़दूर नेता केदारदास की स्मृति में आयोजित इस विमर्श का विषय था ” बजट (केंद्र व राज्य) की राजनीतिक दिशा”। बजट पर आयोजित इस विमर्श में बड़ी संख्या में शहर के बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ता, विभिन्न दलों के कार्यकर्ता मौजूद थे।

चर्चित सीपीआई नेता मो. जब्बार आलम ने बजट पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा ” केंद्रीय बजट पूरी तरह अनुदारवादी है। लगभग 34 लाख करोड़ के इस बजट में फिस्कल डेफिसिट बढ़ गया है। उसका प्रमुख कारण है कि कॉरपोरेट टैक्स में कमी आई है। उम्मीद थी कि लगभग 20 लाख करोड़ होगा लेकिन कॉरपोरेट टैक्स मात्र 15 लाख करोड़ ही रहा है। कॉपोरेट टैक्स में कमी के कारण ही फिस्कल डेफिसिट बढ़ा है। इस बजट को कॉपोरेट बजट कहा जाए तो गलत नहीं होगा। “

एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट (आद्री) से जुड़े वरिष्ठ अर्थशास्त्री पी.पी.घोष ने अपने संबोधन में कहा “मैं पिछले चालीस सालों से बजट का विश्लेषण कर रहा हूं। बजट को 10-12 प्रतिशत का ग्रोथ हासिल करना था। यदि अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाना है तो हाथ कहां रखियेगा। डिमांड और सप्लाई का ध्यान रखना पड़ता है। कुछ दिन पहले तक मकान का डिमांड था लेकिन सप्लाई न था लेकिन बिहार में बहुत बिल्डिंग बनने लगा। सप्लाई का देश मे कोई कमी नहीं है सबसे बड़ी कमी डिमांड की है। यदि डिमांड को नहीं बढाएंगे तो कैसे बात आगे बढ़ेगी। इकॉनॉमी में ग्रोथ के लिए इमीडिएट व मीडियम टर्म ग्रोथ को देखना पड़ता है।

कहा जाता है कि ब्राजील ने थोड़ा बेहतर किया है उसका कारण है कि वहां बड़े पैमाने ओर आय का ट्रांसफर किया गया है। लेकिन यहां उल्टा किया गया। यहां मनरेगा के माध्यम से किया जा सकता था। यह डिमांड आधारित कार्यक्रम है। इस बजट में मनरेगा में मात्र पचास हजार करोड़ रखा गया। जबकि डिमांड बढ़ाने का यही एक मात्र तरीका था। यदि हेल्थ सर्विसेज के लिए कुछ किया जाता तो फायदा होता। सरकारी स्वास्थ्य सेवा को बेहतर बनाते, प्राथमिक स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर बनाते तो सीधे फायदा होता। यहां तकनिकी ब्रिटेन में भी पचास प्रतिशत सेवाएं सरकार के माध्यम से पहुंचाई जाती है। लेकिन सरकार का अप्रोच है कि प्राइवेट सेक्टर को फायदा पहुंचे जनता को बाई प्रोडक्ट में कुछ मिल जाये तो हो जाये। सैलरी से जितना टैक्स कलेक्ट करते हैं वो ज्यादा है कौओपोरेट टैक्स के मुकाबले। कोरोना संकट के ऐसे संकट में भी सरकार कॉरपोरेट सेक्टर, प्राइवेट सेक्टर को भी नहीं भूलना चाहती।”

पटना विश्विद्यालय में अर्थशास्त्र के पूर्व विभागाध्यक्ष भगवान प्रसाद सिंह ने बजट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा ” बजट में जनता के हाथों क्रयशक्ति आना चाहिए था परन्तु वह काम नहीं हुआ। 2022 तक किसानों की आमदनी कैसे दुगनी हो इसका कोई नक्शा नहीं है, कृषि को कैसे विकसित करें? सिंचाई की कैसे व्यवस्था हो? बाजार किए उपलब्ध हो इसका कोई ब्लूप्रिन्ट नहीं प्रस्तुत किया गया। सिर्फ लोन के माध्यम से विकास की बात की गई है जो सही नहीं है। कॉरपोरेट को छूट दे सकते बैन तो किसानों को क्यों नहीं। 64 प्रतिशत लोग कृषि पर निर्भर हैं किसानों की आमदनी कैसे बढ़े इस पर बल दिया होता तो किसानों को प्रत्यक्ष लाभ मिला होता। स्वास्थ्य के लिए सहयोगी इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध नहीं है।

बिहार में दस हजार की जनसंख्या पर मात्र एक डॉक्टर है जबकि 45 डॉक्टर होना चाहिए, मात्र 2 नर्स हैं। बिहार में सरकार मेडिकल कॉलेज खोलने की बात करती है इससे क्या होगा। इंफ्रास्ट्रक्चर बनाते हैं तो उसका लौंग टर्म फायदा मिल सकता है। सर्फ कह देने से की इतना कॉलेज खोल देंगे, हॉस्पीटल बना देंगे इनसे कुछ नहीं होता। टैक्स चुराने वाले को सुविधा दे दी है, उनको इनाम दे रहे हैं। मात्र 3-6 साल के पहले का टैक्स का रिकॉर्ड नहीं खोला जाएगा। कहीं भी कीमत पर कन्ट्रोल की कोई बात नहीं जो रही है। डीजल-पेट्रोल बढ़ने से इन्फ्लेशन बढ़ता है यह एक तरह का इनडायरेक्ट टैक्स है। इससे रिलीफ की कोई बात नहीं जो रही है।

पब्लिक सेक्टर के बदले प्राइवेट को बढ़ावा दे रही है। विदेशों के लोगों को उस सेक्टर में बुलावा मिल रहा है जबकि आप खुद उसको कर सकते हैं। डायरेक्ट इनकम ट्रांसफर न होगा तो किसान खुद से स्थिति बेहतर नहीं कर सकता है। किसानों की सिंचाई की सुविधा तो सरकार को ही करना होगा लेकिन इन सब चीजों को उपलब्ध कराने का काम नहीं किया गया। 2.7 ट्रिलियन डॉलर की इकॉनॉमी है यदि 9 प्रतिशत के डर से हर साल ग्रोथ हिगा तब जाकर 6 साल में 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी हो सकता है लेकिन यह होगा कैसे इसका कोई ब्लू प्रिन्ट नहीं है। इस कैरोना संकट में अडानी का साढ़े छह गुना और अंबानी का तीन गुणा बढ़ेगा। रोजगार बढाने के जो उपाय हैं उसमें काफी लंबा वक्त लगेगा। असमानता का हाल तो बहुत बुरा है। बिहार में बंद पड़े उद्योगों को खोलने पर कोई दया नहीं दिया गया है। टूरिज्म पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है।”

केदारदास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान के महासचिव नवीनचन्द ने कहा ” नियोलिबरल का मतलब ही होता है कि बिजनेस के साथ सरकार इंटरफेयर न करे। इसे ही इक्कसवीं सदी में निये लिब्रिलजम कहते हैं। नियोलिब्रिलिज्म तब सफल होता है जब डेमोक्रेसी नहीं था, यूनिवर्सल फैंचाइज न था। फ़्री मार्किट इकॉनॉमी डेमोक्रेसी को स्वीकार नहीं कर सकता। पैलिकटिकल डेमोक्रेसी में एक आदमी एक वोट की बात करता है लेकिन अब एक आदमी का महत्व तभी तक है जब उसके पास पैसा है। चिंदबरम ने डेमोक्रेटिक कनट्रेंट की बात की थी। जो लिबरलाइजेशन करना चाहते है वो फासीवादी होगा ही। हम उसी के साथ मोर्चा में जाएं जो लिबरलाइजेशन के ख़िलाफ़ हो। डेमोक्रेटिक फोर्सेज किसान और मज़दूर है। पूंजीवाद के अंदर किसान समस्या का संकट असम्भव है। ये जो संकट है ये स्ट्रक्चरल क्राइसिस है। पूंजीवाद का संकट संरचना के अंदर है अतः इसके बाहर जाना होगा। “

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ( मार्क्सवादी ) के सेन्ट्रल कमिटी के सदस्य ” यह बजट एक क्लास बजट है। कोरोना संकट के दौरान निजी क्षेत्र फेल कर गया जबकि सरकारी स्वास्थ्य सुविधा ने ही इस संकट आए बचाया। अब तो पूंजीवादी अर्थशास्त्री ही कह रहे हैं कि मांग बढाने की जरूरत है। यह तो पुराना केंसियन इकॉनॉमिक्स ही है । लेकिन यह सरकार तो यह सुझाव भी मानने को तैयार नहीं है। कहा जा रहा है कि दक्षिण पूर्व एशिया में 70 मिलियन लोग और गरीब हुए हैं जिसमें सबसे ज्यादा हिस्सा भारत का है। 13 लाख करोड़ 100 पूंजीपतियों के हाथों में गया है।यदि हर नागरिक को दिया जाता तो यह चौरानवे हजार रुपया मिलता। 9 लाख करोड़ रुपया तो सिर्फ पूंजीपतियों को छूट दी गई है।

विमर्श के दौरान उपस्थित लोगों ने वक्ताओं से सवाल भी पूछे।
संचालन केदारदास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान के अशोक कुमार सिन्हा ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन संस्थाननके सचिव अजय कुमार ने किया।
प्रमुख लोगों में थे केदार दास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान के अजय कुमार, विश्वविद्याल व महाविद्यालय कर्मचारियों के नेता अरुण कुमार, सीपीआई के पटना जिला सचिव रामलला सिंह, एटक के उपमहासचिव ग़ज़नफ़र नवाब, ए. आई.एस. एफ के पूर्व महासचिव विश्वजीत कुमार, शिक्षाविद अनिल कुमार राय, अक्षय कुमार, कुलभूषण कुमार, रंगकर्मी जयप्रकाश, अनीश अंकुर, मदन प्रसाद सिंह, कपिलदेव वर्तमा, सुनील सिंह, जीतेन्द्र कुमार, सतीश कुमार, कौशलेंद्र कुमार, रामजीवन सिंह, भोला पासवान, उमा, मंगल पासवान, आनन्द कुमार, कारू प्रसाद आदि।