A.B. Mishra
साल 2013-14 में नरेंद्र मोदी ने देश के युवाओं को हर साल दो करोड़ नौकरियां देने का वादा किया। उनका यह लोकलुभावन वादा उस वक्त युवाओं को काफी रास आया था और देश के युवाओं ने मोदी के साथ कदमताल करते हुए उन्हें सत्ता के शीर्ष तक पहुंचा दिया था। हालांकि ये और बात है कि इन छह-सात सालों में देश में नौकरियां बढ़ने की बजाय कम हो गईं।
अब कुछ इसी रास्ते पर बिहार में विपक्ष के नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव चल रहे हैं। बिहार के युवा मतदाताओं को साधने के लिए राजद नेता तेजस्वी ने रविवार को यह ऐलान किया कि अगर वे इस बार सत्ता में आते हैं, तो प्रदेश के दस लाख युवाओं को रोजगार भी देंगे। यह रोजगार नियोजित नहीं, बल्कि नियमित सरकारी सेवक की होगी। उन्होंने यह दावा भी किया है कि उनकी सरकार अगर बनती है तो वे पहली कैबिनेट की बैठक में ही इन भर्तियों को अमलीजामा पहनाने की दिशा में काम करेंगे। अब देखना यह दिलचस्प होगा कि बिहार की युवा पीढ़ी अपने इस युवा नेता के दावों पर इस बार कितना यकीन करती है।
पहले विजन नहीं, पलटू चाचा का राग अलापते थे तेजस्वी
भले ही इस वर्ष विधानसभा चुनाव में तेजस्वी खुद को बिहार का सीएम कैंडिडेट मानते हों। उसी हिसाब से अपनी तैयारियां कर रहे हों, लेकिन पिछले वर्ष हुए लोकसभा चुनाव में उनकी पहचान एक परिपक्व नेता की नहीं थी। उनकी इसी अपरिपक्वता के कारण ही आम चुनाव में उन्हें मुंह की खानी पड़ी थी। तेजस्वी यादव पूरे चुनाव प्रचार में अपनी दूरदर्शिता की बातों को छोड़कर केवल प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमला बोलते थे। वहीं दूसरी ओर एनडीए शासित बिहार सरकार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व अन्य एनडीए नेता देश की तरक्की और विकास के मुद्दों पर वोट मांग रहे थे। अपनी गंभीर छवि के लिए जाने जाने वाले नीतीश तेजस्वी के बारे में बातें भी नहीं करते थे। न किसी चुनावी सभा में वे तेजस्वी का जिक्र करते थे। इसके उलट तेजस्वी यादव पूरे लोकसभा चुनाव के दौरान केवल नीतीश कुमार को खरी-खोटी सुनाते रहे। वे जनता के बीच जाकर केवल यह बताते थे कि नीतीश कुमार ने कैसे उनके और उनके परिवार के साथ धोखा किया है। वे कहते थे कि नीतीश ने पहले उनसे मिलकर सरकार बना ली और बाद में उनके पिता लालू प्रसाद को जेल भिजवा दिया और वापस भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली। अंदरखानों में चर्चा थी कि तेजस्वी भी उस वक्त तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मिलकर भाजपा-राजद की सरकार बनाना चाहते थे, लेकिन राजनीति की गहरी समझ रखने वाले नीतीश तेजस्वी से बीस साबित हुए और पहले ही भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली।
इस बार पूरी तैयारी के साथ मैदान में हैं तेजस्वी
लोकसभा चुनाव में पार्टी का सूपड़ा साफ होने के बाद तेजस्वी यादव होश में आए। लोकसभा में एक भी सीट नहीं मिलने के बाद तेजस्वी को शायद यह समझ में आ गया कि विधानसभा में अगर सत्तासीन होना है, तो लोगों के मुद्दे की बात करनी होगी। नीतीश कुमार पर प्रहार करने से अब कोई फायदा नहीं होने वाला है। इसलिए वे इस बार सबसे पहले कोरोना काल में पीड़ितों की आवाज बने फिर बाढ़ प्रभावित इलाकों का दौरा किया। अब वे युवाओं को साधने की तैयारी में लग गए हैं। रविवार को अपने भाषण में तेजस्वी ने प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में मौजदूा रिक्तियों के बारे में भी पूरी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था ऐसे ही खस्ताहाल में स्थिति में नहीं पहुंची है। प्रदेश में डॉक्टरों के ही केवल 1.25 लाख पद खाली हैं। जबकि पारा मेडिकल स्टाफ व अन्य 2.50 लाख स्वास्थ्यकर्मियों की भी बिहार को जरूरत है। इसके अलावा बुनियादी शिक्षा यानी की विद्यालयों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की यहां भारी कमी है। अब भी बिहार 2.50 लाख स्कूली शिक्षकों की कमी से जूझ रहा है। जबकि प्रदेश के विभिन्न कॉलेजों में 50 हजार शिक्षकों की कमी है। साथ ही प्रदेश में बढ़ रहे अपराध का एक मूल कारण पुलिसकर्मियों की कमी भी है। अब भी सूबा में 95 हजार पुलिसकर्मियों के पद रिक्त हैं। जिन्हें भरने के लिए राज्य सरकार की ओर से कोई कवायद नहीं की जा रही है। बकौल तेजस्वी प्रदेश में इंजीनियर के 75 हजार पद और लिपिक व चपरासी के दो लाख से अधिक पदों पर बहाली रुकी हुई है। अगर प्रदेश की जनता इसबार तेजस्वी को सीएम बनाते हैं, तो वे इस नियुक्तियों को जल्द पूरा करेंगे और राज्य के युवाओं को रोजगार देंगे।
लेखक- A.B. Mishra, बिहार के युवा पत्रकार हैं।
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