- ‘जनशक्ति ‘ परिसर में हुई पत्रकारों व सामाजिक कार्यकर्ताओं की प्रतिरोध सभा
पटना (लाइव इंडिया न्यूज18 ब्यूरो)। जनपक्षधर पत्रिका ‘न्यूज़क्लिक'” के दफ्तर पर छापा, संपादकों को परेशान किये जाने के खिलाफ प्रतिरोध सभा का आयोजन ‘जनशक्ति साप्ताहिक’ और पटना के जनपक्षधर पत्रकारों द्वारा आयोजित किया गया था। प्रतिरोध सभा में बड़ी संख्या में पत्रकार, मीडियाकर्मी, पत्रिकाओं के संपादक , सामाजिक कार्यकर्ता, संस्कृतिकर्मी इकट्ठा हुए। प्रतिरोध सभा में राकेश राज ने नंदिता हक्सर के लिखे लेख का पाठ किया जिसमें उन्होंने बताया कि क्यों ‘न्यूज़क्लिक’ पर हमले के का विरोध करना चाहिए।
‘जनशक्ति’ साप्ताहिक के वरिष्ठ पत्रकार प्रियरंजन ने प्रतिरोध सभा को संबोधित करते हुए कहा ” पत्रकारों पर हमले के बारे में ठीक से लोगों को पता ही नहीं चल रहा है। हमलोगों को एक बड़ी बैठक करना चाहिए ताकि विरोध की और सशक्त आवाज उठा सकें।”
पूर्व पत्रकार व राज्यसभा सांसद की अली अनवर ने अपने संबोधन में कहा ” आज यहां अधिक स्वतंत्र पत्रकार बैठे हैं अब यही मुख्यधारा के पत्रकार हैं। आमलोगों जी ये धारणा बन रही है कि मीडिया वाले बिक गए हैं। लेकिन अब यही लोग उम्मीद है। भागलपुर दंगे के दौरान मैं ‘ जनशक्ति ‘ कापत्रकार था। मैंने लिखा था कि कैसे प्रधानमंत्री के दौरे के बाद दंगा भड़का।”
‘फिलहाल’ पत्रिका की सम्पादक प्रीति सिन्हा ने अपने संबोधन में कहा ” ये अजीब सा वक्त है । जब ‘न्यूज़क्लिक’ पर बर्बरता पूर्वक कार्रवाई हुई है , उस ओर जो हमला हुआ है उसके लिए इकट्ठा हुए हैं। ये पूरा सिलसिला चल पड़ा है। गौरी लंकेश की घटना हुई, उनको तो मार ही दिया गया। हमलोग ये जो प्रतिरोध सभा कर रहे हैं इसका एक मैसेज जाएगा कि हम सब कुछ चुपचाप सहने को तैयार नहीं हैं। लेकिन हमें इसके अलावा हमलोग और कारगर हस्तक्षेप कैसे कर सकते हैं इसका ख्याल रखना होगा।”
‘दैनिक भास्कर’ के पत्रकार विद्यासागर ने प्रतिरोध सभा में बताया ” न्यूज़क्लिक पर आज जो हमला हुआ है उसमें ये हमारी ये जिम्मेवारी बनती है कि हमलोगों को इस बारे लोगों को जागरूक कर। आज जरूरी है कि एक साथ होकर एकजुट हों और इस पर बात करें।”
नौकरशाहीडॉट इन के इर्शादुल हक ने प्रतिरोध सभा को संबोधित करते हुए कहा ” आज नौजवान लोग पूरे देश में प्रतिरोध के प्रतीक बन कर उभरे हैं। नौजवान पत्रकार ही हमारे नए नायक बन कर उभरे हैं। ट्विटर , फेसबुक जैसे सोशल मीडिया के माध्यम से विरोध ताकतवर होता जा रहा है। कल दिशा रवि को गिरफ्तार किया गया तो वह विरोध का प्रतीक बनता जा रहा है। वो विरोध का प्रतीक तभी बनेगा जब हम उसे अपना समर्थन देंगे। सोशल मीडिया, डिजिटल मीडिया आज आल्टरनेटिव मीडिया बनता जा रहा है। हमलोगों का ये काम है कि हम कॉपी-पेस्ट कर उसकी ताक़त को बढ़ाएं। दिक्कत सिर्फ यह है कि वो ताकट छितराया हुआ है।”
ईटीवी भारत के डॉ रंजीत ने कहा ” आज सत्तर प्रतिशत मीडिया सोशल मीडिया, डिजिटल मीडिया है। 2024 तक यह नब्बे प्रतिशत हो जाएगा। हम इस बात से सहमत नहीं कि सरकार जो चाहती है वैसा ही लिखता है। अभी भी सत्तर-अस्सी प्रतिशत लोगों के अंदर जिंदा है। मेरा मालिक रामोजीराव कहते हैं सच लिखो। आज राजद सोशल मीडिया अब काफी एक्टिव है। ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सप के माध्यम से काम कर रहा है। हमें भी उठाए अपनाने की जरूरत है। पत्रकारों को भी अपना दायरा पहचानना चाहिए। आप शब्दों से खेल कर कर सकता है। मैं तटस्थ रहने की कोशिश करता हूँ। मुकदमा आप पर तब होता है जब आप उसको स्पेस देते हैं।”
‘मज़दूर ‘ पत्रिका के सतीश कुमार ने कहा ” न्यूज़क्लिक पर हमला हम सब पर हमला है। तीस-चालीस साल से जो एक ढांचा खड़ा किया गया उसे तहस-नहस किया जा रहा है। पत्रकारिता में जाने वाले को हमलोग दुस्साहिक प्राणी माना करते थे। प्रवीर पुरकायस्थ को इमरजेंसी में भी खींचकर जेल ले जाया गया था। अब ED एक विभाग खोल दिया है।अब ‘न्यूज़क्लिक’ न्यूज का कारखाना है और वहां वह रोया खोजने गया है। यह हमला इनडायरेक्ट करता है।लिखने, सोचने की शक्ति को प्रभावित कर रहे हैं।
अमर उजाला के पत्रकार आशीष झा ने कहा ” आज ज्यादातर नौकरी करने वाले पत्रकार ज्यादा है। हमलोगों की पीढ़ी ने ठीक से पत्रकारिता देखा ही नहीं है। सरकार से टकराने की कूवत नहीं है तो आप पत्रकार नहीं हो सकते। आज अखबारों का जिस ढंग से निवेश हो रहा है उसमें ढंग की पत्रकारिता हो ही नहीं सकता। जब भी पत्रकारिता में पूँजीपति पैसा लगाएंगे, रंगीन पन्ना होगा तो कैसे ढंग की पत्रकारिता होगी। आज पत्रकारिता वैसी ही नौकरी है वो ऐम. आर हैं प्रोडक्ट बेचने वाले हैं। आज अखबार बेचने वाला अखबार के साथ थर्मस देता है। जो थर्मस देगा वो न्यूज देगा?”
सी.पी.आई के राज्य सचिव रामनरेश पांडे ने ‘न्यूक्लिक’ पर छापा मारे जाने के खिलाफ आयोजित प्रतिरोध सभा को संबोधित करते हुए कहा ” ‘न्यूज़क्लिक’ पर हुआ हमला बेहद निंदनीय है। वह एक जनपक्षधर वेबसाइट रहा है। सरकार जानबूझ कर सच को दबाने का प्रयास कर रही है। मेनस्ट्रीम मीडिया वही है जो छोटा-छोटा माध्यम है। इतनी निरंकुश तो इंदिरा गांधी भी नहीं है। वो खुलकर मारती थी। ऐसी सरकार तो अंग्रेजों की भी नहीं थी। हिंदी सिनेमा के थर्ड ग्रेड का खलनायक है। इस कारण इनसे लड़ना भी मुश्किल है। आज हमारी लड़ाई एक बहुरूपिये, धूर्त से है।”
‘न्यूज़क्लिक’ से जुड़े पत्रकार अनिल अंशुमन ने अपने संबोधन में कहा ” सरकार जो कंडीशन दे रही है उसे हम स्वीकार करते जा रहे हैं। वैकल्पिक मीडिया के लिए आवश्यक है कि ‘बोल के लब आजाद हैं तेरे’। सरकार चाहती है कि सच कभी भी बाहर न जाये। सिर्फ हमारा सच ही लोगों के बीच जाए। इसका जवाब यही है कि यहां जो सोशल मीडिया, पोर्टल चलाया जा रहा है उनके बीच एक एका बनाया जाए। ‘न्यूज़क्लिक’ पर हमला इसलिए किया गया कि इसने किसान आंदोलन की रिपोर्टिंग की। अभी बाजारवाद का कॉपोरेट संचालक है इसके बरक्स हमारा अपना मीडिया हो। अभी बिहार में नीतीश कुमार द्वारा लाये गए सोशल मीडिया पर प्रतिबन्ध की कोशिश के खिलाफ आवाज उठाया जाए। नए पत्रकारों को हमलोगों को आगे बढ़ाना चाहिए।”
वरिष्ठ पत्रकार अमरनाथ झा ने प्रतिरोध सभा में बताया ” न्यूज़क्लिक चूंकि किसान आंदोलन का काफी अच्छे से रिपोर्टिंग कर रहा था इस कारण इसे निशाना बनाया गया है।हमलोग भी लिखते हैं सोशल मीडिया पर लेकिन न्यूज़क्लिक का दायरा काफी बड़ा है। सरकार न्यूक्लिक पर हमला के बहाने किसान आंदोलन से ध्यान भटकाने चाहता है। अतः हमें किसान आंदोलन को मजबूत बनाकर इसका जवाब देना चाहिए। किसान आंदोलन को ध्यान में रखना है। 22 साल की एक लड़की को मात्र एक ट्वीट के कारण गिरफ्तार किया गया है। उसे ऐसे कोर्ट में लाया गया कि उसके वकीलों को पता ही नहीं चला कि किस कोर्ट में पेश किया गया है। हमारी लड़ाई कॉरपोरेट से है और सरकार सिर्फ लठैती कर रही है। “
‘ट्रुथ ‘और ‘ यथार्थ’ के संपादक अजय कुमार सिन्हा ने कहा ” सत्ता कोई परवाह न किसान आंदोलन की न टुकड़ों में विरोध की कर रहा है। परिस्थति ने उसे जहां पहुंचा दिया है वो अब पीछे हट ही नहीं सकता। ऐसी स्थिति में हमलोगों को देखना है कि लड़ाई शुरू होती है फिर बिखर जाती है। ‘न्यूज़क्लिक’ के साथ साथ वह किसान आंदोलन को भी दमन करने की कोशिश कर रहा है। किसान आंदोलन को खालिस्तान, पाकिस्तान कह रहा है।”
‘ आह्वान’ पत्रिका के विवेक ने अपने संबोधन में कहा ” अखबार को जब झुकने के लिए कहा जाता है तब वह रेंगने लगते हैं। 2020 में 70 से ज्यादा छीटे स्तर के फ्रीलांस जर्नलिस्ट को गिरफ्तार कर उन्हें जेलों में बंद कर दिया गया है। पत्रकारों पर यू.ए. पी.ए लगाया जा रहा है। किसी के बोलने की आज़ादी पर हमला होता है तो हमें उसके साथ खड़ा होना चाहिए। छद्म शत्रुओ की लिस्ट बढाई जा रही है उसमें यदि सरकार कब किसी फैसले का विरोध भी करता है उसे भी वो बर्दाश्त नहीं कर पाता। सांस लेने के अधिकार पर भी हमला किया जाता है। जनता की ओर से जो पहलक़दमी ली जाती रही है वो समाप्त किया जा रहा है।”
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के सेंट्रल कमिटी के सदस्य अरुण मिश्रा ने कहा ” न्यूज़क्लिक के साथ साथ दिशा रवि के साथ सरकार ने जो किया उसके प्रति मुखर होकर बातचीत कर। सबसे बड़ा शिक्षक संघर्ष का मैदान है। अब हमारे लिए यही मीडिया है । इस मीडिया का पहले वे लोग इंस्टाल किया करते थे लेकिन अब यही उनलोगों के खिलाफ चला गया है। हमें इसमें ताकत लगानी है। इस लड़ाई का चरित्र भिन्न है। ये आर-पार की लड़ाई है। मार खाने- जेल जाने के लिए तैयार रहना चाहिए।”
‘मैत्री शान्ति’ पत्रिका के संपादक रवींद्र नाथ राय ने प्रतिरोध सभा में बिहार में 1982 के प्रेस बिल के खिलाफ आंदोलन का जिक्र करते हुए कहा ” उस प्रेस बिल के खिलाफ वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी जेल में बंद था। वह इतना सशक्त आंदोलन था को सरकार को वापस लेना ओढ़ा। आज भी विपक्ष उतना ही ताकतवर है। ये कहना सही नहीं है कि विपक्ष कमजोर हो गया है। कोई ऐसा ब्लॉक नहीं यही जहां कोई न कोई नौजवान लड़का पत्रकारिता के माध्यम आए नहीं लड़ रहा है। भले ही कोई संगठित तरीके से न लड़ रहा हो लेकिन वो लड़ रहा है।”
प्रतिरोध सभा को श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के अमर कुमार ने कहा ” बिहार श्रमजीवी पत्रकार यूनियन 1975 से लगातार बिहार में काम करता रहा है। पहले होता रहा है। और यह काम डिजिटल मीडिया के लोग ही करते थे। वह लड़ाई भी जनशक्ति से जुड़े पत्रकार ही किया करते थे। प्रेस बिल के खिलाफ लड़ाई में जब हम लोग दिल्ली गए तो पटना और विभिन्न जिलों के दो हजार पत्रकार जेल गए थे। तब जिला में 10/15 पत्रकार हुआ करते थे लेकिन आज तो हर जिला में 40-50 पत्रकार हुआ करते थे। जनता के बीच हमारी आवाज न जाये ये कोशिश कर रहा है। वर्तमान सरकार तो पूरी तरह से दो पूंजीपतियों के हाथों में है। मीडिया का 48-50 प्रतिशत हिस्सा उसका है। ये साधारण लड़ाई नहीं है। पहले मालिक के खिलाफ न्यूज नहीं छपता था लेकिन सरकार के खिलाफ छप जाता था अब तो सरकार के खिलाफ भी नहीं छपता था। कोई पत्रकार अब परमानेंट नहीं है बल्कि कॉन्ट्रेक्ट पर है। इस कारण वो डरता है।”
गोपाल कृष्ण ने प्रतिरोध सभा में कहा ” हमें मीडिया मालिकों के नाम याद रखना चाहिए। सोशल मीडिया से हमें सीखना चाहिए। चैनलों को उनके मालिकों के नाम से बुलाया जाये तो बेहतर होगा। न्यूज़क्लिक पर हमला इस कारण किया कि उसने अडानी के खिलाफ लिखने वाले प्ररंजय गुहा ठाकुरता को कार्यक्रम दिया। पी साईनाथ जिसने कॉरपोरेट खेती में क्या कर रहा है इसका उसकी रिपोर्टिंग की थी। न्यूजकिलक ने कॉपोरेट अपराधों की रिपिर्टिंग की थी इसी कारण न्यूजकलिम के साथ किया गया। यह सिक्स्थ जेनरेशन का वारफेयर है।”
टाइम्स ऑफ इंडिया के वरिष्ठ पत्रकार अभय सिंह ने कहा ” जितने भी सेडीशन चार्जेज लगते हैं वो फेल हो जाते हैं। न्यूज़क्लिक के ख़िलाफ़ प्लांटेड न्यूज लगाया जाता है। उसके बाद उनपर छापा डाला जाता है। यह बहुत बुरी बात है। जब ऑडिनेन्स आया तब किसी को लगा था कि इतना बड़ा आन्दोलन बन जायेगा। लेकिन जब किसानों का आंदोलन हुआ तब यह गांवों तक में फैल गया। आहिस्ते-आहिट फैल रहा है। भाजपा मेरा अखबार का बिट रहा है। मुझे लगता था की ये सिविल वार करवाएगा। विपक्ष की ताकत को मीडिया के जरिये बिखराया जा रहा है। हिटलर जब आया तो उसने 400 मीडिया संस्थानों को खरीद लिया था।”
प्रतिरोध सभा का संचालन जयप्रकाश ने किया। प्रतिरोध सभा में बड़ी संख्या में पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद थे। प्रमुख लोगों में थे विश्वजीत कुमार, गालिब खान, कमलकिशोर, आकांक्षा, सौजन्य उपाध्याय, तारकेश्वर ओझा, पार्थ सरकार, जफर, सुनील सिंह, प्रभात सरसिज, इरफान अहमद फातमी, कुमुद सिंह, राधेश्याम, सरोज , आशीष रंजन झा मौजूद थे।
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