सरयू राय का राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से आत्मीय जुड़ाव सन 1962 में ही हो गया था जब मैं आठवीं कक्षा में पढ़ता था। लेकिन संघ के पारंपरिक कार्यक्रमों और आधिकारिक प्रशिक्षणों से जुड़ने का मौका उन्हें जेपी के आंदोलन के बाद ही मिला। संघ के ओटीसी यानी ऑफिसर्स ट्रेनिंग कोर्स जिसे फिलहाल सैन्य शिक्षा वर्ग कहा जाता है। इस कोर्स का प्रथम वर्ष जेपी के आंदोलन के बाद ही किया था मैंने।
द्वितीय वर्ष का कोर्स सन 1975 में जून के महीने में हजारीबाग में संपन्न हुआ था। इस साल राजेन्द्र प्रसाद सिंह यानी रज्जु भैया इधर के क्षेत्र प्रचारक हुआ करते थे। रज्जु भैय्या संघ शिक्षा वर्ग में प्रवास के तौर पर ओटीसी में सम्मिलित हुए थे। रज्जु भैया ने गोविंदाचार्य जी के माध्यम से मुझे मिलने का बुलावा भेजा था। रज्जु भैया ने मुझसे कहा कि तुम एम.एस.सी कर गये हो। तुम दो साल तक पूर्णकालिक सदस्य के रूप में संघ के दायित्वों का निर्वहन की जिम्मेवारी संभालो।
21 जून 1975 की बात है। हजारीबाग में प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद रज्जु भैया को दिये गये वचन के मुताबिक मैंने दो वर्ष तक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पूर्णकालिक सदस्य के रूप में सेवा का संकल्प ले लिया था। बतौर प्रचारक छपरा जिला में पदस्थापन की घोषणा हुई थी। मैं योगदान के लिए प्रस्थान करने ही वाला था कि देश में 25 जून को राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा हो गई। दूसरे ही दिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
राष्ट्रीय स्वयं संघ ने अपनी रणनीतियों में व्यापक बदलाव किया और भूमिगत कार्यक्रमों के संचालन की घोषणा की। गोविंदाचार्य जी के नेतृत्व में संचालित भूमिगत कार्यों में मैंने भी भाग लिया। इन दौरान रोजाना के कार्यों के अलावा कई उल्लेखनीय कार्य शुरू किये गये। मुझे विद्यार्थियों को संगठित करने का दायित्व गोविंदाचार्य जी ने दिया। मैं आई.ए.एस की तैयारी के नाम पर किराये पर कमरा लेता था और तैयारी करने वाले विद्यार्थियों से संपर्क साध कर उन्हें आंदोलन के लिए प्रेरित किया करता था। कुछ दिनों बाद हमारी गतिविधियों से आस-पास खुदबुद्दी होने लगती थी और पुलिस को सूचना की आशंका के मद्देनजर हम स्थान बदल लिया करते थे।
आपातकाल के दौरान भूमिगत पत्रिका निकालने का निर्णय लिया गया। इसमें मुझे समाचार संकलन का दायित्व सौंपा गया। सुब्रह्मणियम स्वामी के लेकर तमाम बड़े नेताओं (चाहे वे जेल थे या भूमिगत ) और घटनाओं की खबरों का संकलन का दायित्व सौंपा गया। पत्रिका का नाम रखा गया…“LOKVANI(लोकवाणी)”।
(राकेश पांडेय से सरयू राय की जेपी आंदोलन पर बातचीत)