- बिहार ने शिक्षक आंदोलन को हमेशा दिशा दी है : कार्यानन्द पासवान
- ए. आई. एफ. यू.सी. टी.ओ के राष्ट्रीय महासचिव प्रो अरुण कुमार और क्षेत्रीय सचिव अशोक कुमार सम्मानित किए गए)
पटना(लाइव इंडिया न्यूज18 ब्यूरो)। पटना के नागरिकों और बुद्धिजीवियों द्वारा विश्विद्यालय व महाविद्यालय कर्मचारी महासंघ ( ए. आई.एफ.सी.टी. ओ) के चौथी बार महासचिव चुने जाने वाले औरंगाबाद स्थित आर.एस. एल. वाई में भौतिकी के प्रोफ़ेसर अरुण कुमार तथा तीसरी दफे क्षेत्रीय सचिव चुने जाने पर सहरसा स्थित एस. एन. एस.आर.के .एस में प्राचीन इतिहास के प्रो अशोक कुमार सिंह को सम्मानित किए गया।
इस मौके पर शिक्षा के निजीकरण, उदारीकरण तथा साम्प्रदायिकरण की नीतियों , शिक्षकों की सेवा शर्तों, बिहार में उच्च शिक्षा की स्थिति, पेंशन योजना के साथ-साथ शिक्षकों को संगठित करने में आ रही समस्याओं पर भी विचार-विमर्श किया गया। आगत अतिथियों का स्वागत एटक के राज्य अध्यक्ष अजय कुमार जबकि संचालन इंजीनियर सुनील सिंह ने किया। सर्वप्रथम दोनों शिक्षकों का परिचय प्रदान किया गया। उसके बाद उपस्थित अतिथियों द्वारा शॉल, कलम तथा माला पहनाकर सम्मानित किया गया।
ए. आई.एफ.यू.सी.टी.ओ के चौथी बार राष्ट्रीय महासचिव चुने गए प्रो अरुण कुमार ने सम्मान समारोह को संबोधित करते हुए कहा ” हमारे संगठन में हर विचारधारा के लोग मौजूद हैं। वाम, दक्षिण, मध्यमार्गी सभी किस्म के लोग हैं। एक शिक्षक के रूप में महाविद्यालयों में जाकर प्रेरित करता रहा हूं की जब तक लड़ोगे नहीं कुछ नहीं होगा। लेकिन जब बिहार के शिक्षकों को देखता हूँ तो निराशा होती है जबकि बिहार ने एक समय ऐतिहासिक भूमिका निभाई है। यह बिहार ही था जिसने 1982, 1987 के आंदोलन कर प्रोफ़ेसर बनने का रास्ता सुझाया। बड़े-बड़े विद्वान शिक्षक लेक्चरर बनकर ही रह जाते थे। लेकिन बिहार के शिक्षक संगठनों -प्राथमिक, माध्यमिक तथा विश्विद्यालय शिक्षकों ने एक साथ मिलकर देश को दिशा देने का काम किया।
ए. आई.एफ.यू.सी.टी को इस बात का श्रेय जाता है कि शिक्षकों को प्रोफ़ेसर बनने का रास्ता प्रशस्त किया। ” प्रो अरुण कुमार ने उच्च शिक्षा के समक्ष चुनौतियों के चर्चा करते हुए आगे बताया ” सरकार ने 2014 की शिक्षा नीति को जबरन लागू किया। ऐसी शिक्षा नीति है कि 2030 के बाद कोई यूनिवर्सिटी नहीं होगा। नीति आयोग 2030 तक शिक्षा पर बजट को शून्य करना चाहती है। आने वाली पीढ़ियों को भोगना होगा। स्कूल बंद किये जा रहे हैं, सिलेबस बदले जा रहे हैं। 2015 से हम हमेशा शिक्षकों से जगने का आह्वान कर रहे हैं। रेलवे, बैंक की तरह स्कूल को समाप्त करने का प्रयास किया जा रहा है। आज आंदोलन करना काफी कठिन हो गया है। कई श्रेणियों में बंटे हैं। देश मे साढ़े तीन लाख अतिथि शिक्षक के रूप में काम कर रहे हैं। आने वाले शिक्षकों की सेवा शर्तें क्या होंगी? अवकाश प्राप्त करने के बाद पेंशन के लिए दर-दर की ठोकरें खाते हैं। उनके बारे में सोचना है। पुराने पेंशन को लागू करने की बात है। आंदोलन कभी मरता नहीं है। यूपी में यह चुनाव में हर राजनीतिक दल को पुराना पेंशन लागू करने का वादा करना पड़ रहा है। “
एक अन्य सम्मानित शिक्षक एस.एन. आर.एस कॉलेज, सहरसा में प्राचीन इतिहास के प्रोफेसर प्रो अशोक कुमार सिंह ने सभा को संबोधित करते हुए कहा” हमारा संगठन 60 सालों से शिक्षकों के लिए लड़ता रहा है। पहला अधिवेशन बनारस में हुआ था। बिहार व भारत है इन्हीं बल्कि पूरी दुनिया के शिक्षकों के समस्याओं के लिए लड़ता है। मैं पटना के नागरिक समाज को मुझे तथा प्रो अरुण कुमार को सम्मानित करने के लिए आभार प्रकट करता हूँ।”
सम्मान समारोह के अध्यक्ष तथा मगध विश्विद्यालय के प्रो वाइसचांसलर रहे कार्यानन्द पासवान ने सम्मान समारोह में कहा ” शिक्षक आंदोलन में बिहार का गौरवशाली इतिहास रहा है। पहले प्रोमोशन का कोई प्रावधान नहीं था। देश भर के शिक्षकों ने इस कारण बिहार को ये जिम्मा दिया कि ये बिहार के लोग ही हैं जो देश भर के आंदोलन का नेतृत्व कर सकते हैं। बिहार से ही लेक्चरर के रीडर बनने की शुरुआत हुई। समाजवादी आंदोलन के कमजोर रहने से अब परमानेंट शिक्षक के बदले नियोजन की बहाली की बात उठने लगी। सरकारी पदाधिकारी लोग नियोजन पर दस्तखत तक नहीं किया करते थे। ये काम जिलानपरिषद, कॉर्पोरेशन आदि के माध्यम से हुआ करता था। विश्वद्यालय व महाविद्यालय में शोषण का रूप बदल गया है।
पटना विश्वद्यालय के इतिहास विभाग में एक भी शिक्षक नहीं है। भूगोल विभाग एक शिक्षक के भरोसे हैं। सरकार ने महाविद्यालय से मुंह मोड़ लिया है। पढ़ाई का माहौल लगभग समाप्त हो गया है। सबसे अच्छे विश्विद्यालय का यह हाल है। राजभवन के चपरासी से लेकर सचिव तक के तो पूछने ही क्या। यह समाज में आपदा की तरह है। 90 साल के संघर्ष के बाद आज़ादी मिली थी लेकिन अब अंबानी-अडानी के लगता है गुलाम बन जाएंगे। 12-14 घण्टे काम करना पड़ता है व गुलाम ही तो है! जो शिक्षक समाज के दुख-तकलीफ़ को समझेगा वही समाज का नेतृत्व कर सकता है। “
आर.एस. एल .वाई कॉलेज के प्राचार्य गणेश महतो ने अपने संबोधन में कहा ” बिहार में प्रोमोशन बंद कर दिया गया। हमारे यहां प्रोमोशन में ग्रेडिंग करने का खयाल नहीं रखा जाता। रिटायर्ड प्रोफ़ेसर पी.एच. डी नहीं करा सकता। प्रो अरुण जी को साथ लेकर अधिक संघर्ष करना किया जाए। रिटायर्ड होने की उम्र बढ़ाई जानी चाहिए। “
सीपीआई के वरिष्ठ नेता विजय नारायण मिश्रा ने सम्मान समारोह को संबोधित करते हुए कहा” अरुण जी और अशोक जी बहुत कठिन वक्त में जिम्मेवारी दी गई है। अंधविश्वास फैलाया जा रहा है और वैज्ञानिक चेतना पर संकट है। ये दोनों अपनी सांगठनिक क्षमता और बुद्धिमत्ता से इन चुनौतियों का मुकाबला करेंगे।”
पटना हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता मदन प्रसाद सिंह के अनुसार ” इसने दोनों शिक्षकों पर बहुत बड़ी जवाबदेही है। इसका निर्वहन करेंगे ऐसी अपेक्षा है। यहां ऐसे ऐसे कॉलेज है जहां पढ़ाई नहीं होती सिर्फ परीक्षा के जाती है। एक प्लानिंग के तहत कॉलेजों को बंद करने की साजिश चल रही है। बिहार में सरकारी स्कूल को बंद कर दिया गया। जानबूझ कर कॉलेजों को बर्बाद किया जा रहा है। आज पटना विश्विद्यालय से दुश्मनी निकली जा रही है। “
शिक्षक नेता बी.डी कॉलेज के शिक्षक रकेशनाथ चौबे ने दोनों प्राध्यापकों का अभिनन्दन करते हुए कहा ” प्रो अरुण और प्रो अशोक के संघर्षों से वाकिफ रहा हूँ। हम शिक्षकों को चार-पांच महीनों तक तनख्वाह नहीं मिलती, कक्षायें नहीं चल पाती। छात्र व शिक्षक में समन्वय नहीं हो पाता। समस्य से तरक्की नहीं हो पाती। समय पर वेतन नहीं मिल पाता। इनकम टैक्स काट लिया जाता है पर वेतन नहीं प्रदान किया जाता।”
अखिल भारतीय प्रारम्भिक शिक्षक संघ के महासचिव भोला पासवान ने कहा ” यह बिहार के लिए गौरव की बात है। बिहार से प्राथिमक व माध्यमिक शिक्षकों के संगठन के साथ-साथ विश्विद्यालय कर्मचारियों के नेता बिहार से है। इन सभी क्षेत्रों का सरकारीकरण कैसे हुआ? वेतनमान, प्रोन्नति के मसले पर सत्तर व अस्सी के दशक में साथ बैठा करते थे। नियोजन की पद्धति लागू की गई। शिक्षकों की दशा को देखकर साथ बैठने की जरूरत है। प्रो अरुण कुमार ने लगातार मीटिंग कराकर संगठन को मजबूत बनाया।”
कॉलेज ऑफ कॉमर्स के फिजिक्स विभाग के प्रो सन्तोष के अनुसार ” प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा की स्थिति बेहद चिंताजनक है। माननीय कुलपतियों के ऊपर एफ.आई.आर किया जाता है, वे जेल जाते हैं ऐसे में मौलिक लड़ाई कैसे लड़ी जाएगी यह देखना है। काफी फ्रस्ट्रेशन है लोगों के अंदर। जो जिम्मेवारी सौंपी गई है उसे कैसे लड़ेंगे यह देखना है। संगठन को थोड़ा देखना होगा।”
टी.पी.एस कॉलेज शिक्षक संघ के सचिव श्यामल जी ने कहा ” अरुण जी की कर्मठता के कारण ये नेतृत्व में आये हैं। बिहार से पहली बार इतने पद पर लोग गए हैं। इससे पूर्व शिक्षकों को भी आत्मविश्लेषण की जरूरत है। यदि हम दिल से पढ़ाएंगे तो लड़के आएंगे। जब शिक्षक अपने कर्तव्यों का निर्वहन करेंगे तो व्यवस्था दुरुस्त होगी। जो घुस लेता है और घुस देता है दोनों दोषी है। पहले अच्छे शिक्षक कुलपति हुआ करते थे। बिहार में भी संगठन को सशक्त करने की जरूरत है।”
बिहार राज्य किसान सभा के महासचिव अशोक कुमार सिंह के अनुसार ” हम यह सम्मान समारोह इन दोनों का आत्मबल बढाने के लिए के लिए कर रहे हैं। शिक्षा को तबाह करने के लिए शिक्षा नीति लाई गई है । जैसे मज़दूरों के हकों को कुचलने के लिए लेबर कोड तथा किसानों से जमीन छीनने के लिए कृषि कानून लाया गया है। ये तीनो लड़ाई अब तक अलग-अलग हुई है लेकिन इन तीनो को एक साथ करने की जरूरत है। जैसे किसानों के छह सौ संगठनों ने मिलकर लड़ाई लड़ी वैसे ही सभी शिक्षक संगठनों को मिलकर लड़ने की आवश्यकता है।”
शिक्षक-शिक्षकेतर कर्मचारी महासंघ के नेता अरुण गौतम के अनुसार ” केंद्र व राज्य नेतृत्व के पास शिक्षा का कोई स्थान नहीं है। जब एक संस्थान में काम करते हैं तो भेदभाव की नीति नहीं होनी चाहिए। हमें एक मंच पर आकर संयुक्त आंदोलन करने के आवश्यकता है।”
ए.आई.एस. एफ के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव विश्वजीत कुमार के अनुसार ” शिक्षकों व छात्रों दोनों को एक साथ मिलकर संघरहस करने की आवश्यकता है।”
टी.एस कॉलेज हिसुआ कॉलेज के प्रो सुनील कुमार ने बिहारवासियों के लिए गौरव व सम्मान का दिन बताते हुए कहा ” ये दो लाल हमें मिले हैं ये दोनों मिलकर शिक्षकों की समस्याओं का समाधान करेंगे। ये हमारे कॉलेज में भी भौतिकी के प्रोफ़ेसर थे। अशोक जी प्रधानाचार्य भी हैं। बिहार, झारखंड, उड़ीसा व बंगाल के प्रभारी हैं। प्राचीन काल मे हवन ककुंड को जैसे रक्त से दूषित किया जाता था वैसी ही स्थिति आज है। राम रुपी अरुण जी तथा लक्ष्मण रूपी अशोक जी इन निजीकरण के राक्षसों का संहार करेंगे।”
सीपीआई के पटना जिला सचिव रामलला सिंह ने कहा ” जब भी शिक्षा पर हमला होता है विद्वान, कवि, साहित्यकार एक साथ इकट्ठा होकर काम करते हैं।”
प्रगतिशील लेखक संघ के उपमहासचिव अनीश अंकुर ने कहा ” आज उच्च शिक्षा व निजीकरण, व्यावसायीकरण इस कारण किया जा रहा है ताकि साम्राज्यवाद के चालों को समझा नहीं जा सकता। आज भारत सरकार कौशल विकास और स्किल इंडिया की बात की जाती है लेकिन यही बात 1882 में अंग्रेज अफसर कहा करते थे कि भारत पर गुलामी को स्थाई बनाना है तो लोगों को सामाजिक विज्ञान की ट्रेंनिग के बजाए स्किल की ट्रेनिंग दी जाए। इन चुनैतियोबका मुकाबला उच्च शिक्षा के माध्यम से ही किया जा सकता है।”
मज़दूर संगठन एटक के महासचिव ग़ज़नफर नवाब ने दोनों प्रोफेसरों का अभिनन्दन करते हुए कहा ” मैं बिहार के मज़दूर आंदोलन की ओर से इन दोनों प्रोफ़ेसरों का अभिनन्दन करता हूँ। असमानता को देश में बढ़ाया जा रहा है।”
सारण प्रमंडल के माध्यमिक शिक्षक संघ के नेता चन्द्रमा प्रसाद सिंह, केमेस्ट्री के प्रोफ़ेसर डॉ बी.एन विश्वकर्मा ने भी संबोधित किया। सम्मान समारोह में बड़ी संख्या में शहर के बुद्धिजीवी , रँगकर्मी, साहित्यकार , सामाजिक कार्यकर्ता तथा समाज के विभिन्न क्षेत्रों के लोग मौजूद थे। प्रमुख लोगों में थे रँगकर्मी जयप्रकाश, हरदेव ठाकुर, अमरनाथ, राजकुमार, अशोक कुमार सिन्हा, सुमन्त शरण, पुष्पेंद्र शुक्ला ओसामा खुर्शीद, अजय कुमार, जीतेन्द्र कुमार, उमा , आंगनबाड़ी कर्मचारियों के नेता कौशलेंद्र कुमार आदि।
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