आगामी पांच साल में देश के कई राष्ट्रीय वनों में 50 चीतें लाए जाएंगे। बुधवार को राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की 19वीं बैठक के बाद केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने जानकारी देते हुए बताया कि भारत के विभिन्न वनों में चीता को लाने के लिए कार्य योजना तैयार की गई है। योजना के तहत अगले 5 वर्षों में देश के विभिन्न वनों में 50 चीतें लाए जाएंगे।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि बाघ एक लुप्तप्राय प्रजाति बना हुआ है। ऐसी स्थिति को देखते हुए बाघों को संरक्षण के लिए सक्रिय प्रबंधन की भी आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि बाघों की आबादी के प्रभावी प्रबंधन के लिए टाइगर रिजर्व और लैंडस्केप स्तर पर बाघों की संख्या का विश्वसनीय अनुमान होना अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि देशभर में वर्तमान में चल रहे अखिल भारतीय बाघ अनुमान का 5वां चक्र सही नीतिगत निर्णय लेने में मदद करेगा। ज्ञात हो भारत में बाघों की घटती आबादी को रोकने के लिए, ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ अप्रैल 1973 में शुरू किया गया था। इस परियोजना के तहत अब तक देश में 27 बाघ अभयारण्य स्थापित किए जा चुके हैं, जो 37,761 वर्ग किमी के क्षेत्र को कवर करते हैं।
देश में कितने टाइगर रिजर्व हैं और ये हमारे लिए किस प्रकार महत्वपूर्ण
हमारे पास देश में 51 टाइगर रिजर्व हैं और अधिक क्षेत्रों को टाइगर रिजर्व नेटवर्क के तहत लाने के प्रयास किए जा रहे हैं। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि टाइगर रिजर्व सिर्फ बाघों के लिए नहीं है क्योंकि इन क्षेत्रों से 35 से अधिक नदियां निकलती हैं जो जल सुरक्षा के लिए भी काफी महत्वपूर्ण हैं।
देश के 14 टाइगर रिजर्व को दी गई है मान्यता
केंद्रीय मंत्री ने यह भी बताया कि देश के 14 टाइगर रिजर्व को मान्यता दी गई है और एनटीसीए मान्यता के लिए अन्य टाइगर रिजर्व का मूल्यांकन करने पर काम कर रहा है। बैठक में सुझाव दिया गया कि 6 समितियों का गठन कर 2 टाइगर रिजर्व का दौरा किया जाए ताकि संरक्षण के लिए नीति तैयार की जा सकें और समस्याओं का अध्ययन किया जा सकें।
पूर्वोत्तर राज्यों में एयर गन की समस्या
इसके अलावा उन्होंने अवैध शिकार का जिक्र करते हुए कहा कि पूर्वोत्तर राज्यों में एयर गन की समस्या एक ऐसा मुद्दा है जिसे मंत्रालय ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने की सलाह दी है ताकि लोग अपने एयरगन को आत्मसमर्पण कर सकें। टाइगर रिजर्व में पर्यटन गतिविधि के प्रभावी नियमन के हिस्से के रूप में मंत्री ने कहा कि एक कोर क्षेत्र होना चाहिए जो एक तरफ से अलंघनीय और वाहनों की आवाजाही सुरक्षित तरीके से हो सके।
केंद्रीय मंत्री ने कहा, हर साल अप्रैल, अगस्त और दिसंबर के पहले सप्ताह में एनटीसीए की कम से कम तीन बैठकें करने की आवश्यकता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि बाघ एक लुप्तप्राय प्रजाति बना हुआ है और स्थिति को अपनाने के साथ-साथ सक्रिय प्रबंधन की भी आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि बाघों की आबादी के प्रभावी प्रबंधन के लिए टाइगर रिजर्व और लैंडस्केप स्तर पर बाघों की संख्या का विश्वसनीय अनुमान होना अनिवार्य है।
केंद्रीय मंत्री ने एटलस भी किया जारी
केंद्रीय मंत्री ने एटलस भी जारी किया, जिसमें भारत के बाघों वाले क्षेत्रों में सभी जल निकायों का मानचित्रण किया गया। इस जल एटलस में भू-दृश्यवार जानकारी को रेखांकित किया गया है जिसमें शिवालिक पहाड़ियां और गंगा का मैदानी परिदृश्य, मध्य भारतीय परिदृश्य और पूर्वी घाट, पश्चिमी घाट परिदृश्य, उत्तर पूर्वी पहाड़ियां और ब्रह्मपुत्र बाढ़ के मैदान और सुंदरबन शामिल हैं।
(आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं. व्हाट्सएप ग्रुप व टेलीग्राम एप पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें. Google News पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें)