औरंगाबाद(लाइव इंडिया न्यूज 18 ब्यूरो)। जैसे दिल्ली की दिवाली, कोलकात्ता का दशहरा, मुंबई का गणेशोत्सव, केरल का ओणम और झारखंड का सरहुल मशहूर है। ठीक वैसे ही बिहार के औरंगाबाद के दाउदनगर का जिउतिया मशहूर है।
वैसे तो यह पर्व देश भर में माताओं द्वारा किये जानेवाले जीवित पुत्रिका व्रत का ही रूप है लेकिन दाउदनगर में यह पर्व इस कारण खास है कि यह पर्व लोककलाओ एवं साहसिक करतबों के प्रदर्शन का उत्सव पर्व भी है। इस उत्सव के दौरान यहां के कलाकार न केवल बहुरूपियो के रूप में विभिन्न प्रकार का वेश धारण करते है बल्कि कई शानदार हैरतंगेज साहसी कारनामों का प्रदर्शन भी करते है।
इन प्रदर्शनों में शारीर के किसी अंग में छुरा, चाकू और तलवार को आर पार भोक लेना आदि शामिल है। आश्चर्य की बाद यह कि धारदार हथियारों को शरीर के किसी अंग में आर पार कर दिये जाने के बावजूद एक कतरा खून तक नहीं बहता है। दाउदगर का जिउतियां एक तरह से लोगों को भ्रमित कर देनेवाले ऐसे ही हैरतअंगेज करतबों के प्रदर्शन का उत्सव है।
औरंगाबाद जिला मुख्यालय से 32 किलोमीटर दूरी पर मुगल शासक औरंगजेब के सिपहसालार दाउद खां द्वारा बसाये गये दाउदनगर शहर में जिउतिया पर्व के आरंभ के बारे में कोई लिखित प्रमाण तो उपलब्ध नहीं है लेकिन जनश्रुतियों एवं लोककथाओं के अनुसार यहां का जिउतिया अति प्राचीन है। जनश्रुतियों के अनुसार लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व दाउदनगर शहर को प्लेग जैसी भयंकर बीमारी ने अपने आगोश में ले रखा था और बड़ी संख्या में लोगो के मौत के मुंह में समा जाने से पूरा शहर मृतकों से पट गया था।
इस विकट परिस्थिति से छुटकारा पाने के अनेक प्रयास किए गए लेकिन सुधार के कोई लक्षण नहीं दिखे। तब तत्कालीन समाज के प्रबुद्धों ने इसे देवी का प्रकोप माना और प्रकोप से शांति के लिए दक्षिण भारत के पुजारियों एवं गुणियों से सम्पर्क साधा। वहां से आये पुजारियों एवं गुणियों ने इसे बम्मा देवी का प्रकोप बताया। देवी के गुस्से से शहर को निजात दिलाने के लिए जगह-जगह प्रतिमाएं स्थापित कर विधि विधान से पूजा अर्चना की गयी, जो करीब एक माह तक चला।
देवी का प्रकोप शांत हुआ और लोगों ने चैन की सांस ली, तब से आज तक शहरवासियों द्वारा इसे पूरे विधि विधान के साथ मनाने की परम्परा चली आ रही है। चूंकि बम्मा देवी की पूजा-अर्चना का समय जिउतिया के ईर्द-गिर्द पड़ता था, यही कारण है कि इसका प्रचलन दिन-प्रतिदिन बढ़ता गया गया और कालांतर में इसने एक पर्व का रूप धारण कर लिया। पर्व की शुरूआत के बारे में दाउदनगर के जिउतिया कलाकारों द्वारा गाये जाने वाले गीत के बोल-‘‘ आश्विन अंधेरिया दूज रहे, संवत 1917 के साल रे जिउतिया, अरे धनभाग रे जिउतिया जे रोपे ले हरिचरण, तुलसी, दमड़ी जुगुल, रंगलाल रे जिउतिया, अरे धनभाग रे जिउतिया’’ में भी इसकी प्राचीनता की झलक मिलती है और पर्व का आरंभ भी कलाकारों द्वारा इसी गीत को गाकर किया जाता है।
गीत के मुखड़ों से यह स्पष्ट है कि इस क्षेत्र के हरिचरण, तुलसी, दमड़ी, जुगुल और नंदलाल द्वारा आश्विन कृष्णपक्ष की द्वितीया तिथि के दिन विक्रम संवत 1917 को इसकी आधारशिला रखी गयी और तब से यह पर्व दाउदनगर में अनूठे रूप मे मनाया जाने लगा। इस अवसर पर लोक कलाकारो द्वारा लोकनृत्य की हर विधा का प्रदर्शन पर्व के दौरान किया जाता है। इस दौरान कलाकारों के कला प्रदर्शन के लिए कोई रंगमंच नहीं होता बल्कि शहर के नुक्कड़, गली और पूरे शहर की सड़कें ही रंगमंच बन जाती है।
दाउदनगर की जिउतिया की यह प्रमुख विशेषता है कि इसके माध्यम से विलुप्त होती सांस्कृतिक परंपरा को स्वांग के रूप में जीवित रखा गया है। इस विधा के तहत कलाकार दम-दमाड़ एवं मुड़ीकटवा का स्वांग रचते हैं, जिसे देखना अपने आप में एक अनोखा अनुभव है। सड़कों, गलियों एवं नुक्कड़ों पर कलाकारों द्वारा राजा-रानी, चुड़ैल, भूतनी, डाकिनी, राम-लक्ष्मण, राधा-कृष्ण एवं अनेक प्रकार के वेशधारी बहुरूपिए नजर आते है। विरासत में मिली इस संस्कृति के अलावा इस मौके पर तलवारबाजी, खेल-तमाशा, झाकियां, नौटकी, लोकनृत्य का सफल मंचन भी पर्व को विशिष्टता प्रदान करती है।
इस दौरान दम-दमाड़ के कलाकारों के हैरत अंगेज कारनामों से दर्शक दंग रह जाते हैं। शरीर के विभिन्न हिस्सों में सुई, त्रिशूल को आर-पार करना दर्शकों को रोमांचित कर देता है। शहर को अनचाहे प्रकोप से बचाने के लिए आरंभ किया गया। यह पर्व आज दाउदनगर में लोकसंस्कृति का एक अहम हिस्सा बन चुका है। यही कारण है कि देश-विदेश में दाउदनगर ही एक ऐसा अकेला स्थान है जहां जिउतिया पर्व को निराले और अनूठे अंदाज में मनाया जाता है।
दाउदनगर के जिउतिया को प्रसिद्धि की उंच्चाइयों तक पहुंचाने का कभी भी किसी भी स्तर से पूरे मनोयोग से प्रयास नहीं किया गया, अन्यथा यहां का जिउतियां भी जगत प्रसिद्ध होता और देश विदेश के लोग जिउतिया के मौके पर दिखाये जाने वाले साहसिक व रोमांचक करतबों को देखने जरूर आया करते। वैसे तो दाउदनगर का जिउतिया देशभर में संतानो के दीर्घायु होने को लेकर महिलाओं द्वारा किये जाने वाले जीवित्पुत्रिका व्रत का ही अंग है लेकिन जिउतिया के आने के पहले पिछले 9 दिनों में जो खास साहसिक और रोमांचक करतब प्रस्तुत किये जाते हैं, वे ही इस पर्व को अनूठापन प्रदान करते है।