पटना(लाइव इंडिया न्यूज18 ब्यूरो)। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय सचिव एवं अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव अतुल कुमार अनजान ने कहा कि पेगासस साइबर जासूसी मामले की अंदर की सच्चाई को सामने लाने से मोदी सरकार आखिर कतरा क्यों रही है ? देश को यह तो मालूम होना ही चाहिए कि आखिर इस स्पाईवेयर का भारतीय खरीदार कौन है क्योंकि निर्माता कंपनी एन.एस.ओ. का कहना है कि वह सिर्फ सरकारों को ही पेगासस साफ्टवेयर बेचती है? जांच कराने से ही दूध का दूध और पानी का पानी हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट में एडिटर्स गिल्ड की ओर से वरिष्ठ पत्रकार एन राम और शशि कुमार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई होनी है। क्या सरकार सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बिना कोई कारवाई नहीं कर सकती? पेगासस जासूसी का मामला कहीं न कहीं राफेल सौदे में हुए घोटाले से भी जुड़ा हुआ है जिस कारण मोदी सरकार जांच से कतरा रही है। संसद के जारी सत्र में यदि इस महत्वपूर्ण राष्ट्रीय सुरक्षा और व्यक्तियो की निजताके संवैधानिक अधिकार के साथ ही किसान आंदोलन के मुद्दे पर चर्चा नहीं हो सकती तो फिर संसद का औचित्य क्या है?
देश की अर्थव्यवस्था मोदी सरकार की जन विरोधी कारपोरेट पद्धती अर्थ नीति के चलते अभूतपूर्व संकट के दौर से गुजर रही है। यह संकट कोरोना महामारी के पहले से ही कहें तो नोटबंदी के समय से ही जारी है जो महामारी काल में और भी घनीभूत हो गया है। लोगो के रोटी-रोजगार छिन गये हैं, उद्योग-कारोबार बरी तरह संकटग्रस्त हैं। ऐसे में जबतक लोगों की क्रयशक्ति नहीं बढ़ायी जायेगी उनकी जेब में पैसे नही होंगे तबतक बाजार भी ठप्प पड़े रहेंगे। इसलिए जरुरी है कि ग्रामीण क्षेत्रो में मनरेगा योजना को साल में कम से कम दो सौ दिनो के लिए विस्तारित किया जाये और बढ़ती महंगाई के मद्देनजर मजदूरी दरों को युक्ति संगत बनाया जाए। साथ ही गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को कम से कम छः महीने तक 7500रु. प्रतिमाह नकद सहायता (कैश ट्रांसफर) की व्यवस्था की जाए।
अर्थव्यवस्था में सुधार के उपाय ढूढ़ने के लिए अर्थशस्त्रियों (सिर्फ सरकारी नहीं) एवं विशेषज्ञ से सलाह मशविरा कर संसद का तीन दिवसीय विशेष सत्र बुलाकर सिर्फ इसी विषय पर चर्चा करायी जाए और आपदा की इस घड़ी में सर्वमान्य हल ढूंढ कर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जाए।
उन्होंने बिहार के मख्यमंत्री के द्वारा पेगासस जासूसी मामले की जांच कराने की मांग का समर्थन किए जाने का स्वागत किया और जाति आधारित जनगणना की बिहार विधान सभा की मांग का समर्थन किया । भाकपा नेता ने कहा कि भारत में जातियों का अस्तित्व एक वास्तविकता है, फिर जाति आधारित जनगणना कराने में हर्ज क्या है? जब मोदी सरकार और संघ भाजपा परिवार जातियों का उपयोग चुनावों में वोट बैंक के रुप में करता है, ध्रवीकरण के लिए करता है और उसे हिन्दू-समाज की आदर्श व्यवस्था करार देता है, तो फिर जातियों की गणना से परहेज कैसा? सरकार की कथनी और करनी में फर्क है-हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और हैं-जनता अब इसे समझ रही है।
संवाददाता सम्मेलन में सीपीआई के राज्य सचिव रामनरेश पांडेय ने कहा कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी जातिगत जनगणना के पक्ष में है। विधानसभा में भी विपक्ष के प्रतिनिधि मंडल में सीपीआई इस मुद्दे पर साथ थी, पार्टी का जातिगत जनगणना को लेकर साफ समझदारी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार में जनगणना अलग से करवाएं। उन्होंने कहा कि बिहार के सभी गरीबों का राशनकार्ड सरकार बनाये और उन्हें राशन उपलब्ध कराए। मनरेगा के दो सौ दिन काम और न्यूनतम मजदूरी की सरकार गारंटी दे। प्रेस वार्ता में पार्टी के राज्य सचिव मण्डल के सदस्य रामबाबू कुमार व ओमप्रकाश नारायण भी मौजूद थे।