नक्सलियों को सरकार से वार्ता की पेशकश के बाद माओवादी नेता प्रमोद मिश्रा के परिवार ने लिखा पीएम को पत्र

परिजनों को सत्ता प्रतिष्ठान द्वारा तंग नही करने की लगाई गुहार

औरंगाबाद(लाइव इंडिया न्यूज 18 ब्यूरो)। भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य पूर्व केंद्रीय मंत्री व एमएलसी डॉ. संजय पासवान द्वारा माओवादियों को भारत के संविधान में विष्वास और आस्था रखते हुए सरकार से संवाद करने की पेशकश के बाद शीर्षस्थ नक्सली नेता भाकपा माओवादी के पोलित ब्यूरो सदस्य प्रमोद मिश्रा के परिजनों ने नक्सलियों के नाम पर उनके परिवारों को सता प्रतिष्ठान द्वारा तंग नही किये जाने की गुहार लगाई है। इस संबंध में माओवादी नेता के पुत्र औरंगाबाद जिले के रफीगंज के कासमा निवासी सुचित मिश्रा ने अपने ‘‘मन की बात‘‘ शीर्षक से सीधे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को खुला पत्र लिखा है। पत्र की प्रति उन्होने पूर्व केंद्रीय मंत्री को भी दी है।

पत्र में उन्होने अपने परिवार पर सता प्रतिष्ठान और पुलिस पर दमन चक्र्र चलाने की विस्तार से चर्चा की है। पत्र में कहा है कि उनके पिता प्रमोद मिश्रा भारतीय राज्यसत्ता को उखाड़ फेंककर नव जनवादी राज्यसत्ता के निर्माण में लगे कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों के समूह अब भाकपा(माओवादी) के दूसरी पीढ़ी के शीर्ष नेताओं में से एक हैं। जहां तक मैं जानता हूं, मेरे पिताजी पर भारत के आध्यात्मिक संतों का प्रभाव भी गहरे रूप से मौजूद है, खासकर धर्माडंबर, कर्मकांड, हिंसा, छुआ-छूत, जात-पात, वर्णवाद, नस्लभेद आदि के खिलाफ मुखर वक्ता के रूप में ख्यात महान भारतीय संत कबीर दास के सहज योग का प्रभाव उनके जीवन पर गहरा रूप से है और वे उनके सच्चे उपासक भी हैं। मैं उसी पिता का एक पुत्र हूं। मैं अपने तीन भाई और दो बहनों में से एक हूं। मेरे पिता के अलावे मेरा समस्त परिवार सामान्य भारतीय नागरिक है। मेरे पिता और उनकी संस्था भले हीं ताकतवर हो सकती है, जो आपकी संस्था या भारतीय राज्यसत्ता के खिलाफ लड़ने में सक्षम हो, लेकिन मैं यह स्पष्ट कर दूं कि उस संस्था के तमाम नेताओं, कार्यकर्ताओं, अधिकारियों के परिवार उतने हीं ताकतवर हैं जो आपकी संस्था या भारतीय राज्य को चुनौती दे सकें या देता हो, तो यह सत्य नहीं है। आपकी संस्था और मेरे पिता की संस्था के बीच बुनियादी राजनीतिक मतभेद है, जो सर्वविदित है और यह चिरकालिक रहेगा। ऐसी स्थिति में आपका या आपके संस्था के तमाम सदस्यों के परिवार अथवा माओवादी संस्था के तमाम सदस्यों के परिवार, जो आम नागरिक हैं, के बीच भी टकराव और संघर्ष का होना क्या जरूरी है? क्या किसी लोकतंत्र में किसी पार्टी के सदस्य अथवा नेता का यह सोच बनाना कि अपने विरोधी को कमजोर करने के लिए उनके निर्बल-निरीह परिवारों को सताना, दमन करना अथवा साजिश के तहत झूठे मुकदमों में फंसाकर राज्यसत्ता की शक्ति का इस्तेमाल करके उन्हें हैरान-परेशान करना क्या कुशल राजनीतिक पार्टी और कुशल नेतृत्व की उचित पहचान है? यह सच है कि मेरा समस्त परिवार अवश्य ही मेरे पिता से बेहद प्यार करता है और उनकी सलामत जिंदगी का कामना करता है, इसमें कोई शक नहीं है और यह भी सच है कि हम समस्त परिवार उनकी संस्था से जुड़े नहीं हैं। ऐसे हीं अन्य माओवादियों के परिवार भी हैं। मेरे पिता का मानना है कि लोकतंत्र में वंशानुगत सत्ता नहीं होती, वह तो राजतंत्र में होता था। यह लोकतंत्र का युग है और इसका राजनीतिक उत्तराधिकार मेरा बेटा या मेरा परिवार का सदस्य होगा हीं, ऐसी कोई बात नहीं है। इसीलिए हर व्यक्ति को अपना रास्ता चुनने का अधिकार है और वे ऐसे कभी अपने परिवार या किसी अन्य परिवार पर अपनी संस्था के साथ जोड़ने के लिए सैद्धांतिक, राजनीतिक चर्चा अवश्य चलाते हैं और चलाते रहे हैं, लेकिन जोर-जबरन दबाव देकर अपनी संस्था के साथ किसी को नहीं जोड़ते। वे यह भी कहते हैं कि भले ही मुझे कोई अपना निजी दुश्मन माने लेकिन मेरा कोई निजी दुश्मन न था, न है और न रहेगा। देश का दुश्मन, जनता का दुश्मन और क्रांति का दुश्मन हीं हमारा दुश्मन है। फिर भी हमारा यह अनुभव है कि चाहे आपकी सरकार हो या आपके पूर्व बनी अन्य राजनीतिक पार्टियों की सरकारें रही हो, सब समय हम और हमारा परिवार राजकीय दमन का शिकार होता रहा है। बिना किसी तथ्यात्मक सच्चाई के सरकार के कानून के रखवाले अधिकारीगण झूठे अभियोग लगाकर हमारे उपर मुकदमें लादते रहे हैं। हमनें अपने जन्मकाल से हीं असंख्य दमन झेला है-झूठे मुकदमों का बोझढोया है। फिर भी हम अपने रास्ते पर खड़े हैं और हमारे पिता अपने रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं। हमारी वजह से उन्होंने कभी सत्ता के सामने आत्मसमर्पण नहीं किया और जहां तक मेैं अपने पिता को समझा हूं, उस आधार पर मैं यह कह सकता हूं कि आज भी वे दमन के सामने झुकने को तैयार नहीं होंगे। यह भी सर्वविदित है कि एक बार 2008 में वे गिरफ्तार हुए थे और 9 साल दो महीना सात दिन बाद छूटकर जेल से वे बाहर आये। उनपर लादे गये एक भी मुकदमें सिद्ध नहीं हुए, पर्याप्त अवसर के बावजूद कोर्ट उनके कुछ केस को तो निष्पादित किया, लेकिन कुछ को निष्पादित नहीं की और वे जमानत पर बाहर आने को मजबूर हुए, जबकि वे अपने सारे केस का त्वरित निष्पादन चाहते थे। बाहर आकर भी कोर्ट में यथाशीघ्र अपने अनिष्पादित मामलों का निष्पादन यथाशीघ्र करने के लिए आग्रह किया। किंतु, ऐसा न हो सका। क्योंकि ऐसा करके कोर्ट अपने तमाम लोगों का हराम की कमाई को बंद करना नहीं चाहता है। इसलिए कोर्ट में सामान्य से सामान्य मुकदमें भी वर्षों-वर्षों तक चलता रहता है। मेरे पिता ऐसा उचित नहीं समझते हैं और वे पुनः एक दिन कोर्ट जाने के लिए कहकर घर से निकले और अपने परिवार से जुदा होकर पुनः न जाने कहां चले गये। जहां तक उनके राजनीतिक जीवन के आरंभ से ही वे ऐसा तरीका अपनाते रहे हैं कि वे जब चाहेंगे, जहां चाहेंगे, जिस समय चाहेंगे, जिससे मिलना चाहेंगे वे अपनी इच्छा व योजनानुसार उनसे मिल लेंगे। परिवार से मिलने के मामले में भी उनका यही रवैया रहा है। लेकिन परिवार हो या अन्य लोग चाहकर भी अपनी जरूरत और अपने समय के अनुसार उनसे कभी नहीं मिले, यह उनकी एक खासियत है।

इस बार आपकी सरकार नक्सल उन्मूलन अभियान के तहत माओवादियों के परिवार तथा उनके दोस्तों और रिश्तेदारों को हैरान-परेशान करने के लिए, उनकी सम्पत्ति पर ‘प्रवर्तन निदेशालय(ईडी)’ के तहत झूठे मुकदमें लादने और व्यापक रूप से हैरान-परेशान करने का रास्ता अपनाया है। इसमें सच है कि हम अवश्य तबाह होंगे, बर्बाद होंगे, परेशान होंगे और नौकरशाही अधिकारियों तथा सुरक्षा बलों के क्रूरतम हमलों के शिकार होंगे। लेकिन इससे धुन के पक्के हमारे पिता और उनके जैसे हीं दृढ़चित उनके अन्य मित्र क्रांतिकारी, झुकने को विवश नहीं होंगे। छात्र जीवन की समाप्ति के बाद वे आरंभ से भूमिगत नहीं हुए, बल्कि लम्बे काल तक वे अपने परिवार के जीविकोपार्जन के लिए देहाती जन चिकित्सक के रूप में काम करते रहे और अपने राजनीतिक कार्य में भी जुड़े रहे। इसके बाद वे भूमिगत हुए। तब से मेरी मां और हम सब उनके बच्चे अपार मुसीबतों को झेलते हुए भी आत्मनिर्भर होने के लिए संघर्ष चलाते आ रहे हैं। इन सारी स्थितियों के दौर से गुजरते हुए हम अपने सम्पत्ति का यथासंभव ब्यौरा और उसे प्राप्ति के स्रोत सूचीबद्ध कर यथासंभव ईडी अधिकारियों के पास भेज रहे हैं तथा उसका अनुलग्नक आपके पास इस पत्र में संलग्न कर भेज रहा हूं। ताकि इसी माध्यम का सहारा लेकर मैं समग्र देशवासियों को अपनी सम्पत्ति और स्थिति से अवगत करा सकूं। मैं और मेरा परिवार एक सामान्य नागरिक है। मैं एक साधारण स्कूल संचालक तथा शिक्षक और एक सामान्य किसान हूं। मेरा परिवार कमाने-खाने वाला सामान्य किसान परिवार है। हमारी यह हैसियत नहीं है कि परिवार के प्रत्येक सदस्य हजार-हजार रूपया खर्च कर बारी-बारी से कुछ दिन बाद-बाद ईडी कार्यालय में जा सके और उनके द्वारा दी जा रही प्रताड़नाओं को झेल सके। मैं और मेरा समस्त परिवार दोनों हाथ उठाकर आपके सामने आत्मसमर्पण कर, यह कहना ही उचित समझता हूं कि मौजूदा राज्य के आपके कानून और दमन करने वाले अधिकारियों, सुरक्षा बलों समेत राज्य के आप जैसे तमाम महान राजनीतिक हस्तियों के समक्ष नतमस्तक होकर यह आग्रह करता हूं कि आप अपना भरपूर क्रूरतम हमला हम सब पर करें, मैं और मेरा परिवार आपके हर हमलों को बिना कोई प्रतिवाद-प्रतिरोध के तब तक सहेंगे जब तक हमारा अंत न हो जाय। मैं और मेरा परिवार किसी भी हालत में इसमें सक्षम नहीं हैं कि मेरे पिता का आत्मसमर्पण कराने के उद्देश्य से हम पर की जा रही कार्रवाई के बावजूद आपकी कोई मदद दे सके। उन्हाने पत्र के साथ अपने परिवार की संपूर्ण चल-अचल संपत्ति का ब्योरा संलग्न करते हुए कहा है कि इसके अलावा उनकी कोई संपत्ति नही है।