बहुचर्चित बारा नरसंहार के मुख्य आरोपी किरानी यादव को कोर्ट ने सुनाया आजीवन कारावास, लगाया पांच लाख का जुर्माना

गया(लाइव इंडिया न्यूज18 ब्यूरो)। गया जिले बहुचर्चित बारा नरसंहार के मुख्य आरोपित किरानी यादव को कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है।

गुरुवार को गया के जिला एवं सत्र न्यायाधीश मनोज कुमार तिवारी ने किरानी को आजीवन कारावास और पांच लाख रुपए जुर्माना की सजा सुनाई। यह सजा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनाया गया। किरानी यादव गया केंद्रीय कारा में फिलहाल बंद है जो अंतिम सांस तक जेल में बंद रहेगा। स्पेशल अभियोजक प्रमोद कुमार रांची से इसमें बहस करने के लिए आए थे। उन्होंने न्यायालय को बताया कि प्रतिबंधित नक्सली संगठन एमसीसी के कुख्यात किरानी यादव के अगुवाई में गया जिले के बारा गांव में एक के बाद एक भूमिहार जाति के 36 लोगों की हत्या 12 फरवरी 1992 को की गई थी। जिसमें अकेले 12 लोगों की हत्या किरानी यादव ने अपने हाथों से किया। इस मामले में किरानी यादव वर्ष 2007 से गया केंद्रीय कारा में बंद है और ट्रायल फेस कर रहा था। बचाव पक्ष के अधिवक्ता तारिक खां ने बताया कि इस फैसला से खुश नहीं है। फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में जल्द ही याचिका दायर की जाएगी। उनके मुवक्किल की किरानी यादव को रिहा करने का आग्रह करेंगे।

जानिए क्या है बारा नरसंहार, क्या हुआ था 12 फरवरी 1992 की रात

बहुचर्चित बारा नरसंहार में किरानी यादव पर एक दशक से अधिक समय से विशेष अदालत में ट्रॉयल चल रहा था। आधा दर्जन से अधिक गवाहों ने किरानी यादव की पहचान की थी। बारा कांड के सूचक सत्येंद्र शर्मा ने बताया कि बारा नरसंहार के बाद मामले में 34 लोगों पर नामजद और सैकड़ों आज्ञात नक्सलियों पर प्राथमिकी दर्ज करायी गई थी।

बारा कांड के सूचक बारा निवासी और अपनों को खोने वाले सत्येंद्र शर्मा ने बताया कि 12 फरवरी, 1992 की रात करीब 8.45 बजे नक्सली गांव की पश्चिम की तरफ से आये थे। बमबाजी और गोलीबारी करते हुए दाखिल हुए थे। आगजनी, बमबाजी कर कई घरों से लोगों को एकत्रित किया। 55 लोगों को हाथ – पैर बांधकर गांव के बधार में ले गए। नक्सलियों ने 41 लोगों को निर्मम तरीके से गला रेंत दिया। इसमें 32 लोगों की मौत बधार में हो गई। दो लोगों ने इलाज के क्रम में मेडिकल कॉलेज में और एक ग्रामीण लाल सिंह 22 दिनों के बाद पीएमसीएच में दम तोड़ा। घायल हुए ग्रामीण लखन सिंह, गोपाल सिंह, योगेंद्र सिंह, धनंजय सिंह, वीरेंद्र सिंह समेत छह लोगों की जान बच गई थी। रात डेढ़ बजे तक नक्सली तांडव मचाते रहे। नक्सलियों के जाने के बाद डीआईजी, एसपी, थाना प्रभारी आदि गांव पहुंचे थे। ग्रामीण आज भी उस काली स्याह रात को याद कर सिहर जाते हैं।

विशेष अदालत का हुआ था गठन

बारा नरसंहार मामले टाडा कोर्ट ने जून, 2001 में 13 अभियुक्तों को सजा सुनायी गई थी। इसमें चार अभियुक्त नन्हे लाल मोची, कृष्णा मोची, वीर कुंवर पासवान और धमेंद्र सिंह को फांसी की सजा सुनायी गई थी। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने चारों की फांसी की सजा को बरकरार रखा था। बाद में दोषियों की ओर से माफीनामा राष्ट्रपति को भेजी गई थी। तत्कालीन राष्ट्रपति ने चारों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था। दूसरे फेज में वर्ष 2009 में व्यास कहार, नरेश पासवान और युगल मोची को टाडा कोर्ट ने फांसी की सजा सुनायी थी। जबकि साक्ष्य के आभाव में तीन आरोपियों को बरी कर दिया गया था।