औरंगाबाद(लाइव इंडिया न्यूज 18 ब्यूरो)। औरंगाबाद जिले के देव स्थित ऐतिहासिक, धार्मिक, पौराणिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं पर्यटन के दृष्टिकोण से विश्व प्रसिद्ध त्रेतायुगीन सूर्य मंदिर अपनी कलात्मक, भव्यता के लिए सर्वविदित और प्रख्यात होने के साथ ही सदियों से देशी-विदेशी पर्यटकों, श्रद्धालुओं एवं छठ-व्रतियों की अटूट आस्था का केन्द्र है।
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इस मंदिर को दुनिया का इकलौता पश्चिमाभिमुख सूर्य मंदिर होने का गौरव हासिल है। देव का त्रेतायुगीन सूर्य मंदिर अभूतपूर्व स्थापत्य, शिल्प एवं कलात्मक भव्यता का अद्भूत नमूना है। यही वजह है कि आम जनमानस में इस मंदिर को लेकर यह किवंदति प्रसिद्ध है कि किसी साधारण शिल्पी ने नहीं बल्कि इसका निर्माण खुद देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने अपने हाथों से किया है।
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काले और भूरे पत्थरों की अति सुंदर कृति जिस तरह ओडिसा के पुरी के जगन्नाथ मंदिर और कोणार्क के सूर्यमंदिर का है, ठीक उसी से मिलता-जुलता शिल्प इस मंदिर का भी है। यह मंदिर अति प्राचीन है जिसे इलापुत्र राजा ऐल ने त्रेतायुग के 12 लाख 16 हजार वर्ष बीत जाने के बाद निर्माण आरंभ कराया था। ऐसे, में मंदिर की अति प्राचीन होने से इंकार नहीं किया जा सकता और स्थानीय श्रद्धालु भी इस बात को खुले तौर पर स्वीकार करते हैं।
इस मंदिर में 7 रथों से सूर्य की उत्कीर्ण प्रस्तर मूर्तियां अपने तीनों रूपोंः उदयाचल-प्रातः सूर्य, मध्याचल-मध्य सूर्य और अस्ताचल सूर्य-अस्त सूर्य के रूप में विद्यमान हैं। पूरी दुनिया में देव का ही मंदिर एकमात्र ऐसा सूर्यमंदिर है, जो पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है। इस बारे में भी किवंदतियां प्रसिद्ध है। भगवान भास्कर का यह मंदिर सदियों से लोगों को मनोवांछित फल देनेवाला पवित्र धर्मस्थल रहा है। यूं तो सालों भर देश के विभिन्न जगहों से यहां पधार कर मनौतियां मांगते हैं और सूर्यदेव द्वारा इसकी पूर्ति होने पर अध्र्य देने आते हैं लेकिन कार्तिक व चैती छठ के दौरान यहां दर्शन-पूजन की अपनी एक विशिष्ट धार्मिक महता है लेकिन कोरोना काल में यहां इस बार कार्तिक छठ मेला नही लग रहा है। सूर्य मंदिर बंद है। सूर्य कुंड में अध्र्य देने की मनाही है।