नई दिल्ली। देर आए दुरुस्त आए। यह उक्ति टाटा समूह के लिए बिल्कुल फिट बैठती है क्योंकि लंबे अर्से बाद टाटा एयर इंड़िया को फिर से अपने पाले में ले आया। भले ही एयर इंड़िया का निजीकरण करने के विभिन्न सरकारों के प्रयासों में दो दशक से अधिक का समय लग गया हो‚ लेकिन आखिरकार अंतिम बोली टाटा सन्स ने ही जीती। 89 साल बाद अब एयर इंड़िया का नियंत्रण फिर से टाटा समूह के हाथ में है।
भारतीय नागरिक उड्ड़यन इतिहास में इस समूह की यात्रा उतार–चढ़ाव भरी रही है। केंद्र सरकार ने शुक्रवार को टाटा संस की सहायक कंपनी टैलेस को विनिवेश प्रक्रिया के तहत राष्ट्रीय वाहक एयर इंडिया के लिए सबसे अधिक बोली लगाने वाला घोषित किया। निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम) के सचिव तुहिन कांत पांडे ने बताया कि टाटा संस की टैलेस प्राइवेट लिमिटेड ने 18,000 करोड़ रुपये की बोली लगाकर बाजी मारी है। तुहिन कांत पांडे ने कहा कि लेनदेन दिसम्बर 2021 के अंत तक पूरी होने की उम्मीद है। 18,000 करोड़ रुपये की बोली में 15,300 करोड़ रुपये का कर्ज लेना और बाकी का नकद भुगतान करना शामिल है।
दोनों बोलीदाताओं ने आरक्षित मूल्य से ऊपर बोली लगायी थी। एयर इंड़िया का निजीकरण करने के लिए पहला कदम उठाए जाने के बाद से अब तक कई एयरलाइन कंपनियां आईंऔर चली गईं लेकिन टाटा समूह का विमानन क्षेत्र खासकर एयर इंड़िया के साथ लगाव कभी कम नहीं हुआ। ऐसा कहा जाता है कि टाटा समूह के अधिकारी यह शिकायत करते रहते थे कि भारतीय विमानन क्षेत्र के जनक व एयर इंड़िया के पूर्व अध्यक्ष जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा (जेआरड़ी) को टाटा समूह की तुलना में एयर इंड़िया की चिंता अधिक रहती थी।
हालांकि वे यह भी जानते थे कि अध्यक्ष के रूप में एयर इंड़िया का नेतृत्व करना उनके लिए केवल एक नौकरी नहीं थी‚ बल्कि उनके लिए यह लगाव का विषय था। यह एक ऐसा समूह है जिसने टाटा एयरलाइंस और एयर इंड़िया के पहले टाटा विमानन सेवा शुरू करने के लिए 1932 में दो लाख रुपये का निवेश करने में जरा सा भी संकोच नहीं किया था। अक्टूबर 1932 में कराची से बॉम्बे के लिए पहली एयरमेल सेवा उड़ान भरी गई थी जब जेआरड़ी टाटा ने एक पुस मोथ विमान का संचालन किया था।
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