आबादी नियंत्रण कानून -यूपी बिहार के नौजवानों के सपनों को कुचलने का कानून है

अमर उजाला लिखता है कि यूपी सरकार एक क़ानून ला रही है। प्रस्तावित क़ानून के मुताबिक़ जिनके दो से अधिक बच्चे हैं उन्हें सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी। जो सरकारी नौकरी में हैं और दो से अधिक बच्चे हैं, उन्हें कई सुविधाएँ नहीं मिलेंगी। यह पढ़ कर मैं उन लाखों नौजवानों के बारे में सोच रहा हूँ जिनकी शादी सरकारी नौकरी न मिलने के कारण नहीं हुई है। ऐसे बच्चों को तय समय में भर्ती प्रक्रिया पूरी कर नौकरी देने के मामले में यूपी ने क्या प्रगति की है, वहां से नौजवान भलीभाँति जानते होंगे।

इस समय तो ज़िला परिषद और ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में हुई हिंसा को सही ठहराने में लगे होंगे लेकिन उनसे पूछा जा सकता है कि दो से अधिक बच्चे होने पर सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी, ऐसे प्रस्ताव पर उनकी क्या राय है। यह लाइन बताती है कि यूपी में सरकारी भर्ती का क्या हाल है। यूपी ही नहीं आप इसमें दूसरों राज्यों को भी शामिल करें। चाहें किसी की सरकार को। लेकिन सरकार क़ानून लाती है कि दो से अधिक बच्चे होंगे तो सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी। इस तरह की बात लिखने के पीछे डेटा क्या है? हर बात में डेटा डेटा करने वाली सरकार क्यों नहीं बताती है कि कितने ऐसे नौजवान हैं जिनके दो से अधिक बच्चे हैं और वे सरकारी भर्ती की परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं? क्या इनकी तादाद इतनी है कि सरकार को क़ानून लाना पड़ रहा है?

दूसरा कुछ ऐसे नौजवान तो होंगे ही जो कई साल से अपनी भर्ती की प्रक्रिया पूरी होने का इंतज़ार कर रहे हैं। इनमें से कितने हैं जिनके दो से अधिक बच्चे हैं? जो लोग पहले से सरकारी सेवा में हैं और जिनके दो से अधिक बच्चे हैं उन्हें प्रताड़ित करने का कोई तुक नहीं बनता है। यह क़ानून बैक डेट से कैसे लागू हो सकता है कि दो से अधिक बच्चे होने पर प्रमोशन नहीं मिलेगा। फिर वही सवाल। क्या सरकार के पास ऐसा कोई डेटा है जिससे पता चले कि यूपी सरकार में काम करने वाले कितने ऐसे कर्मचारी हैं जिनके दो से अधिक बच्चे हैं। क्या बीजेपी ऐसे सांसदों और विधायकों के टिकट काट देगी जिनके दो से अधिक बच्चे हैं? तो अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में प्रस्ताव पास कर दिखा दे।

आप देखेंगे कि जब भी ऐसे क़ानून की बात होती है अपने नेताओं को रियायत दी जाती है कि पंचायत का चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। जब पंचायत का चुनाव नहीं लड़ सकेंगे तो फिर विधान सभा और लोक सभा का चुनाव क्यों लड़ेंगे? राज्यपाल क्यों बना रहे हैं। क्या सरकारी नौकरियों में इस आधार पर वर्गीकरण किया गया है? आबादी का ताल्लुक़ ग़रीबी से है। जैसे जैसे शिक्षा बढ़ती है और आर्थिक तरक़्क़ी आती है आबादी की रफ़्तार धीमी होती है। यह धारणा बनाई जाएगी कि मुसलमानों के दो से अधिक बच्चे होते हैं। जैसे धारणा बना दी गई कि मुसलमान चार चार शादियां करते हैं। कोई डेटा नहीं है कि कितने मुसलमान ऐसे हैं जिन्होंने चार शादियां की हैं फिर भी इस धारणा को बढ़ावा दिया गया और अपने दिमाग़ का इस्तमाल न करने की क़सम खाए लोगों में यह फ़ार्मूला चल भी गया।

सच्चाई यह है कि हिन्दू परिवारों में भी दो से अधिक बच्चे हैं। ख़ासकर उन परिवारों में जो ग़रीब हैं। कई लोगों के परिवार में अधिक बच्चे मिलेंगे। भाई बहन मिलेंगे। चुनाव आ रहा है। इससे पहले कि बेरोज़गारी का सवाल बड़ा हो जाए, आबादी का सवाल खड़ा किया जा रहा है ताकि लोगों के दिमाग़ में घुसाया जा सके कि सरकार कितनों को नौकरी देगी। देश में इतनी आबादी है। इस मसले से बेरोज़गार युवा अपने ही परिवार में बेगाना हो जाएगा। आबादी के नाम पर हिन्दू परिवारों को कल्पनालोक में धकेल दिया जाएगा कि मुसलमानों की आबादी बहुत है इसलिए नौकरी कम है। वो भूल जाएँगे कि नौकरियों में मुसलमानों की मौजदूगी न के बराबर है।

गोदी मीडिया दो मौलानाओं को बिठा कर समझा देगा कि आबादी का क़ानून मुसलमानों के लिए लाया जा रहा है। यूपी बिहार के नौजवानों से एक सवाल पूछना चाहता हूं। आबादी के बाद फिर कौन सा मुद्दा बचा है। नाना प्रकार के हिन्दू मुस्लिम टॉपिक, कश्मीर, धारा 370 के बाद आबादी का सवाल हिन्दी प्रदेशों के नौजवानों को क़िस्मत बदल देगा क्या?15 अगस्त 2019 के भाषण में प्रधानमंत्री ने आबादी पर नियंत्रण की बात कही थी। कहा था जिनके परिवार छोटे हैं वो देश की तरक़्क़ी में योगदान करते हैं। तीन साल बाद यूपी को ख़्याल आया है कि आबादी नियंत्रण के लिए क़ानून लाया जाए। प्रधानमंत्री मोदी भी लगता है कि 15 अगस्त 2019 का भाषण भूल गए हैं। तभी तो इसी एक जुलाई को वे आबादी का गुणगान कर रहे थे।

बता रहे थे कि अधिक आबादी ने भारत को अवसर को दिया है। 2014 के समय भी डेमोग्राफिक डिविडेंड यानी आबादी के लाभांश की बात किया करते थे। अब क्या हुआ? फेल हो गए तो आबादी को समस्या बताने आ गए? जो सरकार युवाओं को नौकरी नहीं दे पा रही है वो क़ानून ला रही है कि दो से अधिक बच्चे होंगे तो नौकरी नहीं देंगे। लग रहा है जिनके कोई बच्चे नहीं हैं उनकी नौकरी के लिए यूपी सरकार ने काउंटर खोल रखा है। यूपी और बिहार के नौजवानों की नियति फ़िक्स है। उन्हें दूर से देखा कीजिए तो तस्वीर समझ आएगी। ये सारे मुद्दे उनके जीने के ख़ुराक हैं। समय पर बता देना अपना काम है। बाक़ी युवाओं से अपील है कि वही करें जो आई टी सेल और व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी कहती है। गोदी मीडिया के पत्रकार कहते हैं। सत्यानाश का सपना जल्द पूरा होगा।

(लेखक- रवीश कुमार, वरीष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं।)