औरंगाबाद(लाइव इंडिया न्यूज 18 ब्यूरो)। औरंगाबाद जेल में किसी नामचीन कैदी की मर्डर करने की तैयारी थी, लेकिन जिंदा कारतूस मिल जाने से तैयारी धरी रह गयी लेकिन पिस्तौल बरामद नही हो सका। पिस्तौल क्यो बरामद नही हो सका और किसे ठोकने की तैयारी थी, इस पर जेल प्रशासन ने मौन साध लिया है।
जेल प्रशासन की ओर से औरंगाबाद सदर के अनुमंडल पदाधिकारी का बयान है कि मंडल कारा में शनिवार को रूटीन छापेमारी की गई। छापेमारी में एक जिंदा कारतूस, एक वायल डाइजीपाम दवा, एक सिरिंज, एक पिन एवं चार खैनी का चुनौटी बरामद हुआ है। जिंदा कारतूस की बरामदगी मदनपुर थाना के आंट गांव निवासी बंदी जयशंकर सिंह के झोले से हुई है। वह आर्म्स एक्ट के मामले में जेल में बंद है। कारतूस बरामदगी के मामले में कैदी के खिलाफ औरंगाबाद नगर थाना में प्राथमिकी दर्ज कराई जा रही है।
जेल में जिंदा कारतूस बरामद होने से कई सवाल उठ रहे है। सवाल यह कि जेल में सिर्फ एक कारतूस तो नही आया होगा, बल्कि इसकी संख्या और अधिक ही होगी। साथ ही अकेला कारतूस तो किसी काम का नही है। निःसंदेह कारतूस के साथ पिस्तौल भी होगा, जो कहां गया, इस पर जेल प्रशासन ने चुप्पी साध ली है। जेल में कारतूस और पिस्तौल की किसी कैदी को जरूरत क्या है। ऐसे में यह भी सवाल उठता है कि जेल में कही किसी बंदी का मर्डर करने की तो तैयारी नही थी, जो कारतूस मिलने से परवान नही चढ़ सका।
सवाल यह भी उठ रहा है कि कही बड़ी बदनामी होने के डर से जेल प्रशासन द्वारा ही जिंदा कारतूस की संख्या को कम कर महज एक जिंदा कारतूस दर्शाया गया हो और पिस्तौल को गायब कर दिया गया हो ताकि बड़ी बदनामी से बचा जा सके और अन्य छोटी चीजों के साथ कारतूस की बरामदगी को जोड़कर मामले को हल्का किया जा सके और रूटीन छापेमारी के बहाने पिंड छुड़ा लिया जा सके। अब मामला चाहे जो भी हो लेकिन पूरी सच्चाई उजागर करने के लिए पूरे मामले की गंभीरता और गहराई से जांच होनी चाहिए, तभी जेल प्रशासन पर उड़ रहे बदनामी के छींटे साफ हो सकेंगे। अन्यथा यह माना जाएगा कि यह औरंगाबाद जेल है, यहां सब कुछ चलता और मिलता है, बस कीमत चुकाने का दम होना चाहिए।