कुंवारें- कुंवारियों के इंतजार की घड़ियां खत्म, प्रबोधनोत्सव के साथ शादी ब्याह के मौसम की शरुआत 25 नवम्बर से

औरंगाबाद(लाइव इंडिया न्यूज 18 ब्यूरो)। कुंवारें-कुंवारियों के इंतजार की घड़ियां अब खत्म हुई। कल यानी बुधवार 25 नवम्बर को प्रबोधिनी एकादशी से शादी-ब्याह का लगनौती मौसम पुनः आरंभ हो रहा है।

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प्रबोधनोत्सव के पूर्व के समय आषाढ़ शुक्ल हरिशयनी एकादशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी तक के समय को चातुर्मास कहते हैं। इतने दिनों के लिए शादी ब्याह के लगन मुहूर्त का ना होना कुंवारे मन को कचोटते रहता है। इस तरह से कुंवारे मन को देवोत्थान यानी कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि का सबको बेसब्री से इंतजार रहता है। आचार्य नवीनचन्द्र मिश्र वैदिक ने बताया कि देव उठावनी एकादशी का बड़ा ही महत्व है। साल भर में प्रत्येक पक्षों के एकादशी पड़ने वालों में कार्तिक शुक्ल एकादशी जिसे प्रबोधिनी एकादशी के नाम से जानते हैं, एक अहम स्थान रखता है। आषाढ़ शुक्ल एकादशी को विष्णु भगवान के शयन में जाने के कारण हरि-शयनी एकादशी कहते हैं और प्रबोधिनी एकादशी को भगवान जागते हैं। इस बीच की अवधि को चातुर्मास कहते हैं। चातुर्मास रखने वालों का यह समापन-दिवस है। उनके अनुसार ब्रह्मा जी नारद जी से कहते हैं कि मन्दराचल के समान पाप को भी भष्म कर देने की क्षमता प्रबोधिनी एकादशी में है। सुन्दर अश्व-मेघादि यज्ञ करना तो सबके वश की बात नहीं है परन्तु जो फल अश्वमेघ यज्ञ, सब तीर्थों में स्नान, गौ-स्वर्ण-भूमि का दान के पुण्य और भी बहुत से संचित पुण्य जो अप्राप्य है, वह भगवान की प्यारी हरि-शयनी एकादशी व्रत जागरणपूर्वक करने से प्राप्त हो जाता है।

स्नानं दानं जपो होमः स्वाध्यायो ऽभ्यर्चनं हरे। तत्सर्वं कोटितुल्यं तुप्रबोधिन्यां तु यत्कृतम्।। स्नानं, जप, होम, स्वाध्याय,

हरि – पूजन दूसरे दिन के पुण्य को इस दिन करने से प्रबोधिनी दूना फल कर देती है। देवर्षि नारद द्वारा प्रश्न करने पर ब्रह्मा जी कहते हैं कि जो कोई ब्रह्म मुहूर्त अर्थात् रात्रि का कुछ अंश रहते जागकर स्नान कर के स-संकल्प व्रत करते हुए द्वादशी को अन्न ग्रहण करना चाहिए। मन से हरि भगवान के शरण में जाते हुए रात्रि में जागकर विष्णु भगवान को प्रशन्न करता है वह सत्य लोक में निवास करता है। प्रबोधिनी एकादशी में पुष्प, फल, कपूर, कुमकुम एवं विशेषतः अगस्त्य के फूल से श्री विष्णु भगवान की पूजन करनी चाहिए।

विल्वपत्रैश्च ये कृष्णं कार्तिक काल वर्धनः, पूजयन्ति मसाभक्त्या मुक्तिस्तेषां मयोदिते।।

अर्थात बेल पत्र एवं तुलसी पत्र, आंवले के फल और से जनार्दन(विष्णु) भगवान की पूजा करनी चाहिए। इससे दस हजार जन्म के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। कदम्ब के फल एवं अशोक के फूल से विष्णु भगवान को पूजा करने से मनुष्य कभी भी शोक का मुख नहीं देखता है। लाल या सफेद कनैल के फूल से श्री विष्णु की पूजा करने से चारों युगों में केशव कृपा करते है। दूब के अंकुर से विष्णु की पूजा कार्तिक मास में करने से उनकी पूजा सौ गुणा फल देती है तो शमी के पत्र से सुख देने वाले भगवान की पूजा करने से उनके भक्त यमराज के मार्ग को स्वप्न में भी नहीं देखते हैं। वर्षा ऋतु(चातुर्मास) चम्पा के फूल से पूजन करने से श्री विष्णु भगवान अपने भक्तों को पुनर्जन्म नहीं देते हैं। पांकर के फूल जनार्दन भगवान पर चढ़ाने से स्वर्ण (सोना) चढ़ाने का फल प्राप्त होता है। ऐसा ब्रह्मा जी नारद जी से पद्मपुराण के अनुसार बताते हैं। दीप दान अवश्य करना चाहिए और कार्तिक शुक्ल एकादशी व्रतियों को चाहिए कि कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के दिन विष्णु को बेलपत्र और शंकर को तुलसी से पूजन कर के व्रत को पूर्णता प्राप्त करे। इन सामग्रियों को एकादशी से पूर्णिमा के बीच अर्पण कर के श्री हरि की कृपा प्राप्त किया जाए।

सिव द्रोही मम भगत कहावा। सो नर सपने हुं मोहि न पावा।। शंकर-प्रिय मम द्रोही मम दास। ते नर करहि कलप भारि घोर नरक महुं वास।।

इस तरह व्रत सम्पन्न करते हुए श्री विष्णु नगरी गया धाम में श्री विष्णु चरण का दर्शन एवं श्री विष्णु सहस्त्रनाम या श्री विष्णु सहस्त्रनामांवलि से सहस्त्रार्चण(तुलसी चढ़ाना) विष्णु भक्ति में सम्पन्नता देने वाला है। अपने घर में उख(केतारी) के मंडप बना दरवाजे पर श्री विष्णु भगवान की चैरेठा से पादुका (खड़ाऊ) बना कर के उनका स्वागत करते हैं।