नाम के अनुरूप प्रबल हैं प्रबल सिंह, जिन्होने अपने बल पर घर से फूटी कौड़ी लगाए बगैर कराए बारूण के मेंह पंचायत में मुखिया से ज्यादा काम, इस बार है फिर से मुखिया उम्मीदवार

औरंगाबाद(लाइव इंडिया न्यूज 18 ब्यूरो)। चुनावी राजनीति में जीत हार तो लगा ही रहता है पर हारने के बावजूद कोई अपने दम पर इतने काम करा डाले, जितना जीता हुआ प्रतिनिधि भी नही करा पाए, तो उसे हारकर भी जीता हुआ सिकंदर ही कहेंगे न।

तो आइए आपको मिलाते है एक ऐसे ही सिकंदर से जिन्होने पिछले बार के पंचायत चुनाव में मुखिया का पद हासिल नही कर पाने के बावजूद ग्रामीण राजनीति में अपनी एक अलग छाप छोड़ रखी है, बल्कि आज भी वे अपने प्रतिद्वंदियों पऱ भारी है।

नाम है, प्रबल सिंह जो बारूण प्रखंड के मेंह पंचायत के पूर्व मुखिया है और इस बार के चुनाव में भी इसी पंचायत से मुखिया पद के लिए पूरे दमखम के साथ मैदान में उतरे हुए है।

प्रबल सिंह कहते है कि उनके मुखिया रहते मेंह पंचायत में जो विकास हुआ, उसकी तुलना में उनके बाद के मुखिया का विकास नगण्य सरीखा है। काम की गुणवता में कमी, योजनाओं में लूट, गरीबों को कल्याणकारी योजनाओं का अपेक्षित लाभ नही दिया जाना निवर्तमान मुखिया के ख़ाते की उपलब्धियां है जबकि मैने हारे हुए मुखिया के रूप में जों कार्य किए है वह किसी दूसरे के बूते के बाहर की बात है।

प्रबल सिंह अपने नाम के अनुरुप ही बोली और वचन से प्रबल है। सामने वाला चाहे कितने ही बड़े रसूखदार ओहदे पर क्यों न हो वे अपनी बात को उसके समक्ष प्रमुखता के साथ रखते है। उन्होने मेंह पंचायत के एनपीजीस़ी की बिजली परियोजना से विस्थापित और प्रभावित होने को लेकर प्रबंधन के स्तर तक अपनी बातों को मजबूती के साथ पहुंचाया।

जुझारूपन के साथ गांव और पंचायत को सीएसआर के तहत मिलने वाले हक की लड़ाई लड़ी। लिहाजा एनपीजीसी प्रबंधन को मजबूर होकर इस क्षेत्र में विकास कार्य कराने ही पड़े।

आज मेंह पंचायत के गांवों में सोलर लाइट सिस्टम, पीसीसी सड़के आदि जो भी विकास कार्य एनपीजीसी ने कराएं है, वे सारे कार्य उनके संघर्षों की उपज है। प्रबल सिंह कहते है कि मुखिया के रुप में अपने कार्यकाल के दौरान सरकारी राशि के कम आबंटन और इंदिरा आवास, वृद्धा पेंशन औंर अन्य कल्याणकारी योजनाओं के लक्ष्य की संख्या कम रहने के बावजूद पंचायत के सभी गांवों में समान रूप से कार्य कराया जो आज भी उदाहरण है और निवर्तमान मुखिया इतना भी कुछ नही कर सके।

लिहाजा पंचायत के लोगों ने जब उनके घर पर आकर उनसे चुनाव लड़ने को कहा तब जाकर वे पुनः मेंह पंचायत से मुखिया पद के उम्मीदवार बने। अब वे जनता के द्वारा बनाए गए उम्मीदवार हैं।

उनका दावा है कि मेरी जीत में कोई संशय नही है पर वे कहते है कि मैं यह खुले दिल से स्वीकार करता हूं कि पूर्व में मुझसे जो भी कमी रह गई होगी, वह सब पूरा कर दूंगा। मुखिया बनने पर पंचायत के लिए आबंटित होने वाली राशि से तो विकास कराउंगा ही। साथ ही पुरजोर प्रयास कर एनपीजीसी के सीएसआर फंड से भी अन्य विकास तरह के विकास के कार्य कराउंगा।

बहरहाल वादों और दावों की हकीकत का खुलासा तो चुनाव परिणाम तय करेगा लेकिन अभी तो हर उम्मीदवार वोटरो को अपनी ओर खींचने में लगा है ताकि उनकी जीत हो सके।