जानें-जिसका कुछ नही उखाड़ सका सूबे के मुखिया का दारूबंदी कानून, उस MP कों जड़ मूल से उखाड़ने को बेताब हैं कहां के Voters

औरंगाबाद(लाइव इंडिया न्यूज 18 ब्यूरो)। पांच साल तक वह दारू पीता रहा। मस्ती और खुमारी में रहा। उसके चांडाल चौकड़ी की मौज रही। चौकड़ी ने जो चाहा, वह किया। दारूबंदी लागू करनेवाले राज्य के मुखिया नीतीश कुमार और उनका शराबबंदी कानून उसका कुछ नही उखाड़ सका लेकिन हम उसको उखाड़ देंगे। उखाड़कर अइसा फेकेंगे कि मुखियागिरी करने की बात कहिनो नही करेगा।

यह कहना है, औरंगाबाद जिले के रफीगंज़ प्रखंड के चेंव पंचायत के वोटरो का। गौरतलब है कि पूरे राज्य में इस वक्त त्रिस्तरीय पंचायती राज संस्थाओं के विभिन्न पदों के चुनाव हो रहे है। इसे लेकर हर जगह राजनीतिक सरगर्मी बढ़ी हुई है।

उम्मीदवार झोली फैलाकर वोटरो के दरवाजे पर पहुंच रहे है और अघोषित तौर पर चुनावी वायदों के साथ यही कह रहे है कि “तेरे दर पे आया हूं, क़ुछ कर के जाउंगा, झोली भर के जाउंगा या मर के जाउंगा”। सच में लोकतंत्र में जनता ही झोली भरने और मारने की मालिक है। वोटर भगवान जिसकी झोली वोटो से भर दे वह जीत गया और जिसकी झोली में कुछ नही डाला, समझो वह मर गया यानी चुनाव हार गया।

ऐसी ही चर्चा हमसे चेंव पंचायत के कई गांवों के वोटरो ने की। वोटरो ने राज्य में लागू पूर्ण शराबबंदी की भी पोल पट्टी खोली। कहा और आरोप लगाया कि जिस अरमान से पिछ्ले चुनाव में हमने प्रभा देवी को मुखिया चुना था, उस मुखिया के प्रतिनिधि धनंजय शर्मा ने हमारे अरमानों का गला घोंट दिया। मुखिया प्रतिनिधि पियांक निकला। वह पांच साल तक भुंई टोली में दारू गटकता रहा।अपने लोगो को भी छक कर गटकाता रहा। आजू बाजू वाले लोग मौज़ मस्ती में रहे लेकिन पंचायत दस साल पीछे चला गया। कोई विकास नही हुआ।

अब चुनाव आने पर मुखिया प्रतिनिधि को फिर से विकास की चिंता सता रही है। नॉमिनेशन करने के बाद मुखियाइन को साथ लेकर अब हम जनता जनार्दन के पास वोट मांगने आ रहे है, उनको सबक सिखाएंगे, बदलाव लाएंगे।

कई गांवों में वोटर भगवान की इस तरह कारगुजारियों को सुनने के बाद निवर्तमान मुखिया जी और वर्तमान प्रत्याशी के प्रतिनिधि से मिलने के लिए हमारी टीम ने सीधा रूख किया, उनके गांव पांती का, जहां पहुंचते ही न केवल चिराग तले अंधेरा वाली बात लागू हुई बल्कि दूसरे प्रतिनिधि के काम का श्रेय खुद लेने की बात उजागर हो गई।

पांती गांव में मुखिया प्रतिनिधि से तो मुलाकात नही हुई। पता चला कि वे फील्ड में अपनी टीम के साथ प्रचार में लगे है लेकिन अपना पक्ष रखने के लिए गांव के अपने चहेतो को हमारे पीछे लगा दिया। उनके चहेते भी निराले निकले।

कहा कि गांव में खुब काम हुए। उन्होने गांव में घुमाकर हमे काम दिखाएं पर सारे काम में हमे झोल नजर आया जो तस्वीरे खुद ब खुद बयां कर रही है। कोई और होता तो मुखिया प्रतिनिधि के चहेते उसे गोल गोल घुमाकर चक्कर घिनी कर देते पर हमारी टीम उनके साथ गोल गोल पांती गांव में घुमी पर चक्कर घिनी नही खा सकी।

उल्टे हमने उन्हे उन्ही के गांव में उन्ही के आइने में उन्ही के विकास के दावों की कलई खोल कर रख दी। हमने उन्हे दिखा दिया कि जिस काम को वे अपने मुखिया जी का किया हुआ काम बता रहे है, दरअसल वह काम तो उनके मुखिया जी ने नही बल्कि जिला पार्षद ने कराया है, जिसका गांव में शिलापट्ट भी लगा है।

इससे मुखिया प्रतिनिधि के चहेते झेपने को तो मजबूर हुए पर झेप मिटाने के लिए उन्होने झूठ का सहारा लिया और कहा कि काम भले ही जिला पार्षद के फंड से हुआ है लेकिन योजना मुखिया जी ही ने दी थी।

खैर मुखिया प्रतिनिधि के चहेतों की सुनने के बाद जब हम आगे बढ़े तो हमारी मुलाकात इसी पंचायत के एक और मुखिया प्रत्याशी नुसरत जहां के प्रतिनिधि जैनुल अंसारी से हो गई। उन्होने राजनीतिक चतुराई दिखाते हुए निवर्तमान मुखिया पर सीधे तौर पर तो कोई आरोप नही लगाया लेकिन यह जरूर कहा कि जनता ने मौक़ा दिया तो वे जरूर बेहतर मुखिया प्रतिनिधि साबित होंगे क्योकि कुछ भी नही रहने के बावजूद उन्होने अपने फंड से कई जगह विकास किए है।

बहरहाल चेंव पंचायत में राजनीतक सरगर्मी जोरो पर है। उम्मीदवार खम ठोक रहे है पर सफलता किसे मिलती है, यह तो चुनाव परिणाम ही बताएगा। यह थी पंचायत चुनाव पर हमारी ग्राउंड जीरो से रिपोर्ट। अगली बार फिर मिलते है किसी और पंचायत की ग्राउंड जीरो से रिपोर्ट लेकर।