संगठन व सृजन, साहित्य व राजनीति दोनों मोर्चों पर सक्रिय थे खगेन्द्र ठाकुर

पटना (लाइव इंडिया न्यूज18 ब्यूरो)। प्रगतिशील लेखक संघ पटना की ओर से हिंदी के प्रख्यात आलोचक खगेन्द्र ठाकुर की पहली पुण्यतिथि के अवसर ‘” खगेन्द्र ठाकुर : व्यक्तित्व व कृतित्व’ विषय पर विमर्श का आयोजन किया गया। मैत्री शांति भवन में आयोजित इस कार्यक्रम में शहर के बुद्धिजीवी, साहित्यकारों, वामपन्थी दल के नेताओं ने उनके व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला।

प्रगतिशील लेखके संघ राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य सुनीता गुप्ता ने सभा को संबोधित करते हुए कहा ” खगेन्द्र ठाकुर का जीवन एक मीठा पानी जैसा रहता है। उनकी कविताओं से गुजरते हुए हम उनके स्वप्न,संघर्ष झलकता है। संगठनकर्ता वाली छवि के कारण उनका आलोचक व्यक्तित्व छुप जाता है। उनकी आलोचना में स्पष्ट व पारदर्शी दृष्टि मिलती है। मार्क्सवाद पर उनकी किताबें समय व समाज से जोड़ती है। उनको कोई उहापोह नहीं था। इतनी आयु के बावजूद वे हर तरह के आयोजनों में शामिल हुआ करते थे।”

चर्चित कथाकार संतोष दीक्षित ने खगेन्द्र ठाकुर के व्यक्तित्त्व पर रौशनी डालते हुए कहा ” खगेन्द्र ठाकुर छोटी से छोटी किस्म की गोष्ठियों में भी मौजूद रहा करते। मैं एक दूसरे अनुशासन से आया था। मुझे संगठन में लाने का श्रेय उन्हें ही जाता है। 1994-95 से लेकर लगभग एक दशक तक हमने काफी गोष्ठियां आयोजित की। एक बार नामवर सिंह ने कहा था कि नलिन विलोचन शर्मा के बाद जो एक शून्य से आ गया था उसे खगेन्द्र जी ने ही भरा। इस चुनाव में खगेन्द्र जी की बहुत याद आती रही। हर चुनाव में हमलोग उनसे चर्चा किया करते। साम्प्रदायिकता पर उनकी लिखी पुस्तिका आज भी रौशनी डालती है।”

विश्विद्यालय व महाविद्यालय कर्मचारियों के राष्ट्रीय नेता प्रोफ़ेसर अरुण कुमार ने अपने संबोधन में कहा ” मैं भी पटना प्रलेस में सक्रिय हो गया था। आजादी की 50 वीं वर्षगांठ के अवसर पर नवादा में दो दिनों का सम्मेलन हुआ। उनको याद करते हुए लगता है कि वे साहित्यकार होने जे साथ साथ वे शिक्षक सन्गठन में भी वैसे ही सक्रिय थे। जब ‘जनशक्ति’ के लिए काम करने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी। पार्टी व विचार के लिए काफी बढ़चढ़ कर काम किया करते थे। उनके न रहने एक रिक्तता आ गई है। एक बार बेगुसराय में चन्द्रशेखर जयंती पर खगेन्द्र जी बोलने लगे तो खुद वहां के लोग चकित थे। अपनी सक्रियता से उन्होंने ऐसा स्पेस बना लिया जो हमेशा याद किया जाएगा।”

खगेन्द्र ठाकुर के पुत्र भास्कर ने याद करते हुए कहा ” वे बहुत अनुशासित व्यक्ति थे। साहित्य व राजनीति दोनों क्षेत्र में वे सक्रिय रहा करते। कई बार लगता है कि साहित्य में रहने के कारण उनको झटका लगता। गंगाधर दास की पुण्यतिथि के दौरान उन्होंने कहा था कि एम.एल.ए, एम पी बनना उजला कपड़ा पर लाल छींट के समान हुआ करता था। नामवर जे निमित कार्यक्रम के दौरान में उन्हींने वक्ताओं की सूची से लालू प्रसाद, नीतीश कुमार सरीखे नेताओं का नाम काट दिया। नागार्जुन के बारे में एक नेता कुछ गलत बात बोल रहे थे तो पिता जी ने कहा किंकया कारण है कि आपका चेहरा नहीं छपता और नागार्जुन के पांव की भी तस्वीर छप जाती है। सीधे साधे रहने के बावजूद वे कभी गलत बातों को बरदाश्त नहीं किया करते थे।”

प्रगतिशील लेखक संघ के उपमहासचिव अनीश अंकुर अपने संस्मरणों को साझा करते हुए कहा ” सोवियत संघ के विघटन के बाद बहुत साहित्यकारों के अंदर मार्क्सवाद के अपनी प्रतिबद्धता को शंका की दृष्टि से देखने लगे थे। लेकिन खगेन्द्र जी के मन में कोई उलझन न था। वासदेवशरण अग्रवाल, नागार्जुन और दिनकर पर उनका काम बहुत दुर्लभ किस्म का था। भारत के चार नेताओं गांधी, नेहरू, लोहिया और जयप्रकाश पर उनकी किताब सबको पढ़ना चाहिये। “

‘इसकफ’ के राज्य महासचिव रवींद्र नाथ राय ने कहा ” मेरी उनसे मुलाकात अस्सी के दशक में हुआ करती थी। एक बार हमलोगों ने जंगलों में ए. आई.एस. एफ का क्लास लगाया था। कोई टीचर जाने को तैयार न था। लेकिन खगेन्द्र ठाकुर उस बीहड़ स्थल पर भी आये। उनके साथ नामवर जी घर गया। खगेन्द्र जी ने कहा था कि पान लेते चलना है।”

केदारदास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान जे अशोक कुमार सिन्हा ने अपने संस्मरणों को साझा करते हुए कहा ” मेरे लिए वो सबसे पहले एक कम्युनिस्ट थे। मैंने जो कुछ भी उनके सम्पर्क में सीखा है कोशिश करँगा की उसे अपने जीवन मे उतारूँ।”

सभा में पूनम सिंह और अरुण कमल का संदेश पढ़कर सुनाया गया। राकेश राज ने खगेन्द्र ठाकुर जी कुछ कविताओं का पाठ किया। सभा में मौजूद लोगों में कपिलदेव वर्मा, जीतेन्द्र कुमार, विनीत राय, पुष्पेंद्र शुक्ला, लता पराशर, मीर सैफ अली, राहुल कुमार, राकेश राज, गोपाल शर्मा प्रमुख थे।