जेजे बोर्ड ने रोका चार थानों के छः बाल कल्याण पुलिस पदाधिकारियों का वेतन

औरंगाबाद(लाइव इंडिया न्यूज 18 ब्यूरो)। किशोर न्याय परिषद(जुबेनाइल जस्टिस बोर्ड), औरंगाबाद ने जिले के चार थानों के बाल कल्याण पुलिस पदाधिकारियों का वेतन भुगतान रोकने का आदेश दिया है।

अधिवक्ता सतीश कुमार स्नेही ने बताया कि परिषद के प्रधान दंडाधिकारी मनीष कुमार पांडेय ने शुक्रवार को जिले के छः पुलिस अवर निरीक्षकों का वेतन रोकने का आदेश पुलिस अधीक्षक और कोषागार पदाधिकारी को दिया है। पहला मामला औरंगाबाद नगर थाना कांड संख्या 354/21 से जुड़ा है। इस मामले में कांड दैनिकी और आरोप पत्र प्रस्तुत नहीं करने पर बाल कल्याण पुलिस अधिकारी पुलिस अवर निरीक्षक शिशुपाल का वेतन रोकने का आदेश दिया गया है। दूसरे मामलें में कुटुम्बा थाना कांड संख्या 11/20 में कांड दैनिकी और आरोप पत्र दाखिल नहीं करने पर बाल कल्याण पुलिस अधिकारी पुअनि राजेश्वर प्रसाद और अनुसंधानकर्ता श्रीपति मिश्र का वेतन तत्काल प्रभाव से रोकने का आदेश दिया गया है।

तीसरे मामले में अम्बा थाना कांड संख्या 53/22 में कांड दैनिकी और आरोप पत्र दाखिल नहीं करने के कारण बाल कल्याण पुलिस अधिकारी दवेंन्द सिंह का वेतन रोकने का आदेश दिया गया है। चौथे मामले टंडवा थाना कांड संख्या 127/20 में कांड दैनिकी प्रस्तुत नहीं करने पर बाल कल्याण पुलिस अधिकारी जय गोपाल राय एवं अनुसंधानकर्ता पुलिस अवर निरीक्षक वीरेंद्र कुमार सिंह का वेतन रोकने का आदेश दिया गया है। सभी वादों की सुनवाई की अगली तारीख 03 अगस्त निर्धारित की गयी है। अधिवक्ता ने बताया कि इन मामलों में बिहार जेजे अधिनियम 2017 के नियम 10(6) का उल्लंघन हुआ है। इससे किशोर न्याय परिषद की कार्यवाही अनावश्यक रूप से आगे नहीं बढ़ पा रही है। कार्यवाही बार बार स्थगित हो रही है। छोटे और गंभीर अपराध की स्थिति में प्रथम सूचना दर्ज होने के दो माह के भीतर कांड दैनिकी प्रस्तुत करना आवश्यक है तथा जघन्य अपराध के मामलों में एक माह के भीतर कांड दैनिकी प्रस्तुत करना आवश्यक है। उन्होने बताया कि देव थाना कांड संख्या 119/18 गम्भीर अपराध का मामला था। यह घटना 21 अक्टूबर 2018 की थी। मामले की प्राथमिकी भादंसं की धारा 323, 325, 379, 308 और डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम के तहत की गयी थी। इसमें तीन वर्ष नौ महीने तक कांड दैनिकी प्रस्तुत नहीं किया गया। इस वाद की वाद प्रक्रिया को आज न्यायालय ने समाप्त कर दिया और कहा कि वाद के जजमेंट में यह कहा गया है कि यह पुलिस की अक्षमता, लापरवाही और गैर जिम्मेवार‌ रवैया ही है कि पौने चार साल से कांड दैनिकी न्यायालय नहीं लाया जा सका। जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि अपराध की प्रकृति 7 साल से कम सज़ा की हो और किशोर ने 16 वर्ष पूरी नहीं की हो तो तीन माह के अंदर आरोप पत्र दाखिल नहीं करने पर वाद प्रक्रिया समाप्त हो सकती है और मामले की कार्यवाही समाप्त की जा सकती है। मामले में इसका लाभ अभियुक्त को मिला।