भूगर्भ जल का संरक्षण नही हुआ तो प्यासे तड़पेंगे लोग : रामानुज

औरंगाबाद(लाइव इंडिया न्यूज 18 ब्यूरो)। भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष एवं सामाजिक कार्यकर्ता रामानुज पांडेय ने केंद्र एवं राज्य सरकार का बढ़ते जल संकट की ओर ध्यान आकृष्ट कराया है।

श्री पांडेय ने प्रेस बयान जारी कर कहा कि जिस प्रकार से पर्यावरण परिवर्तन हो रहा है और भूगर्भ जल का पेयजल के अतिरिक्त भी उपयोग बढ़ता जा रहा है। इससे पानी पुनः धरती के अंदर जाने के बजाए समुद्र या वायुमंडल में चला जा रहा है। इस कारण प्रत्येक वर्ष भूजल का स्तर तेजी से गिरता जा रहा है। दुनिया भर मे एवं भारत मे भी कई नगर ऐसे हैं, जहां भूजल समाप्त हो चुका है। इन जगहों में चार चार महीनों तक पीने के पानी का संकट हो जाता है। पूर्व अध्यक्ष ने कहा कि दुनिया के अंदर इकहत्तर प्रतिशत खारा समुद्री जल है। शेष जल में नदी तालाब और ग्लेसियर हैं और कुल दो प्रतिशत से भी कम जल भूगर्भ जल के रूप में उपलब्ध है जिसका उपयोग भी मनुष्य उद्योग धंधो कृषि कार्य मे बेरोकटोक कर रहा है। बेहिसाब प्रदूषण के कारण भूगर्भ जल का पहला दूसरा स्तर इतना प्रदूषित हो गया है कि लोग धड़ल्ले से आरओ सिस्टम का उपयोग करने लगे हैं जिसके कारण लगभग पचहत्तर प्रतिशत पानी बेकार में नालियों में बह जाता है। जबतक कुंआ से भूगर्भ जल उपयोग में लिया जाता था, तब तक खपत सीमित था। चापाकल से कुछ बढ़ा लेकिन घर घर मे मोटर पम्प लग जाने से घर घर में बेहिसाब पानी का खपत बढ़ा है। एक एक आदमी सैकड़ों लीटर पानी बर्बाद करने लगा है। उद्योगों के विस्तार, खेती में उपयोग, गाड़ियों की सर्विसिंग और फिर सारे पानी के नालियों में बहा दिये जाने के कारण लगातार जलस्तर गिर रहा है।

दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि हम आने वाले इस भयावह जल संकट से बिल्कुल ही लापरवाह हैं। समुद्र के जल को पीने योग्य बनाने की तकनीक ढूंढ ली गई है पर उसे घर घर पहंुचाना आसान नही है और यह खर्चीला है। हम सरकार एवं समाज सभी से आग्रह करते हैं कि भविष्य में जो भी भवन बने उसमे सोख्ता(शॉकपिट) अवश्य बने और जैसे घर घर शौचालय बनाए गए, वैसे ही जो सक्षम हो स्वयं जहां सरकार की सहायता की जरूरत हो सरकार सहयोग कर घर घर मे सोख्ता बनाना नियमतः सुनिश्चित करें। ताकि मात्र प्रतिदिन निकले जाने वाले जल की पुनः भूगर्भ में वापसी नही बल्कि वर्षा के भी जल को भूगर्भ जल के स्तर को बढ़ाने के लिए जमीन के अंदर उसे संरक्षित करना सुनिश्चित किया जा सके। हम सरकार एवं समाज दोनो को आगाह करते हैं कि यदि इसे अभियान के रूप में लेकर नही किया गया तो उद्योग धंधे खेती तो चैपट होगा ही, मनुष्य पेयजल के अभाव में तड़पेंगे। अभी तो कुछ महीनों का संकट लोग झेल रहे है और शायद कम कीमत में पेयजल खरीद रहे हैं। आने वाले दिनों में वह भयावह स्थिति आ सकती है कि शायद लोगों को पानी के लिए तरसना पड़ेगा। समय रहते सरकार और समाज इसके प्रति गम्भीरता से विचार करते हुए व्यवस्था बनाये।