इतिहास के झरोखें से : रुपमति के रुप का दीदार नही कर सका आदम खां

विज्ञान हमारे जीवन के हर पहलु में रचा बसा है, पर इतिहास की भी जानकारी जरुरी है। बहुधा ऐसा होता हैं कि हम इतिहास के ओझल पहलुओं से अपरिचित हुआ करते है। इतिहास के ओझल पहलुओं के प्रति अवाम की जिज्ञासाओं के निवारण के लिए कलम उठाई है-वरिष्ठ और स्वतंत्र पत्रकार राकेश कुमार ने। श्री कुमार समय-समय पर इस मंच पर इतिहास के अनछुएं और ओझल पक्ष से हमारे पाठकों को रुबरु कराएंगे। प्रस्तुत है पहली कड़ी-(सं)

बैरम खाँ के संरक्षण काल में मुगल साम्राज्य का विस्तार किया जा रहा था। अकबर की पालने वाली माँ माहम आगा और उसके बेटे आदम खाँ के नेतृत्व में मालवा को जीतने के लिए मुगल सेना रवाना की गई।

तब मालवा का शासक बाजबहादुर था। वर्ष 1561। आदम खाँ ने मालवा के शासक बाजबहादुर को पराजित कर दिया। मालवा अब मुगल साम्राज्य में मिला लिया गया किन्तु बाजबहादुर की पत्नी रूपमती के प्रतिरोध की कहानी तत्कालीन भारत में सबके जुबान पर चढ़ गई।

बाजबहादुर युवा शासक था। वह काव्य प्रेमी था। उसे संगीत बेहद पसंद था। कोमल हृदय बाजबहादुर सुंदरता का पुजारी था। रूपमती की सुंदरता की चर्चाएं भी मालवा में कुछ ज्यादा ही थी। बाजबहादुर रूपमती से प्रेम कर बैठा। इधर, रूपमती और बाजबहादुर के प्रेम जैसे-जैसे परवान चढ़ रहे थे, उधर, दोनों के प्रेम की कहानियां भी लोगों के जुबान चढ़ रहे थे।

कहा जाता है कि रूपमती के प्यार में बाजबहादुर पागल था। रूपमती के रूप-सौंदर्य के रस में गोते लगाने में मशगुल था। राज्य से ज्यादा राजरानी पर बाजबहादुर का ध्यान था। मधुर स्वर लहरियों और सुरम्य तानों से गुंजायमान मालवा की राजधानी नगर मांडू बाजबहादुर की संगीत प्रेम में ख्यातिलब्धि हासिल कर रहा था। जहां संगीत को प्रश्रय मिलता है, वहां संस्कृति स्वतः समुन्नति की ओर अग्रसर होती है।

इधर, मुगल बादशाह अकबर के संरक्षक बैरम खाँ को बाजबहादुर के प्यार में गोते लगाने की खबर मिली रही थीं। बैरम खाँ को मालवा पर आक्रमण का उपयुक्त अवसर दिखा। बैरम ने अकबर की पालने वाली माँ माहम आनगा के पुत्र आदम खाँ के नेतृत्व में मालवा को जीतने के लिए सेना की रवानगी की।

बाजबहादुर ने बहादुरी के साथ आदम खाँ को आजमाया किन्तु बाजबहादुर की हार गया।
मालवा पर जीत के साथ आदम खाँ उन्मादी हो गया। आदम खाँ आदमियत छोड़ हैवानियत पर उतारू हो गया। उसने मालवा में लूट की छूट सेना को दी। लूट का भरपूर माल मुगलों को हाथ लगा। इसमें रूपमती भी शामिल थी। रूपमती बाजबहादुर की प्यारी थी और वह किसी भी सूरत में आदम खाँ की हरम में नहीं जाना चाहती थी। रूपमती ने आत्महत्या कर अपनी सुहाग के प्यार को युग-युगांतर के लिए अमर कर दिया।

रूपमती की आत्महत्या के बाद मालवा में प्रतिक्रिया हुई। मालवा के लोगों ने बाजबहादुर को पुनः शासक बना दिया। अकबर ने मालवा के खिलाफ दोबारा सेना भेजी। बाजबहादुर मालवा से भाग खड़ा हुआ। कुछ दिनों तक मेवाड़ के राणा के शरण रहा किन्तु बाद में इधर-उधर भटकने लगा। बाजबहादुर ने आत्मसम्मान को तिलांजलि दी और अकबर के दरबार में जाकर आत्मसमर्पण कर दिया। जहाँ रूपमती ने झुकने की जगह मिट जाने को प्राथमिकता दी थी, वहीं बाजबहादुर ने झुकने को। अब बाजबहादुर अकबर के मनसबदार बना दिया गया और मालवा को मुगलों का गुलाम।