पुडुचेरी में कांग्रेस सरकार का फ्लोर टेस्ट 22 फरवरी को

नई दिल्ली। पुडुचेरी में डॉ. तमिलसाई सौंदर्यराजन ने गुरुवार को उपराज्‍यपाल पद की शपथ ली और उसके ठीक बाद उन्‍होंने विधानसभा में फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया। उपराज्‍यपाल ने कांग्रेस पार्टी को 22 फरवरी को विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने के लिए कहा है। दरअसल एक और विधायक के इस्तीफे के बाद पुडुचेरी की कांग्रेस सरकार ने बहुमत खो दिया है।

उपराज्यपाल कार्यालय से जारी वक्तव्य में कहा गया है कि विपक्ष और सत्तापक्ष दोनों के पास ही 14-14 सीटों की संख्या है। इसलिए संविधान के अनुच्छेद 239 में दी गई शक्तियों का उपयोग करते हुए, उपराज्यपाल ने 22 फरवरी को पुडुचेरी विधानसभा में सत्र बुलाया है, जिसमें कांग्रेस पार्टी को बहुमत सिद्ध करना होगा। उसी दिन शाम 5 बजे तक फ्लोर टेस्ट के माध्यम से इस बात का निर्णय लिया जाएगा कि किसके पास सरकार बनाने का बहुमत है।

क्या कहते हैं आंकड़े

सत्तारूढ़ और विपक्षी दोनों खेमों की ताकत 33 सदस्यीय सदन में 14 पर है, जिसमें भाजपा के तीन मनोनीत विधायक शामिल हैं। विधानसभा में पांच सीटें रिक्ति हैं। कांग्रेस की अपनी ताकत अध्यक्ष सहित दस है, जबकि उसके सहयोगी द्रमुक के तीन सदस्य हैं। एक स्वतंत्र विधायक भी सरकार के समर्थन में है। अब तक कांग्रेस के चार विधायक पार्टी में बगावत कर चुके हैं। जिनके नाम ए जॉन कुमार, मल्लदी कृष्ण राव, नमिचीवम और थिपिनदान है। इनमें से नमिचीवम और ई थिपिनदान पहले ही भाजपा में शामिल हो चुके हैं और ए जॉन कुमार के जल्द ही भाजपा में आने के कयास लगाए जा रहे हैं।

पिछले चुनाव में प्रदर्शन

साल 2016 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 15 सीटें मिली थीं जबकि एआईएनआरसी ने सात सीटों पर जीत दर्ज की थी। एआईएडीएमके ने 4 सीटों पर जीत हासिल की थी। तीन सीटों पर डीएमके के नेताओं ने जनता ने चुना था तो एक सीट पर निर्दलीय विधायक ने जीत हासिल की थी। तीनों मनोनित सीटों पर बीजेपी के विधायक हैं। डीएमके और निर्दलीय विधायकों की मदद से कांग्रेस गठबंधन की सरकार को 19 विधायकों का समर्थन हासिल था। लेकिन, चार विधायकों के इस्तीफे और एक विधायक को पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते पार्टी से बाहर निकाले जाने के कारण कांग्रेस की सरकार संकट में दिखने लगी है।

पुडुचेरी इतिहास

पुडुचेरी वर्षों से कांग्रेस का गढ़ बना हुआ है। तमिलनाडु में शासन करने वाली एआईएडीएमके और डीमके दोनों ही केंद्र शासित प्रदेश में जड़े जमाने में असमर्थ रही हैं। 2017 में तीन स्थानीय पार्टी पदाधिकारियों के नामांकन के बाद भाजपा को एक नगण्य उपस्थिति मिली, जिसने प्रमुखता हासिल की। भाजपा ने 2016 में सभी 30 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन उसे किसी भी सीट पर विजय नहीं मिली थी।

सोर्स- PBNS

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