Diego Maradona खिलाड़ी होने के साथ साथ अमेरिकी साम्राज्यवाद के मुखर विरोधी थे

पटना (लाइव इंडिया न्यूज18 ब्यूरो)।  फुटबॉल के महानतम खिलाड़ियों में शुमार किये  जाने वाले डियेगो माराडोना की स्मृति में पटना में जमाल रॉड स्थित माकपा दफ़्तर में कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में फुटबॉल खिलाड़ी, संस्कृतिकर्मी, सामाजिक कार्यकर्ता सहित समाज के विभिन्न तबके के लोगों ने भागीदारी निभाई। टाटा फुटबॉल एकेडमी से जुड़े रहे बिहार के चर्चित फुटबॉल खिलाड़ी  संतोष एजी ने अपने संबोधन में  कहा ” जब 2008 में माराडोना कोलकाता आये तो हमलोगों में से कई खिलाड़ी उनसे मिलने गए थे। खेल के हाफ टाइम में ही अपनी कलाकारी दिखा देते थे। माराडोना का जीवन भले विवादित रहा हो लेकिन ज्योंहि वे मैदान  में उतरते थे तमाम उनकी बातें भूल उनके खेल के बारे में बात करने लगते थे। उनके खेल में एक जादू था जिससे सभी लोग आकर्षित हो जाते थे।

“सामाजिक कार्यकर्ता सुनील सिंह ने अपने संबोधन में कहा ” नब्बे के  दशक का शायद ही कोई व्यक्ति होगा जो माराडोना के नाम से परिचित न होगा। माराडोना को किसी बात को कहने में हिचकते न थे। लैटिन अमेरिका  के ब्लड में राजनीति था। उसके केंद्र में था अमेरिकी साम्राज्यवाद। इसने पूरे महादेश में चुनी हुई सरकारों को गिराना,  तख्तापलट करना एक निरन्तर होने वाली परिघटना थी। मानवाधिकार का हनन करने वाला अमेरिका व्यापार सबंधी सम्मेलन आयोजित हुआ उसमें क्यूबा को शामिल नहीं किया गया ।  तब डियेगो माराडोना ने अन्य लोगों को एकजुट कर उस फ्री ट्रेड करने वालों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन आयोजित किया गया। इस प्रदर्शन के कारण अमेरिका अपने मंसूबे में सफल न ही सका। माराडोना ने जॉर्ज बुश को  ‘ क्रिमिनल ‘ कहा था।

माराडोना अर्जेंटीना के झुग्गी-झोपड़ी इलाके में जन्म हुआ था।” सुनील सिंह ने इंग्लैंड और अर्जेंटीना के बीच के प्रसिद्ध खेल की चर्चा करते हुए कहा ” 1986 के में इंग्लैंड व अर्जेंटीना  के विरुद्ध खेल में 52 वें  और  55 वें मिनट  का गोल विश्व इतिहास में अंकित है। माराडोना के खेल में दिमाग और पैर का जो संतुलन था  वह अद्भुत था। माराडोना सबसे बड़े खिलाड़ी थे। ये भी सही बात की माराडोना को नशे की आदत हो लग गई थी। यूरोपियन देशों में ऐसे बड़े खिलाड़ियों को गलत आदत की ओर ले जाकर बर्बाद भी करता है। नशे की आदत से उसे फिदेल कास्त्रो ने बचाया जिन्हें वे अपना दूसरा  पिता बताया था।

“संस्कृतिकर्मी प्रशांत विप्लवी ने अपने संबोधन में कहा ”  मैन 1986 का विश्व कप रात रात भर जागकर देखा था।जिस गोल को हैंड ऑफ  गॉड जाता है वो दरअसल  माराडोना का जिहाद था।  मैं तो माराडोना ने मात्र 34 गोल किया लेकिन उसने कितने गोल कितने बनाये। ये भी देखना होगा। दाएं हाथ मे चेगेवरा और बाएं पैर में फिदेल कास्त्रो  का टैटू है।  कई लोग पेले से उसकी तुलना करते हैं। लेकिन पेले के समय कई बड़े – बड़े खिलाड़ी थे। मैं तो  माराडोना को पेले से भी बड़ा खिलाड़ी मानता हूं। आप गांव में भी जाकर  जानने की कोशिश करें तो वो माराडोना के बारे में बता देगा। माराडोना खड़ा होकर पक्ष लेने की कोशिश करता है। यही उसे महान बनाता है।” 

प्रशांत विप्लवी ने माराडोना पर लिखी अपनी कविता का पाठ भी किया। फुटबॉल  खिलाड़ी एस. के मजूमदार ने माराडोना के खेल की विशेषता के संबन्ध में बताते हुए कहा ” माराडोना ने 91 दफे अर्जेंटीना की ओर से खेला था। 311 गोल किया था। वर्ल्ड का टॉप लीग माने जाने वाला इटेलियन व स्पेनिश  लीग की ओर से खेला था। ‘नेपोली’ उनका सबसे प्यारा  क्लब था। 1986 का विश्व कप  माराडोना के नाम से ही जाना जाता है।  5 गोल तो उन्होंने खुद किया लेकिन कई गोल उन्होंने बनाये। ये बड़ी बात बात है कि गोल बनाना भी एक बड़ी बात होती है। माराडोना मिडफील्ड अटैकर थे।  फुटबॉल के  माध्यम से हम अपने लड़ने की इच्छा की  पूर्ति करते हैं। 

 डिफेंसर्स,  अटैकर्स के बीच मिडफील्ड के लोग खेलते हैं। वो एक तरह आए रीढ़ की हड्डी हुआ करता है। माराडोना इसी बीच मे खेलने वाले खिलाड़ी थे। माराडोना अटैकिंग मिडफील्डर्स थे।  एक पांच फुट चार इंच का आदमी लेकिन 84 किलो उनका वजन था। वे मोटे न थे बल्कि उनका मसल्स में उनका वजन था। उनका सेंटर ऑफ ग्रैविटी बहुत नीचे था। उससे वो आदमी बहुत स्टेबल हुआ करता है। 153 फ्री किक यानी इतना  फॉल्स  उनके  खिलाफ हुआ करते थे। माराडोना वन मैन टीम था। उनका गेंद ओर नियंत्रण, रनिंग , पैर इतना तेजी से गिरता है। आधुनिक फुटबॉल में हाइट को बहुत तवज्जो दिया जाता था। जैसे जर्मन खिलाड़ी। लेकिन जर्मन खिलाड़ी भी माराडोना को नहीं पकड़ पाते थे।

“एस.के मजूमदार ने  माराडोना के उनके हैंड ऑफ गॉड के संबन्ध में बताया ” दुनिया के टॉप रेफरी के बीच में हैंड ऑफ गॉड किया। और दूसरा गोल  51 मीटर दौड़ कर गोल किया। मात्र 10 से  सेकेंड में 4 खिलाड़ियों को काटकर गोल  कर दिया। इन्हीं वजहों से उसे गोल ऑफ द सेंचुरी माना जाता था। पेले सेंटर फॉरवर्ड के खिलाड़ी थे जबकि माराडोना मिडफील्ड के खिलाड़ी थे। उनपर बहुत लोड था। पेले को गोल बना बनाया मिलता था जबकि माराडोना को गेंद बनाना पड़ता था। एक फुटबॉल के खेल में माराडोना 28 किमी दौड़ा करते थे। विरोधी टीम से   आपको गेंद लेने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है । पासिंग और स्पोर्टिंग ये दोनों काम बहुत महत्वपूर्ण होता है।  अब खेल  तकनीक प्रधान हो गया है।  इस कारण माराडोना का खेल बहुत  चुनौतीपूर्ण हो गया था।

” संस्कृतिकर्मी अनीश अंकुर ने माराडोना के बारे में बताया”  आज फुटबॉल ताकत व क्रूरता का खेल बनता जा रहा जबकि माराडोना के लिए फुटबॉल  कला की तरह था। माराडोना ने खतरा उठाते हुए, व्यावसायिक घाटा की संभावना के बावजूद गलत चीजों का विरोध करना कभी नहीं छोड़ा। माराडोना ने इंटरनेशनल असोसिएशन ऑफ फुटबॉलर्स बनाकर फुटबॉल जी संस्था फीफा के  भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आवाज उठाई। फुटबॉल में इतना पैसा होने के बावजूद उन्होंने सही मूल्यों के पक्ष में खड़ा होने का जोखिम उठाया। फिलीस्तीन के मकसद के प्रति अपनी एकजुटता दिखाई।  जब माराडोना को नशे की लत लगी उस समय  उनके अपने देश अर्जेंटीना   के किसी नर्सिंग होम ने इलाज करने से इनका कर दिया था। तब क्यूबा जैसे समाजवादी मुल्क में उनका इलाज करवाया गया।”स्मृति  सभा की अध्यक्षता करते हुए  अरुण मिश्रा ने कहा ”  जैसे नव उदारवादी दौर में प्रतिरोध लैटिन अमेरिका से शुरू हुआ। सत्तर के दशक से कोलकाता जाना हुआ था। वहां हमने फुटबॉल का जुनून देखा था। उस वक्त लोग ब्राजील के पक्ष में हुआ करते थे।

पश्चिम देशों के ख़िलाफ़ होने कारण हमलोग ब्राजील के पक्ष में  हुआ करते थे। लेकिन बाद में माराडोना के कारण लोग अर्जेंटीना के पक्ष में हो जाते थे।  हमें अचंभा होता था कि कैसे ये बिजली की तरह खेलते थे । अमेरिकी साम्राज्यवाद के खिलाफ FTAA  का सम्मेलन माराडोना के कारण न हो सका। आप अपने देश के बॉलीवुड के लोगों खासकर सदी के महानायक अमिताभ बच्चन को देखिये लेकिन वो अभी कोरोना के काल में पैसा कैसे कमाया जाए इस  संबन्ध में बता रहे थे। माराडोना ने कभी भी ये न सोचा कि राजनीतिक विचार के कारण उनको क्या घाटा उठाना  पड़ेगा। मेस्सी जैसे खिलाड़ी ने कहा कि यदि हम एक लाख साल भी खेलें तो माराडोना की बराबरी नहीं के जा सकती।”स्मृति सभा का संचालन रँगकर्मी जयप्रकाश ने किया। स्मृति सभा में पटना शहर के विभिन्न क्षेत्रों के लोग मौजूद थे। प्रमुख लोगों में थे  चित्रकार राकेश कुमुद,  माकपा जिला सचिव  मनोज चन्द्रवंशी, रंगकर्मी अजय शर्मा, गोपाल शर्मा, गणेश शंकर सिंह, जीतेन्द्र कुमार, मंगल पासवान,   बिट्टू भारद्वाज , गौतम गुलाल, सरोज कुमार राय आदि शामिल थे।