औरंगाबाद(लाइव इंडिया न्यूज 18 ब्यूरो)। बॉलीवुड में संगीत की आत्मा गायब हो चुकी है, अब मुर्दे को अच्छे से सजाया जा रहा है। यहीं संगीत जगत की नंगी सच्चाई है।
विश्व संगीत दिवस पर बुधवार को औरंगाबाद के एक कार्यक्रम में भाग लेने आए बॉलीवुड सिंगर अल्ताफ रजा ने कहा कि पहले संगीत कानो को सुनने के लिए बना करता था। इसलिए वह कर्णप्रिय हुआ करता था। अब संगीत आंखों के लिए बनाया जा रहा है। संगीत कानो से भाव के रूप में हृदय तक पहुंचता है लेकिन आज का संगीत आंखों से दिल तक नही पहुंच पाता। सवाल यह है कि संगीत आंखों से दिल में कैसे उतरेगा जो संभव ही नहीं है। पहले कानो से संगीत को सुनकर दिल में उस संगीत की एक अलग ही तस्वीर उभरती थी। आज आंखों से दिखने वाली संगीत की तस्वीर के अंदर 40 डांसर एक साथ नाच करते दिखते हैं जो दिल में कैसे उतर सकती है।
उन्होंने कहा कि गानो का रीमिक्स आना अच्छा है लेकिन इसमें इसके भाव में परिवर्तन नहीं होना चाहिए इसके भाव में यदि परिवर्तन लाया जाता है तो यह संगीत अपने मूल भाव को खो देता है। उन्हें खुशी है कि उनके गाए हुए गीतों पर भी रिमिक्स बने हैं जो काफी लोकप्रिय हुए हैं।
अल्ताफ रजा ने सोशल मीडिया, ओटीटी प्लेटफार्म की सिने जगत में धमक को नुकसानदेह नहीं बताते हुए कहा कि मैं कोई ज्योतिषि नहीं हूं जो यह भविष्यवाणी कर सकता हूं कि इसका आगे भविष्य क्या होगा लेकिन यह बात तय है कि यह एक नया ट्रेंड है। यहां सब कुछ चलता है और काफी हद तक जायज भी है।
उन्होंने कहा कि परिवर्तन संसार का नियम है और सोशल मीडिया ने प्रिंट से लेकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तक पर अपना प्रभाव जमाया है और और सिने जगत भी इससे अछूता नहीं है। सोशल मीडिया में कमजोर कंटेंट का असर सिनेमा जगत पर भी पड़ा है लेकिन उन्हें पूरी उम्मीद है कि सिनेमा उद्योग का पुराना गौरव एक बार फिर से वापस लौटेगा।
उन्होंने गीतों में फुहड़पन घुसाने के तौर तरीको को खुद अपने ही गीत में जोड़कर और गाकर उदाहरण स्वरूप इस अंदाज में पेश किया। “तुम तो ठहरे परदेशी साथ क्या निभाओगे” “जिस्म है गुलाबो सा कपड़े भी गुलाबी है इन गुलाबी शोलो से कितने दिलो को जलाओगी”। उन्होने अपनी आवारा हवा का झोंका हूं, निकला हूं पल दो पल के लिए, भी गाया।