बिहार की शान: औरंगाबाद का 500 वर्ष पुराना बरगद बना विरासत वृक्ष, क्या है इस प्राचीन वृक्ष का रहस्य, जानिए

पटना : बिहार के औरंगाबाद जिले में एक 500 वर्ष पुराना बरगद का पेड़ खोजा गया है, जिसे बिहार जैव विविधता परिषद ने “विरासत वृक्ष” के रूप में घोषित किया है। यह पेड़ न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का भी प्रतीक है। यह बरगद वृक्ष, जो लगभग एक बीघे में फैला हुआ है, अपनी विशालता और प्राचीनता के कारण पूर्वी भारत के सबसे पुराने वृक्षों में से एक माना जा रहा है। इस लेख में हम इस वृक्ष के महत्व, विशेषताओं और संरक्षण के प्रयासों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

500 वर्ष पुराना बरगद

500 वर्ष पुराना बरगद: एक जीवंत इतिहास

औरंगाबाद जिले के मदनपुर प्रखंड के सुदूरवर्ती इलाके में स्थित यह बरगद वृक्ष पांच शताब्दियों से अधिक समय से मौन साक्षी बना हुआ है। इसकी शाखाओं से निकली करीब 50 जड़ों ने इसे एक विशाल छतरीनुमा आकार दिया है, जो इसे देखने वालों के लिए आश्चर्यजनक बनाता है। इस वृक्ष की आयु का निर्धारण डेंड्रोक्रोनोलॉजी जैसी आधुनिक तकनीकों और स्थानीय समुदायों की मौखिक परंपराओं के आधार पर किया गया है।

यह बरगद वृक्ष न केवल पर्यावरणीय संतुलन में योगदान देता है, बल्कि स्थानीय समुदायों के लिए धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी रखता है। हिंदू धर्म में बरगद के पेड़ को पवित्र माना जाता है, और यह वट-सावित्री व्रत जैसे अवसरों पर पूजा का केंद्र होता है, जहां सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सौभाग्य की कामना करती हैं।

विरासत वृक्ष की घोषणा

बिहार जैव विविधता परिषद ने पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के सहयोग से राज्य भर में 1500 वृक्षों की जांच के बाद 32 वृक्षों को “विरासत वृक्ष” के रूप में चयनित किया। इनमें औरंगाबाद का यह 500 वर्ष पुराना बरगद वृक्ष सबसे प्राचीन है। अन्य 27 वृक्ष 100 वर्ष से अधिक आयु के हैं, जबकि शेष चार वृक्षों की आयु 70 से 90 वर्ष के बीच है। इस चयन में वृक्षों की आयु, आकार, और सांस्कृतिक महत्व को पैमाना बनाया गया।

वृक्ष की विशेषताएं

  • आयु: 500 वर्ष (अनुमानित)।
  • स्थान: औरंगाबाद जिला, मदनपुर प्रखंड, सार्वजनिक स्थल पर।
  • आकार: लगभग एक बीघा क्षेत्र में फैला हुआ, जिसमें मुख्य तने के साथ 50 से अधिक सहायक जड़ें हैं।
  • प्रजाति: बरगद (Ficus benghalensis), जिसे स्थानीय रूप से “वट वृक्ष” के नाम से जाना जाता है।
  • महत्व: पर्यावरणीय संतुलन, जैव विविधता संरक्षण, और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक।

पर्यावरणीय और सांस्कृतिक महत्व

  1. पर्यावरणीय योगदान: यह बरगद वृक्ष कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषण और ऑक्सीजन उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसकी विशाल छाया पक्षियों और अन्य जीवों के लिए आवास प्रदान करती है, जिससे जैव विविधता को बढ़ावा मिलता है।
  2. सांस्कृतिक महत्व: बरगद का पेड़ भारतीय संस्कृति में अमरता और स्थायित्व का प्रतीक माना जाता है। यह वृक्ष स्थानीय समुदायों के लिए पूजा स्थल के रूप में भी कार्य करता है।
  3. ऐतिहासिक गवाह: पांच शताब्दियों तक खड़ा यह वृक्ष ऐतिहासिक और सामाजिक परिवर्तनों का साक्षी रहा है, जो इसे एक जीवंत इतिहास बनाता है।

संरक्षण के प्रयास

बिहार जैव विविधता परिषद ने इस वृक्ष के संरक्षण के लिए कई कदम उठाए हैं:

  • निगरानी: विशेषज्ञों की एक टीम नियमित रूप से इस वृक्ष की सेहत की जांच करेगी।
  • सुरक्षा: अवैध कटाई और नुकसान से बचाने के लिए कानूनी उपाय किए जाएंगे।
  • जागरूकता: स्थानीय समुदायों को इस वृक्ष के महत्व के बारे में शिक्षित करने के लिए अभियान चलाए जाएंगे।
  • पर्यटन संवर्धन: इस वृक्ष को पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनाने की योजना है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।

स्थानीय समुदाय की प्रतिक्रिया

स्थानीय लोगों ने इस घोषणा का स्वागत किया है। कई ग्रामीणों का कहना है कि यह वृक्ष उनके लिए गर्व का विषय है और वे इसके संरक्षण में सक्रिय रूप से भाग लेंगे। कुछ बुजुर्गों ने बताया कि यह पेड़ पीढ़ियों से उनकी कहानियों और परंपराओं का हिस्सा रहा है।

भविष्य की योजनाएं

बिहार सरकार और जैव विविधता परिषद ने भविष्य में और अधिक प्राचीन वृक्षों को चिह्नित करने और उन्हें विरासत वृक्ष के रूप में घोषित करने की योजना बनाई है। इसके अलावा, पर्यावरण जागरूकता बढ़ाने के लिए स्कूलों और कॉलेजों में कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।

औरंगाबाद का 500 वर्ष पुराना बरगद वृक्ष बिहार की प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहर का एक अनमोल हिस्सा है। इसकी खोज और विरासत वृक्ष के रूप में घोषणा पर्यावरण संरक्षण और सांस्कृतिक जागरूकता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह वृक्ष न केवल प्रकृति का उपहार है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी है।

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