औरंगाबाद(लाइव इंडिया न्यूज 18 ब्यूरो)। चौकिएं नही! औरंगाबाद सदर प्रखंड में बरडीह कला पंचायत के पिठनुआं गांव में दो कमरों के भवन में तीन सरकारी विद्यालय संचालित हो रहे है।
यह हाल तब है जब सरकारी स्कूलों की व्यवस्था में सुधार के लिए केंद्र के सहयोग से समग्र शिक्षा अभियान जैसी महत्वाकांक्षी योजना चलाई जा रही है। इतना ही नही नीति आयोग के आकांक्षावान जिलों की सूची में शामिल रहने के लिए औरंगाबाद जिले में सरकारी स्कूलों के उन्नयन के लिए अलग से भी योजना चलाई जा रही है। इसके बावजूद दो कमरों के भवन में एक नही, दो नही बल्कि पूरे तीन सरकारी स्कूलों का संचालन आश्चर्यजनक लगता है बल्कि यह शिक्षा विभाग की कार्यशैली पर भी सवालियां निशान लगा रहा है।
गौरतलब है कि राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय, पिठनुआ के दो कमरों के भवन में अपग्रेडेड उच्च विद्यालय, मध्य विद्यालय और नवसृजित प्राथमिक विद्यालय, रामपुर का संचालन हो रहा है। एक ही भवन में तीन सरकारी स्कूल के संचालन से जगह के अभाव में बच्चें पेड़ के छांव तले पढ़ने को मजबूर है। तीनों विद्यालयों में मिलाकर यहां कुल 424 छात्र नामांकित है। यह भी बात दीगर है कि सरकार ने प्रति 30 छात्र पर एक शिक्षक का नियम बना रखा है। इस लिहाज से इन तीनों विद्यालयों में पढ़ाने के लिए कम से कम 14 शिक्षक होने चाहिए लेकिन तीनों विद्यालयों का संचालन छात्र-शिक्षक अनुपात से तीन कम यानी 11 शिक्षकों के माध्यम से हो रहा है। यहां प्राथमिक से मध्य विद्यालय तक में 10 शिक्षक है जबकि उच्च विद्यालय में मात्र एक शिक्षक ही अकेले नवम एवं दशम वर्ग के छात्रों को पढ़ा रहे है।
इस विद्यालय में चार गांवों-पिठनुआ, बरडीह कला, रामपुर और बांका बिगहा के बच्चें पढ़ने आते है। तीन विद्यालयों के लिए दो कमरें का मात्र एक भवन होने के कारण जगह के अभाव में यहां के बच्चों को शिक्षक बरगद, पीपल और पाकड़ के पेड़ के छाव तले बैठाकर पढ़ाने को मजबूर है। यहां पेड़ों की छांव तले बच्चों को पढ़ते देख कर गुरुकुल के जमाने की यादें ताजा हो जाती है। जब बच्चों को पढ़ाने वाले गुरूजी कुटियां में रहते थे और गुरूजी कुटियां के पास ही पेड़ के छांव तले बच्चों को पढ़ाया करते थे। हालांकि अब गुरुकुल का प्राचीन दौर कबका खत्म हो चुका है और शिक्षा अपने नवीन दौर में है लेकिन नवीन दौर में भी बच्चों को पेड़ तले शिक्षा दिया जाना सिस्टम को कठघरे में खड़ा कर रहा है।
इस विद्यालय के पास कुल छह डिसमिल जमीन है। जबकि नवसृजित प्राथमिक विद्यालय के पास अपना भवन नही है। इस स्थिति में इस विद्यालय के भी सभी बच्चे इसी विद्यालय में पढ़ते है। यहां की व्यवस्थाओं पर नजर दौड़ाएं तो यहां बच्चों के खड़े होने के लिए भी ठीक से जगह नहीं है। ऐसे में सवाल यह है कि इतने सारे बच्चें बैठकर आखिर पढ़ेंगे कैसे?जबकि शिक्षकों के बैठने के लिए भी जगह नही है और उनकी परेशानियां अलग ही है। दो कमरों के भवन वाले इस विद्यालय में शौचालय तो है लेकिन पूरी तरह से खराब है जिससे बच्चों समेत शिक्षकों को भी काफी ज्यादा परेशानी झेलनी पड़ती है। इस स्थिति में बच्चे गांव के अगल-बगल ही मूत्र त्याग या शौच करने जाते हैं। दो कमरों के भवन में चल रहे तीन स्कूलों में प्राइमरी एवं मिडिल स्कूल में मिड डे मिल तो चलता है लेकिन यहां मध्याह्न भोजन बनाने के लिए किचेन भी नही है। इस स्थिति में छात्रों को खाने के लिए भोजन गांव के ही एक निजी मकान में बनता है, जहां रसोईयां खाना पकाती है और बच्चे थाली में खाना लेकर इधर-उधर खुले में खाते हैं। इसी कैम्पस के हाई स्कूल में 10वीं की स्मृति कुमारी ने बताया कि यहां छात्र-छात्राओं को पढ़ने में सबसे ज्यादा परेशानी होती है। हम लोगों को बोर्ड की परीक्षा देनी है और हमारी तैयारी कराने के लिए स्कूल में मात्र एक ही शिक्षक है। हम लोग पढ़ाई कैसे कर पाएंगे। वहीं वर्ग सात के गुड्डू कुमार और सूरज कुमार ने बताया कि बारिश के मौसम में सभी बच्चे एक जगह स्कूल में आकर खड़े हो जाते हैं फिर भी सभी बच्चें इस दो कमरे में समा नहीं पाते। वही नवसृजित प्राथमिक विद्यालय के बच्चे बारिश होने पर घर चले जाते हैं। घंटे-दो घंटे बाद बारिश खुल भी जाती है तब भी विद्यालय के खुले रहने के बावजूद बच्चे फिर से घर से स्कूल नहीं आ पाते। उल्लेखनीय है कि हाई स्कूल के लिए पास में ही एक भवन भी बनाया गया है लेकिन उसे संचालित नहीं किया गया है जबकि यह भवन लगभग 2 एकड़ में फैला है। वही एक विद्यालय के प्रधानाध्यापक प्रदीप कुमार ने बताया कि एक ही स्कूल भवन में तीन विद्यालयों के संचालन की समस्या से निजात दिलाने के लिए शिक्षा विभाग के वरीय अधिकारियों से पत्राचार कर चुके है लेकिन विभाग के स्तर से इस ओर अभी तक पहल नहीं हुई है।