आशा कार्यकर्ताओं ने कुटुम्बा बीसीएम पर लगाया पैसा मांगने का आरोप, कुटुंबा अस्पताल में व्याप्त भ्रष्टाचार की खुली पोल

अंबा औरंगाबाद। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र कुटुंबा के बीसीएम चंचल कुमार द्वारा पैसा उगाही का दबाव बनाने के विरोध में आशा कार्यकर्ताओं ने मंगलवार को रेफरल अस्पताल कुटुंबा के परिसर में धरना प्रदर्शन किया। इस दौरान आशा कार्यकर्ताओं ने बीसीएम एवं हॉस्पिटल प्रबंधन के विरुद्ध जमकर नारेबाजी की। वहीं अस्पताल में व्याप्त भ्रष्टाचार की पोल खोलकर रख दी। प्रदर्शन की अगुवाई कर रही बिहार राज्य आशा एवं आशा फैसिलिटेटर संघ की महामंत्री सुधा सुमन ने बताया कि कुछ दिन पहले ही बीसीएम चंचल कुमार का प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नवीनगर से कुटुंबा में स्थानांतरण हुआ है। योगदान देने के बाद से ही बीसीएम द्वारा आशा कार्यकर्ताओं से दो सौ रुपयों की मांग की जा रही है। बीसीएम द्वारा बार-बार धमकी दिया जा रहा है कि जो आशा पैसा नहीं देगी उसके कार्य को अस्वीकृत कर दिया जाएगा। सुधा सुमन ने बताया कि पैसा उगाही का विरोध करने पर बीसीएम ने उन्हें फोन पर अपशब्द कहा और चयन मुक्त करने की धमकी देते हुए 17 सितंबर को रजिस्टर लेकर अस्पताल बुलाया। जब सभी आशा 17 सितंबर को बीसीएम के मांग के अनुरूप दो सौ रुपये और रजिस्टर लेकर अस्पताल पहुंची तो अस्पताल के प्रभारी, प्रबंधक और बीसीएम अनुपस्थित पाए गए। बीसीएम के धौंस से क्षुब्ध आशा कार्यकर्ताओं ने बैठक में निर्णय लिया कि आंदोलन कर भ्रष्टाचारी बीसीएम को चयन मुक्त कराने की मांग की जाएगी। इसके लिए प्रखंड से लेकर जिला तक आंदोलन किया जाएगा।

अस्पताल में व्याप्त भ्रष्टाचार की खोली पोल

प्रदर्शन के दौरान आशा कार्यकर्ताओं ने अस्पताल के हर काउंटर पर व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर किया। महामंत्री सुधा सुमन ने बताया कि प्रभारी आकांक्षा सिंह सप्ताह में तीन दिन अस्पताल आती है। वह पूरे महीने में 12 दिन अस्पताल आती है और पूरे महीने की सैलरी लेती है। उनसे इस विषय पर पूछने वाला कोई नहीं है। परंतु मेहनतकश आशा कार्यकर्ताओं का टारगेट पूरा नहीं होने पर उन्हें चयन मुक्त करने की धमकी दी जाती है। जबकि टारगेट पूरा न होने के लिए अस्पताल प्रबंधन पूरी तरह जिम्मेवार है। गर्भवती महिलाओं के जांच के लिए प्रतिमाह नौ एवं इक्कीस तारीख को लगने वाले कैंप में कोई सुविधा नहीं दी जाती है। दूर दराज गांव से आने वाली गर्भवती महिलाओं के लिए ना तो बैठने की व्यवस्था होती है और न ही पीने के पानी की। गर्भवती महिलाएं इधर-उधर भटकती रहती हैं। उन्होंने अस्पताल प्रबंधक पर आरोप लगाया है कि जब से प्रबंधक यहां पर आए हैं तब से एक – दो बार ही गर्भवती महिलाओं के बीच फल का वितरण किया गया है। अस्पताल प्रबंधक कैंप के लिए सरकार द्वारा दिए गए पैसों को डकार जा रहे हैं।

डिलीवरी के बाद लिए जाते हैं हजारों रुपए
आशा कार्यकर्ताओं ने बताया कि प्रसव के उपरांत रोस्टर में तैनात स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा 3000 से 3500 रूपयों की मांग की जाती है। जिसे एएनएम, जीएनएम, गार्ड, स्वीपर सभी के बीच बांटा जाता है। पैसे नहीं देने पर परिजनों के साथ अभद्र व्यवहार किया जाता है। वहीं रजिस्टर में आशा कार्यकर्ताओं का नाम भी नहीं चढ़ाया जाता है। स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा मरीजों का इतना दोहन किया जाता है कि वे अस्पताल नहीं आना चाहती है।

कमीशन के चक्कर में जबरन कराया जाता है अल्ट्रासाउंड

आशा कार्यकर्ताओं ने बताया कि डॉक्टर कमीशन के चक्कर में जांच कराने पहुंची महिलाओं का जबरन अल्ट्रासाउंड कराते है। वह दो माह की गर्भवती हो या चार – छह की। आशा कार्यकर्ता बताती है कि हर अल्ट्रासाउंड पर डॉक्टर का 50% कमीशन बंधा हुआ है। गर्भवती महिलाएं अब सरकारी अस्पताल नहीं आना चाहती। वे कहती है कि सरकारी अस्पताल में प्राइवेट हॉस्पिटल से भी ज्यादा खर्च होता है।

पैसों के सामने नहीं है जान का मोल
धेउरा पंचायत की आशा कार्यकर्ता पुष्पा कुमारी बताती है कि उन्होंने अपने गोतनी का प्रसव कुटुंबा रेफरल अस्पताल में कराया था। डिलीवरी के बाद प्रसूता को ब्लीडिंग हो रही थी लेकिन रोस्टर में तैनात स्वास्थ्य कर्मी पैसे के लिए मोलभाव करते रह गए और उन्होंने मरीज पर ध्यान नहीं दिया। जब प्रसूता की स्थिति बिगड़ने लगी तब परिजनों द्वारा दबाव बनाने के बावजूद भी मरीज को रेफर नहीं किया गया। नोक – झोक में काफी समय बीत जाने के बाद मरीज को रेफर किया गया परंतु औरंगाबाद जाने के दौरान बीच रास्ते में ही प्रसूता ने दम तोड़ दिया। आशा कार्यकर्ता पुष्पा कुमारी ने इस घटना के लिए एएनएम मुन्नी को जिम्मेदार ठहराया है।

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