अपने खिलाफ पोस्टरबाजी के बाद पूर्व विधायक ने दी नक्सलियों को चुनौती, कहा-कर ले आकर दो दो हाथ, रणविजय सिंह का माओवादियों से लोहा लेने का है लंबा इतिहास

गोह(औरंगाबाद)(लाइव इंडिया न्यूज 18 ब्यूरो)। गोह के पूर्व विधायक डॉ. रणविजय कुमार ने पोस्टरबाजी से खुद को मिली जान मारने की धमकी के बाद नक्सलियों को दो-दो हाथ करने की चुनौती दी है। उन्होंने कहा कि नक्सली मुख्यधारा से भटके हुए लोग हैं। ये सिर्फ पर्चा साटकर धमकी देते हैं।

कहा कि अभी नक्सलियों की ताकत इतनी नही बढ़ नहीं गई है कि वे सांसद और विधायक को जान से मार दें। बस पर्चा साटकर ये लोगों के बीच भय पैदा करते हैं और अपनी दुकान चलाते है कहा कि वे अभी भी नक्सलियों से दो-दो हाथ करने को तैयार हैं। अभी न तो नक्सलियों का बल इतना बढ़ गया है और न ही सरकार इतनी कमजोर पड़ी है कि वें ऐसी धमकियों से डरेंगे।

आखिर क्यों नक्सलियों के निशाने पर गोह के पूर्व विधायक

पूर्व विधायक पहले भी नक्सलियों के बंसूबे को  ध्वस्त कर चुके है। 1981 में 29 जुलाई को दिन में 3 बजे नक्सलियों ने जमीन को कब्जा करने को लेकर दर्जनों हथियारबंद दस्तो ने आक्रमण किया था, जिसका जबाब पूर्व विधायक ने दृढ़ता से दिया था। इसके बाद नक्सलियो ने 1984 मे डिहरी गांव में लगाए गए उनके फसल पर प्रतिबंध लगाया था। प्रतिबंध के बाद पूर्व विधायक के पिता व गांव के रामदास सिंह एवं गांव के कमेश्वर सिंह फसल को कटवा कर जब अपने घर लौट रहे थे, तो उस समय नक्सलियों ने हत्या करने के लिए बम फेका था। बम के विस्फोट से रामदास सिंह(अब स्वर्गीय) के हाथ की बंदूक टूट गई थी और वें गंभीर रूप से जख्मी हो गए थे। उस समय गोह थाना में पूर्व विधायक के बयान पर कांड संख्या 24/84 दर्ज किया गया था। 1990 में गांव में ही घात लगाए नक्सलियों ने  पूर्व विधायक पर पीछे से गोली चलाई थी जो उनके कमर मे लगी। इस मामले में गोह थाना में प्राथमिकी संख्या 105/ 90 दर्ज हुआ था। 1992 में डाकिया के पद पर कार्यरत उनके सहयोगी अनिरुद्ध सिंह जब कोच थाना क्षेत्र के पांडेयखाप गांव से चिट्ठी बांटकर लौट रहे थे तो नक्सलियो ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।इसकी प्राथमिकी कोच थाना में कांड संख्या 121/92 के रूप में दर्ज हुई थी। 1992 में नक्सलियो ने उनकी फसल भी लूटी थी। उस समय भी गोलीबारी हुई थी, जिसमे पूर्व विधायक बच गये थे। इस मामले में गोह थाना में कांड संख्या 104/92 दर्ज हैं जो न्यायालय में लंबित है। 1993 में पूर्व विधायक के सहयोगी बालचन्द यादव की हत्या पंचायन बिगहा गांव के पास नक्सलियों ने गर्दन काटकर कर दी थी। 1993 में 29 नवम्बर की रात्रि फसल बर्बाद करने के मामले में 2 घंटे गोली बारी हुई थी। 1994 में पूर्व विधायक के घर पर नक्सलियों ने  आक्रमण किया था। उस वक्त 2 घंटे तक गोलीबारी हुई थी। इसकी प्राथमिकी गोह थाना में कांड संख्या 78/94 दर्ज है। 1994 में ही डिहुरी में खलिहान लूटने में केस दर्ज हुआ था। इसकी प्राथमिकी का कांड संख्या 86/94 दर्ज है। 1998 में  पूर्व विधायक दशहरा में दधपी  मेला देखकर लौट रहे थे। उसी समय दधपी में ही नक्सलियो ने उनपर गोलीबारी किया था। 4 घंटे की गोलीबारी के दौरान उनके सहयोगी दादर गांव निवासी ललन सिंह को गोली लगी थी, जो इलाज के बाद ठीक हो गए थे। मामले में कांड संख्या 84/98 दर्ज किया गया था। इसके बाद 2005 के 3 फरवरी को विधानसभा चुनाव शांति पूर्ण सम्पन्न होने के बाद उनके गांव में स्थापित पुलिस पिकेट हटाया गया तो 12 फरवरी को घर पर नक्सलियो ने आक्रमण किया था, जिसमें लैंड माइंस भी ब्लास्ट किया गया लेकिन नक्सली विधायक को उड़ाने में सफल नही हुए। उस समय 10 बजे रात से 3 बजे अहले सुबह तक 5 घंटा गोलीबारी हुई थी और नक्सलियो को भी गोली लगी थी। मौके पर खून का धब्बा मिला था लेकिन किसी का शव नही मिला था। उसके बाद से इलाके में शांति का माहौल है। इस बीच 2013-14 में भी जमीन कब्जा को लेकर पोस्टरबाजी हुई थी।बंदेया में थाना स्थापित करने को लेकर 1998-99 में ही औरंगाबाद के तत्कालीन एसपी आरके मिश्रा ने प्रस्ताव किया था। इसी के आलोक में 2013 में बंदेया थाना स्थापित हुआ। इसके बाद से शांति माहौल कायम है लेकिन पोस्टरबाजी कर नक्सलियों ने शांति में फिर से खलल डाला है।