औरंगाबाद(लाइव इंडिया न्यूज 18 ब्यूरो)। बिहार विधानसभा चुनाव-2020 के प्रथम चरण में औरंगाबाद जिले की 6 सीटों पर 28 अक्टूबर को मतदान संपन्न हो गया है। मतदाता अपने मतों को इवीएम के हवाले कर चुके है। वोटरों द्वारा इवीएम में डाले गए मतों का हिसाब 10 नवंबर को होगा। प्रत्याशियों द्वारा लगातार मैराथन बैठकों में गुणा-गणित कर अपने पक्ष में मिले मतों का आकलन किया जा रहा हैं। प्रत्याशी अपनी जीत का हिसाब लगाने में व्यस्त हैं। सभी प्रमुख प्रत्याशी अपने-अपने क्षेत्र के सभी पंचायतों के सभी बूथों की जानकारी ले रहे हैं। उनकी इस बात पर सबसे अधिक नजर है कि उनके प्रतिद्वंदी को किस बूथ पर कितने और उनकी झोली में कितने मत मिले हैं। वह अपनी और अपने समर्थकों व कार्यकर्ताओं की चूक के बारे में भी पता कर रहे हैं। किस बूथ पर वह कमजोर रहे और इसका कारण क्या रहा, के बारे में भी फोन से जानकारी ले रहे हैं। कुछ लोग नोटा वोट तो कुछ प्रतिद्वंदी को मिले संभावित मत के बारे में भी पता कर रहे हैं। मतदाताओं ने उन्हें कितना वोट दिया है, इसका पता तो 10 नवंबर को चल ही जाएगा। बावजूद अपनी संतुष्टि के लिए वह पूर्वानुमान करने में जुटे हैं। पार्टियां पोलिंग एजेंट से लेकर बूथ व पंचायत अध्यक्ष और चुनाव प्रभारी तक से उम्मीदवार के पक्ष में मतदान की स्थिति व पक्ष में मिले वोट के बारे में जानकारी ले रही हैं। वही सूत्रों पर भरोसा करें तो उम्मीदवारों के अधिकांश समर्थक अपने प्रत्याशी को खुश करने के लिए ज्यादा मत मिले हैं, के बारे में जानकारी दे रहे हैं। इस हिसाब से प्रत्याशी भी अपनी जीत के प्रति आश्वस्त हो जा रहे हैं। गौरतलब है कि औरंगाबाद जिले में छः विधानसभा क्षेत्र हैं। इनमें नबीनगर, ओबरा, गोह़, रफीगंज, औरंगाबाद एवं कुटुम्बा(सुरक्षित) सीट शामिल हैं। हालांकि मतदाताओं से मिले वोट का आकलन करने में भाजपा, राजद, जदयू, लोजपा, रालोसपा, बसपा व खास निर्दलीय प्रत्याशी कुछ ज्यादा ही व्यस्त हैं। ऐसे सभी प्रत्याशी अपनी बिरादरी, पार्टी से प्रभावित जाति, पार्टी व गठबंधन के कार्यकर्ता व समर्थक के वोटरों के आधार पर अपनी-जीत-हार का आकलन कर रहे हैं। बहरहाल, अब मतदाताओं के वोट इवीएम में हैं और वह 10 नवंबर को खुलेगी। इसके बाद ही उनके भाग्य का फैसला हो सकेगा। हालांकि इस समीक्षा के दौरान चुनाव अभियान में होने वाली कमियों को भी वह ढूंढ रहे हैं। किसी दल के कार्यकर्ता संसाधन तो कोई मैनेजमेंट में कमी होने की बात कह रहे हैं। उन्हे इस बात का भी मलाल है कि अगर चुनाव के दौरान यह कमी नहीं रही होती तो हमलोग काफी अच्छे अंतर से जीत सकते थे।