पटना(विश्वजीत)। देश व राज्य के स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल बयां करता यह प्रथमिक स्वास्थ्य केंद्र। जो साफ बता रहा है कि स्वास्थ्य व्यवस्था का स्वास्थ्य बहुत ही गंभीर है जिसे गंभीर इलाज की जरूरत है।
यह अस्पताल राजधानी से दूर किसी जिले के दूर- दराज के गांव की नहीं है बल्कि राजधानी में स्थित एशिया के सबसे बड़ी कॉलोनी कहे जाने वाली कंकड़बाग की है। ऐसे अस्पतालों में आने से ही कई सवाल उठते हैं और कई सवालों के जवाब भी मिलते हैं। जैसे राजधानी के सबसे महत्वपूर्ण इलाकों में से एक के अस्पताल का ऐसा हाल है तो राजधानी से दूर के अस्पतालों का क्या हाल होगा? जवाब मिलता है कि कोरोना ने इतना प्रलय क्यों मचाया। साथ ही निजी अस्पताल सब्जी मंडी के दुकानों जैसे कैसे खुले हुए हैं और उनकी उतनी चमक- धमक क्यों है?
और ताज्जुब की बात है कि बाबा आदम के जमाने की बनी इस राजकीय स्वास्थ्य केंद्र, जिसकी छत रोज गिर रही है वहां एक नहीं बल्कि दो स्वास्थ्य केंद्र है। (1- राजकीय स्वास्थ्य केंद्र, दूसरा शहरी प्रथमिक स्वास्थ्य केंद्र) यहां न पीने की पानी की व्यवस्था है न शौचालय का। एक- दो डाॅक्टर के प्रतिस्थापना की जानकारी मिली पर उपलब्धता के समय को नहीं जान सका। कई स्टाफ हैं लेकिन सभी आंशिक भत्ते वाले ठेके के। जिनका भी वेतन पिछले चार महीनों से नहीं मिला है।
महिला एएनएम व स्टाफ भी कई हैं, जरा सोचें जब उनसे सच में आठ से छः घंटे भी काम लेना हो तो वे शहर के बीच बिना शौचालय वाले केन्द्र में कैसे काम कर सकेंगी? कितना अमानवीय व महिला विरोधी है स्थिति और यह केवल यहां का हाल नहीं है, लगभग जगह यही हाल है। ऐसे में ऐसे अस्पताल व ऐसी स्वास्थ्य व्यवस्था लोगों का इलाज क्या करेगी और महामारी का मुकाबला समझा जा सकता है।
(लेखक- विश्वजीत कुमार, सामाजिक कार्यकर्ता व भाकपा के राज्य कार्यकारिणी के सदस्य हैं।)