नई दिल्ली (विद्या भूषण शर्मा)। दिल्ली हाईकोर्ट ने नाबालिग सौतेली बेटी से बलात्कार कर उसे गर्भवती करने वाले पिता को निचली अदालत द्वारा सुनाई गई 20 साल की सजा को बरकरार रखा है। न्यायमूति विभू बाखरू ने कहा कि नाबालिग लड़की जिस व्यक्ति के संरक्षण में थी उसी ने उसके साथ दुष्कर्म कर उसका बचपन छीन लिया। इसके साथ ही न्यायमूति ने दोषी सौतेले पिता की निचली अदालत द्वारा 2 अगस्त 2016 को सुनाई गई सजा के खिलाफ दाखिल अपील को नामंजूर कर दिया और इससे उसे निरस्त कर दिया।
हाईकोर्ट ने कहा कि फारेंसिक रिपोर्ट में इस संदेह को सिरे से खारिज कर दिया गया कि पीडि़ता के गर्भ में पल रहा बच्चा सौतेले पिता का नहीं किसी और का है। डीएनए रिपोर्ट ने साबित कर दिया है कि बच्ची अपने सौतेले पिता की बुरी नीयत की शिकार बनी। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि निचली अदालत ने बाल यौन शोषण (रोकथाम) अधिनियम की धारा ६ के तहत दोषी को उचित सजा सुनाई है। इसीलिए इस सजा को बरकरार रखा जा रहा है। मालूम हो कि २ अगस्त 2016 को निचली अदालत ने सौतेले पिता को दोषी करार दिया था। जबकि ९ अगस्त २०१६ को अदालत ने इस दोषी को २० साल की जेल की सजा सुनाई थी। उसपर 20 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया गया था।
हाईकोर्ट ने अपील पर सुनवाई के दौरान पाया कि दोषी पीडि़ता की पिटाई करता था और फिर उससे बलात्कार करता था। हाईकोर्ट ने दोषी अपराध को बेहद क्रूर माना। हाईकोर्ट ने कहा है कि इस अपराधी को जितनी अधिकतम सजा दी जानी चाहिए‚ उसे उतनी नहीं मिली है। इस सजा को कम करने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता। ऐसे अपराधी को तो अधिक से अधिकतम सजा मिलनी चाहिए। इस मामले में प्राथमिकी शाहबाद डेयरी थाने में ७ अगस्त २०१४ को दर्ज की गई थी। १३ वर्षीय बच्ची ने सौतेले पिता पर कई बार बलात्कार करने व धमकी देने का आरोप लगाया था। डॉक्टरी जांच में बच्ची गर्भवती पाई गई थी।