औरंगाबाद(लाइव इंडिया न्यूज 18 ब्यूरो)। चाणक्य परिषद के तत्वावधान में शुक्रवार को शहर के आइएमए हाॅल में गीता जयंती सह महामना मदनमोहन मालवीय की 159वीं एवं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की 96वीं जयंती समारोहपूर्वक मनाई गई। समारोह का उद्घाटन परिषद के मुख्य संरक्षक भैरवनाथ पाठक, मुख्य मार्गदर्शक प्रो. चन्द्रशेखर पाण्डेय, डॉ. रामाशीष सिंह, डॉ. सुरेंद्र प्रसाद मिश्रा, अध्यक्ष रामानुज पांडेय, वरीय अधिवक्ता रसिक बिहारी सिंह, पत्रकार प्रेमेंद्र मिश्रा, शिवनारायण सिंह, कार्यकारी अध्यक्ष अश्विनी तिवारी, अनिल सिंह, महामंत्री संजीव द्विवेदी, शम्भू मिश्रा, मनोज पांडेय एवं यशवंत पांडेय ने संयुक्त रूप से महामना तथा वाजपेई के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित और माल्यार्पण कर किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता परिषद के अध्यक्ष ने की जबकि संचालन अश्विनी तिवारी ने किया। कार्यक्रम में कोरोना काल में देश के विभिन्न प्रांतों से अपने घर लौट रहे भूखे-प्यासे बीमार राहगीरों को भोजन, पानी, दूध, दवाई, वाहन आदि की लगातार महीनों तक सुविधा उपलब्ध कराने वाले संस्थाओं को सम्मानित किया गया जिसमें रोटरी के शारंगधर सिंह, विहिप के रणजीत सिंह, औरंगाबाद सेवा समिति के रामविकास सिंह, सरस्वती सुशोभित समिति के नवीन सिंहा, भारतीय जीवन बीमा निगम अभिकर्ता संघ के अध्यक्ष मनोज सिंह, समाजसेवी अनिल सिंह, एवं इनके सहयोगियों को कोरोना योद्धा सम्मान पत्र प्रदान किया। संस्था की ओर से उन्हे सम्मान पत्र, अंग वस्त्र एवं गीता की प्रति प्रदान की गई। साथ ही डॉ सुरेंद्र मिश्रा एवं प्रेमेंद्र मिश्रा को उनकी साहित्यिक उपलब्धियों के लिए भी सम्मानित किया गया। साथ ही पैक्स अध्यक्ष मनीष पाण्डेय, अधिवक्ता पुण्य प्रकाश, इंजीनियर बीके पाठक, विभांशु मिश्र रोशन, विनय पाठक, जितेंद्र पाठक, यशवंत पांडेय, शिवनारायण सिंह एवं प्रभात बांधुल्या को विशिष्ट कार्यो के लिए सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम में वक्ताओं ने कहा कि संस्था हर वर्ष महामना मदनमोहन मालवीय एवं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की जयंती मनाती आ रही है। इस वर्ष यह अद्भुत संयोग बना कि दोनो महापुरुषों की जयंती गीता जयंती के दिन है। इस नाते संस्था दोनो महापुरुषों की जयंती के साथ गीता जयंती भी मना रही है। वक्ताओं ने कहा कि भारत ज्ञान एवं अध्यात्म की धरती है और जब तक भारत की आध्यात्मिक शक्ति सुरक्षित है, भारत सुरक्षित है। महामना मालवीय जी एवं अटल जी का जीवन एवं विचार सदियों तक भारतवर्ष को प्रेरित करता रहेगा। ये अभावों में पलकर भी वैभवशाली भारत के लिए न सिर्फ जिए बल्कि भारत निरंतर बढ़ता रहे, इसके लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिए। जिलाध्यक्ष रामानुज पांडेय ने कहा कि औरंगाबादवासियों ने सेवा परमो धर्म को चरितार्थ किया है। कोरोना काल मे हजारों जरूरतमंदों को मदद पहुंचा कर जिले को गौरवान्वित किया है। गीता का संदेश हमे जीवन के समस्त झांझावतों से विजयी होने मार्ग प्रशस्त करता है। धर्म क्षेत्र एवं कर्म क्षेत्र में हमारा क्या कर्तव्य हो, इसका संदेश हमे गीता से मिलता है। अर्जुन को मार्गदर्शन देने के लिए तब श्रीकृष्ण थे आज हमारे पास उनका संदेश श्रीमद्भागवद्गीता है जिसे हर घर में पढ़ा जाना चाहिए। कहा कि हिंदू धर्म ही एक ऐसा धर्म हैं जिसमे किसी ग्रन्थ की जयंती मनाई जाती है। इसका उद्देश्य मनुष्य में गीता के महत्व को जगाए रखना है। भगवत गीता का हिंदू समाज में सबसे उपर स्थान माना जाता हैं। इसे सबसे पवित्र ग्रन्थ माना जाता हैं। भगवत गीता स्वयं श्री कृष्ण ने अर्जुन को सुनाई थी। कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन अपने सगे को दुश्मन के रूप में सामने देख, विचलित हो जाते हैं और उसने शस्त्र उठाने से इंकार कर देता हैं। तब स्वयं भगवान कृष्ण ने अर्जुन को मनुष्य धर्म व कर्म का उपदेश दिया। यही उपदेश भगवत गीता में लिखा हुआ है, जिसमें मनुष्य जाति के सभी धर्मों व कर्मो का समावेश है। कुरुक्षेत्र का मैदान गीता की उत्पत्ति का स्थान है, कलयुग में प्रारंभ के महज 30 वर्षों के पहले ही गीता का जन्म हुआ, जिसे जन्म स्वयं कृष्ण ने नंदी घोष रथ के सारथी के रूप में दिया था। श्रीमदभागवत गीता केवल हिंदू सभ्यता को मार्गदर्शन नहीं देती। कहा कि गीता के श्लोकों में मनुष्य जाति का आधार छिपा हैं। मनुष्य के लिए क्या कर्म हैं उसका क्या धर्म हैं, इसका विस्तार स्वयं कृष्ण ने अपने मुख से कुरुक्षेत्र की धरती पर किया था। उसी ज्ञान को गीता के पन्नो में लिखा गया है।
वही महामना की चर्चा करते हुए वक्ताओं ने कहा कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रणेता और बहुआयामी प्रतिभा के धनी महामना पंडित मदन मोहन मालवीय ने अपना संपूर्ण जीवन समाज सुधार और राष्ट्र सेवा में समर्पित कर दिया। देश के लिए उनका योगदान पीढ़ी-दर-पीढ़ी को प्रेरित करता रहेगा। वही अटल बिहारी वाजपेयी राजनेता बनने से पहले एक पत्रकार थे। वह देश-समाज के लिए कुछ करने की प्रेरणा से पत्रकारिता में आए थे। वे बतौर पत्रकारिता अपना काम बखूबी कर रहे थे। 1953 में भारतीय जनसंघ के नेता डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी कश्मीर को विशेष दर्जा देने के खिलाफत करते हुए जम्मू-कश्मीर में लागू परमिट सिस्टम को तोड़कर श्रीनगर चले गए। इसी घटना को एक पत्रकार के रूप में कवर करने के लिए वाजपेयी भी उनके साथ गए। उस वक्त वाजपेयी एक पत्रकार के रूप में उनके साथ थे। वे भी गिरफ्तार कर लिए गए। इस घटना के कुछ दिनों बाद ही नजरबंदी में रहने वाले डॉ. मुखर्जी की बीमारी की वजह से मौत हो गई। इस घटना से वाजपेयी काफी आहत हुए। इससे वाजपेई जी को लगा कि डॉ. मुखर्जी के काम को उन्हेआगे बढ़ाना चाहिए। इसके बाद वाजपेयी राजनीति में आ गए। वह साल 1957 में वह पहली बार सांसद बनकर लोकसभा पहुंचे और बाद में प्रधानमंत्री भी बने।