औरंगाबाद(लाइव इंडिया न्यूज 18 ब्यूरो)। “मुझे तोड़ लेना वन माली, उस पथ पर देना तुम फेंक, मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाएं वीर अनेक”। हिंदी के कवि माखनलाल चर्तुवेदी की “पुष्प की अभिलाषा” शीर्षक कविता की इन पंक्तियों में फूलों की देशभक्ति का भाव है। यह उन फूलो का भाव है जो उनके चाह नही हाेने के बावजूद देवों पर चढ़ाए जाते है पर कुछ दूसरे फूल भी है, जिनके लिए अभी हम कविता तो नही लिख सकते लेकिन उनसे जुड़े भाव शब्दों में बयान कर रहे है।
इन फूलों को दूर से देखकर मन झूम जाता है, लेकिन इसके फल के सेवन से मन घूम जाता है। ये फूल जब फल बन जाते है तो बड़े महंगे हो जाते है। फल के गुद्दें के रस से बनी चीज वों मजा देती है कि मजे लेनेवाला कुछ घंटों के लिए दूसरी और अलग दुनियां में ही चला जाता है। इसकी खेती पर रोक है पर कहते है न कि जो चीज मजा और माल दोनो देती है, तो रोक को ताक पर रख दिया जाता है। रोक को ताक पर रखकर ऐसी खेती औरंगाबाद के अति नक्सल प्रभावित इलाकों में आज भी हो रही है लेकिन इस पर पुलिस की नजरे पड़ गयी है। लिहाजा इस फूल की खेती करनेवाले माली(किसान) पुलिस के सीधे टारगेट पर है। इन फूलों पर पुलिस की नजर पड़ जाने के बावजूद इसकी खेती हो रही है। खेती करनेवाले बहुत सारे किसान जानते-समझते भी हैं कि यह खेती अवैध है लेकिन, लोभ क्या नहीं कराता! जो इस फूल की खेती की असलियत नहीं जानते हैं, उनसे पोस्तादाना बताकर इसकी खेती कराई जाती है। मतलब खेती करने की कीमत कोई भी क्यो न चुकानी पड़े पर खेती होनी चाहिए ताकि नोटो की बारिश होती रहे, एकड़ पर करोड़ मिलता रहे और नक्सल इकोनॉमी चलती रहे।
दरअसल दूर से बेहद खूबसूरत और मनमोहक दिखने वाला यह पौधा अफीम का है और अति नक्सल प्रभावित इलाकों में माओवादी इसकी खेती करा रहे हैं। बदलती परिस्थितियों में माओवादियों के लिए यह खेती अपनी अर्थव्यवस्था को ट्रैक पर रखने का रास्ता है। करीब दस साल पहले पुलिस ने पूरा दम लगाकर यह खेती बंद करा दी थी लेकिन अब फिर नक्सल प्रभावित इलाकों में इसकी खेती हो रही है, जिसे बंद कराने के लिए पुलिस ने पहले जैसा ही दम लगा रखा है। इसी महीने यानी 7 फरवरी को औरंगाबाद पुलिस ने अरसे के बाद माओवादियों की इस इकोनॉमी पर करारा प्रहार किया था। पुलिस ने जंगली-पहाड़ी इलाके में ऐसी अर्थव्यवस्था पुलिस ने मदनपुर थाना के सुदूरवर्ती दक्षिणी इलाके में बादम और देव प्रखंड में ढिबरा थाना के छुछिया, ढाबी तथा महुआ गांव में करीब 10 एकड़ में लगी अफीम की खेती को तहस नहस किया था। बर्बाद की गई अफीम के फसल की कीमत 20 करोड़ आंकी गयी थी।
नक्सल इकोनॉमी पर हाल की पहली बड़ी चोट के बाद पुलिस ने रविवार 19 फरवरी को भी दूसरी बड़ी चोट मारी है। तस्वीरों में देख सकते है कि कैसे यहां सब कुछ पुष्प की अभिलाषा का उल्टा हो रहा है। मातृभूमि की रक्षा करने वाले सिपाही उन पर पैर रखकर आगे बढ़ने के बजाय अपनी बुटों तले रौंद रहे है। इन फूलों पर डंडे भी बरसाएं जा रहे है और उन्हे जेसीबी से भी रौंदा जा रहा है। दरअसल आज की यह तस्वीर औरंगाबाद के देव प्रखंड के ढ़िबरा थाना के छुछिया की है। इस बारे में औरंगाबाद की पुलिस अधीक्षक स्वपना गौतम मेश्राम ने बताया कि देव प्रखंड में ढिबरा थाना के छुछिया के जंगली इलाके में आज 2 एकड़ में लगी अफीम की फसल नष्ट की गयी है। नष्ट की गई फसल तैयार होने पर दो करोड़ की होती। उन्होने बताया कि इस मामले में अभी किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है, लेकिन अफीम की खेती करने वालों को चिह्नित किया जा रहा है। उनके जरिए उन नक्सलियों तक पहुंचने का प्रयास किया जाएगा, जो खेती करा रहे है। कहा कि अवैध मादक पदार्थों के खिलाफ पुलिस का अभियान लगातार जारी रहेगा।
ऐसे और इस शर्त पर होती है अफीम की खेती, बिना लाइसेंस एक भी पौधा उगाया तो सख्त कानूनी कार्रवाई–
अफीम की खेती आसान नहीं होती। इसके लिए पहले सरकार से लाइसेंस लेना होता है। सरकार एक तय प्रक्रिया के तहत अफीम खरीदती है। इसकी खेती में कई बातें ध्यान रखनी पड़ती हैं।अफीम नशीला पदार्थ है, लेकिन इससे दवाएं भी बनाई जाती हैं। इसीलिए इसकी खेती के लिए लाइसेंस आसानी से नहीं मिल पाता है। इसके लिए पहले से तय नियम और शर्तों का पालन करना होता है।
बता दे कि नारकोटिक्स विभाग के कई इंस्टीट्यूट्स द्वारा अफीम पर रिसर्च भी किया जाता है। इन इंस्टीट्यूट्स से ही अफीम का बीज मिलता है। जवाहर अफीम-16, जवाहर अफीम-539 और जवाहर अफीम-540 जैसी किस्में अफीम की खेती में काफी लोकप्रिय हैं। प्रति हेक्टेयर की बात करें तो इसके लिए करीब 7-8 किलो अफीम के बीज की जरूरत पड़ती है। हालांकि, अफीम का बीज ढूंढने से पहले उसका लाइसेंस लेना होगा, क्योंकि अगर बीज मिल भी गया तो भी बिना लाइसेंस के इसे उगा नहीं सकते। बिना लाइसेंस के एक भी अफीम का पौधा उगाने पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है।